भाजपा आई, आप-दा गई

युगवार्ता    19-Feb-2025   
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PM Modi
 
अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए थे। अब उसी भ्रष्टाचार से दागदार होकर वे सत्ता से बाहर हो गए। विपक्ष ने एक-दो नहीं, बल्कि इनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के कई मामलों को उजागर किया। इनमें से शराब घोटाले और ‘शीशमहल’ मामले में सीधे केजरीवाल पर आरोप लगा। भाजपा ने इनके भ्रष्टाचार, सही रणनीति और माइक्रो मैनेजमेंट कर इन्हें चुनावी पटखनी दे दी है तो राजधानीवासियों ने भाजपा को एक बड़ा जनादेश दे दिया।
रामलीला मैदान में अन्ना आंदोलन चल रहा था। अनशन कर रहे अन्ना हजारे के बगल में बैठकर अरविंद केजरीवाल वहां उपस्थित लोगों को संबोधित कर रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ‘इस कुर्सी के अंदर कुछ समस्या है। जो इस पर बैठता है, वह गड़बड़ हो जाता है। हम लोगों के मन में बड़ा सवाल है कि आंदोलन से जब विकल्प निकलेगा और वे लोग जब कुर्सी पर जाकर बैठेंगे तो कहीं वही लोग भ्रष्ट न हो जाएं। इस बात को लेकर मन में भारी चिंता है। इसके लिए कोई न कोई कारगर उपाय करना होगा। तभी समस्या का हल निकलेगा।’ इसी कारगर उपाय का नाम उन्होंने ‘जनलोकपाल’ दिया था, जिन्हें प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पर कार्रवाई करने का अधिकार देने की बात कही गई थी। लोगों ने विश्वास किया। उन्हें पहले चुनाव में 28, फिर 67 और 2020 में 62 सीटें दीं। अरविंद केजरीवाल तीनों बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन ‘जनलोकपाल’ नहीं बना। उन्होंने आम आदमी पार्टी के अंदरूनी लोकपाल को भी खत्म कर दिया। कुर्सी पर बैठते ही केजरीवाल भी उसी समस्या से ग्रस्त हो गए, जिसका जिक्र उन्होंने अन्ना आंदोलन के दौरान किया था। भ्रष्टाचार खत्म करना तो दूर, वे खुद इसमें शामिल हो गए। भाजपा का यही आरोप है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने केजरीवाल के भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाया। शराब से लेकर ‘शीशमहल’, क्लास रूम, मोहल्ला क्लीनिक जैसे कई घोटाले इनके शासनकाल में हुए। इनमें शराब और शीशमहल घोटाले में तो सीधे केजरीवाल का भी नाम जुड़ा है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बुराड़ी विधानसभा क्षेत्र निवासी कमलेश्वर पटेल कहते हैं, हमने आम आदमी पार्टी (आप) को राजनीतिक पार्टी नहीं माना था। बल्कि उसे भ्रष्ट व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के एक विकल्प के रूप में देखा था। 2013 के चुनाव में इसके प्रदर्शन ने हमारे अंदर और उम्मीदें जगाईं। फिर क्या था, 2015 के चुनाव में दिल्लीवासियों ने ऐतिहासिक जीत इसे दिलाई। 2020 तक भरोसा कायम रहा, लेकिन उसके बाद इन लोगों की पोल खुल गई। इन्होंने दिल्लीवासियों को धोखा दिया। इस बार का चुनाव परिणाम उसी धोखे का बदला है।’ भाजपा ने अरविंद केजरीवाल के इसी धोखे को पहचान लिया था। इसलिए पार्टी ने अपने चुनाव अभियान में अरविंद केजरीवाल और इनकी सरकार के भ्रष्टाचार को प्रमुखता दी। अपने चुनावी मुद्दे इनके भ्रष्टाचार के इर्द-गिर्द केंद्रित किए।
शराब घोटाला
भाजपा ने दिल्ली सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों, नीतिगत गलतियों और शासन की विफलताओं का मिश्रण कर आप को घेरने की रणनीति बनाई। भ्रष्टाचार में शराब घोटाला सबसे प्रमुख था। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया एवं राज्यसभा सांसद संजय सिंह जैसे पार्टी के प्रमुख नेताओं को जेल तक जाना पड़ा। भाजपा ने इस मुद्दे को कभी कमजोर नहीं होने दिया। चुनाव की घोषणा होने के बाद कैग की रिपोर्ट लीक हुई। उस लीक रिपोर्ट के आधार पर भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने आरोप लगाया कि अरविंद केजरीवाल के शराब घोटाले से दिल्ली को 2026 करोड़ रुपए का राजकोषीय घाटा हुआ है। इस रिपोर्ट के पहले विधानसभा में विपक्ष के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी इस मुद्दे पर सरकार को सदन में घेरते रहे तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता इसे लेकर सड़कों पर आंदोलन करते रहे। पार्टी ने इस मुद्दे को भुनाते हुए आप की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा दिया।
आप के वोट बैंक झुग्गी-झोपड़ियों में भी इस मुद्दे को अंतिम लोगों तक पहुंचाया। प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा कहते हैं, ‘ऐसे तो नई शराब नीति से पूरी दिल्ली परेशान थी, लेकिन सबसे अधिक झुग्गी-झोपड़ी की महिलाएं इससे प्रभावित हो रही थीं। वहां शराब और नशीली दवाओं का सेवन एक बड़ी समस्या है। इसलिए हमने झुग्गी की महिलाओं के बीच शराब घोटाले को पहुंचाया। महिलाएं जब इस घोटाले को समझीं, तो वे आश्चर्यचकित हो गईं।’ 

