भोजपुरी भाषा में भोजपुरी सिनेमा पर पहली किताब

युगवार्ता    19-Feb-2025   
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भोजपुरी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार मनोज भावुक की बहुप्रतीक्षित शोध पुस्तक ' भोजपुरी सिनेमा के संसार' प्रकाशित हो गई है। भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर भोजपुरी भाषा में लिखी गई यह पहली किताब है। इस पुस्तक का प्रकाशन मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली ने किया है।
भाजपुरी सिनेमा पर मनोज भावुक की किताब
पुस्तक 'भोजपुरी सिनेमा के संसार' ( प्रथम संस्करण : 2024 ) वर्ष 1931 से लेकर अब तक के भोजपुरी सिनेमा के सफर का विस्‍तार से विश्‍लेषण है। वर्ष 1962 में भोजपुरी की पहली फ़िल्म आई- 'गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो'। उसके पहले 1931 से 1962 तक हिंदी सिनेमा में संवाद और गीतों के जरिये भोजपुरी कैसे अपना परचम लहराती रही, इसके रोचक किस्से भी हैं इस पुस्तक में। अमिताभ बच्चन, सुजीत कुमार, राकेश पांडेय, कुणाल सिंह, रवि किशन और मनोज तिवारी जैसी सिने-हस्तियों के साक्षात्कार शामिल हैं, भोजपुरी सिनेमा की चुनौतियों, संभावनाओं, बिजनेस और भविष्य पर खुलकर लिखा गया है। साथ ही ओटीटी, भोजपुरी वेबसिरिज, टेलीफिल्म, सीरियल पर भी प्रकाश डाला गया है।
405 पेज की इस पुस्तक में भोजपुरी सिनेमा के सफर को तीन खंडों बाँटा गया है। पहले खंड में वर्ष 1931 से 2000 के कालखंड में फिल्मी दुनिया में भोजपुरी के प्रवेश की कहानी, पहली फिल्म के निर्माण की कहानी, भोजपुरी सिनेमा के भीष्म पितामह नाजिर हुसैन का दुर्लभ लेख, उस दौर के प्रतिमान, गीत व कथा-पटकथा के साथ कुछ महत्वपूर्ण साक्षात्कार भी शामिल हैं।
दूसरे खंड में 2001 से 2019 तक के भोजपुरी सिनेमा के सफर पर विस्‍तार से अवलोकन किया गया है। लेखक ने इस दौर के नायक-नायिका, गीतकार-संगीतकार, निर्माता-निर्देशक व क्रिएटिव टीम के परिचय व योगदान के साथ बदलते सिनेमा, भूतल से रसातल तक जाते सिनेमा, चेतावनी और चुनौती पर खुलकर विमर्श करने का प्रयास किया है। तीसरा खंड विविधा का है जिसमें सिनेमा के विभिन्न आयामों पर चर्चा है। लता, किशोर, मुहम्मद रफी के भोजपुरी गीतों पर रोचक आलेख हैं। भोजपुरी सिनेमा, राजनीति और चुनाव का भी जिक्र है।
 
पुस्तक: भोजपुरी सिनेमा के संसार
लेखक: मनोज भावुक
प्रकाशक: मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली
पृष्ठ: 405
मूल्य: 500 रुपये
 
अंत में, मनोज भावुक दावे के साथ कहते हैं कि भोजपुरी सिनेमा का सुनहला दौर फिर से आएगा। भोजपुरी भाषियों की संख्या करोड़ो में है, जबकि भोजपुरी सिनेमा के दर्शक अभी लाखों में सिमटे हुए हैं। करोड़ों के लिए सिनेमा बनना बाकी है। वह दौर भी आएगा। कुछ ऐसी फिल्में बन भी रही हैं लेकिन उनका उस रूप में प्रचार-प्रसार भी करना होगा। निर्माता के पास इसके लिए बजट ही नहीं होता। अभी ज्यादातर लोग सिनेमा और गीत के नाम पर कंटेन्ट छापने में लगे हैं, व्यूज के खेल में लगे हैं, जबकि व्यूज से ज्यादा जरूरी व्यू (नजरिया) है। समय बदलेगा और वह दौर फिर से आएगा जब सिनेमा के नाम पर सिनेमा और गीत के नाम पर गीत बनना शुरू होगा और विश्व के तमाम देशों के भोजपुरी भाषी व भोजपुरी प्रेमी उस सिनेमा से जुड़ेंगे।
इस पुस्तक के लेखक मनोज भावुक भोजपुरी सिनेमा और भोजपुरी साहित्य के बीच की एकमात्र मजबूत कड़ी हैं। दोनों को जीते हैं, दोनों में काम करते हैं। इसलिए दोनों को बखूबी समझते हैं। इसलिए इस किताब के साथ वो न्‍याय करते दिख रहे हैं। अफ्रीका और इंग्लैण्ड में इंजीनियर रहे मनोज भावुक के साहित्यिक और फिल्मी गीतों को नामचीन गायकों ने अपना स्वर दिया है।सारेगामापा के लेखक व प्रोजेक्ट हेड रहे मनोज भावुक को फिल्मफेयर और फेमिना जैसी संस्थाओं ने भोजपुरी आइकॉन अवार्ड से नवाजा है। सिनेहस्ती गुलज़ार और ठुमरी साम्राज्ञी गिरिजा देवी से लेकर मॉरिशस के राष्ट्रपति सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने इन्हें सम्मानित किया है। विशेषांकों की पत्रिका 'भोजपुरी जंक्शन' के संपादक के रूप में आप पूरी दुनिया के भोजपुरी जगत में छाये हुए हैं।
पुस्तक 'भोजपुरी सिनेमा के संसार' मनोज भावुक की तीन दशकों की जीवन यात्रा का प्रतिफल है। भावुक 1995 से ही अनवरत भोजपुरी सिनेमा पर लिख रहे हैं। इनके लेख भोजपुरी की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं के अलावा टाइम्स नाउ हिंदी और न्यूज 18 में भी छपते रहे हैं। भोजपुरी के लगभग हर टीवी चैनल यथा हमार टीवी, अंजन टीवी, महुआ और बिग गंगा आदि में भोजपुरी सिनेमा के सफर, फ़िल्म समीक्षा, गॉसिप व सेलिब्रिटी इंटरव्यू आदि पर इनके बनाये और होस्ट किये अनेक कार्यक्रम पॉपुलर हुए। भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर इनकी बनाई डॉक्यूमेंट्री अंतरराष्ट्रीय भोजपुरी महोत्सव, मॉरिशस, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, दिल्ली, सिनेमेला, जेएनयू, भोजपुरी महोत्सव, काशी हिन्दू विश्विद्यालय और फ़िल्म विभाग, रामानुजम कॉलेज, दिल्ली आदि में प्रदर्शित किये गए। दुनिया के अनेक सेमिनारों में सिनेमा पर बोलने बतौर मुख्य वक्ता शिरकत करते रहे हैं। भोजपुरी सिनेमा के महानायक कुणाल सिंह इन्हें 'भोजपुरी सिनेमा का इनसाइक्लोपीडिया' कहते हैं।
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संजीव कुमार

संजीव कुमार (संपादक)
आप प्रिंट मीडिया में पिछले दो दशक से सक्रिय हैं। आपने हिंदी-साहित्य और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की है। आप विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुडे रहे हैं। राजनीति और समसामयिक मुद्दों के अलावा खोजी रिपोर्ट, आरटीआई, चुनाव सुधार से जुड़ी रिपोर्ट और फीचर लिखना आपको पसंद है। आपने राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा की पुस्तक ‘बेलाग-लपेट’, ‘समय का सच’, 'बात बोलेगी हम नहीं' और 'मोदी-शाह : मंजिल और राह' का संपादन भी किया है। आपने ‘अखबार नहीं आंदोलन’ कहे जाने वाले 'प्रभात खबर' से अपने पत्रकारीय जीवन की शुरुआत की। उसके बाद 'प्रथम प्रवक्ता' पाक्षिक पत्रिका में संवाददाता, विशेष संवाददाता और मुख्य सहायक संपादक सह विशेष संवाददाता के रूप में कार्य किया। फिर 'यथावत' पत्रिका में समन्वय संपादक के रूप में कार्य किया। उसके बाद ‘युगवार्ता’ साप्तहिक और यथावत पाक्षिक के संपादक रहे। इन दिनों हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ पाक्षिक पत्रिका के संपादक हैं।