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‘शीशमहल’ विश्वासघात का प्रतीक?
शराब घोटाले ने अरविंद केजरीवाल की ईमानदार छवि से पर्दा हटाया, वहीं शीशमहल विवाद ने आम आदमी पार्टी की छवि को नेस्तनाबूद कर दिया। हाफ शर्ट-पेंट और चप्पल में चलने वाले अरविंद केजरीवाल के ‘शीशमहल’ ने उनकी कथनी-करनी में फर्क सबके सामने ला दिया। भाजपा ने इसे भी चुनाव से बहुत पहले दिल्ली में मुद्दा बनाया। इसे आप के आम आदमी के चरित्र के साथ विश्वासघात बताया गया। इसके पहले जब भाजपा अरविंद केजरीवाल पर सुरक्षा, बंगला और गाड़ी नहीं लेने के वादे को बताती थी तो लोगों ने उसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन ‘शीशमहल’ को केजरीवाल का विश्वासघात माना। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में भी इसका खुलासा हुआ कि मुख्यमंत्री आवास के नवीनीकरण के लिए शुरुआती अनुमान 7.91 करोड़ रुपए था। जब नवीनीकरण कार्य खत्म हुआ तो अंतिम लागत बढ़कर 33.66 करोड़ रुपए हो गई। भाजपा इसे कैसे छोड़ती। नवीनीकरण के नाम पर मुख्यमंत्री आवास में फिजूलखर्ची करके ऐसी-ऐसी सुविधाएं जुटाई गईं, जो बड़े-बड़े उद्योगपतियों के घरों में भी नहीं होती हैं।
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं सांसद मनोज तिवारी के अनुसार, ‘शीशमहल’ ने हमें आम लोगों के बीच अरविंद केजरीवाल के झूठ को पहुंचाने में मदद की। ‘शीशमहल’ के अंदर की तस्वीरों को आम लोगों ने बर्दाश्त नहीं किया। लोग समझने लगे कि केजरीवाल विश्वासघाती हैं। साथ ही उन्हें यह भी समझाया कि केजरीवाल जो उपदेश देते हैं, उस पर वे खुद अमल नहीं करते। भ्रष्टाचार के इन दो आरोपों ने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। इसके अलावा भ्रष्टाचार के अन्य आरोपों को भी हम लोगों के सामने रखते रहे।
माइक्रो मैनेजमेंट
भारतीय जनता पार्टी ने केजरीवाल के भ्रष्टाचार को उजागर कर मतदाताओं को आप से दूर किया। फिर उन मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए चुनाव का माइक्रो मैनेजमेंट किया। इसके लिए भाजपा के चुनाव प्रबंधकों ने सबसे ज्यादा फोकस झुग्गी बस्तियों पर किया। आप का यह सबसे बड़ा वोट बैंक था।
भाजपा का झुग्गी प्रवास
चुनाव से बहुत पहले भाजपा ने झुग्गी बस्तियों में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए झुग्गी प्रवास कार्यक्रम चलाया। यह कार्यक्रम लगातार 28 सप्ताह तक चलाया गया। इसके तहत भाजपा के वरिष्ठ नेता झुग्गी बस्तियों में रात गुजारते थे। वहां के लोगों की समस्याओं को समझते और उन्हें दूर करने प्रयास करते थे। यही नहीं, पिछले आठ महीनों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के हजारों सदस्यों ने मतदाताओं को जुटाने के लिए इन क्षेत्रों में बैठकें कीं। चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले 1600 से अधिक झुग्गीवासियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा फ्लैट की चाबी सौंपना इसी रणनीति का हिस्सा था। इन सबका असर यह हुआ कि एक अनुमान के मुताबिक, इस चुनाव में झुग्गी बस्तियों में भाजपा का वोट शेयर 20 से 30 प्रतिशत बढ़ा है। यह पूरा वोट आम आदमी पार्टी का था।
निम्न मध्यमवर्गीय मतदाताओं को रिझाया
दिल्ली के निम्न मध्यमवर्गीय मतदाता लोकसभा चुनाव में भाजपा को वोट करते हैं। वहीं विधानसभा चुनाव में वे केजरीवाल को समर्थन करते थे। इस बार इन मतदाताओं को अपने साथ बनाए रखने के लिए दो बड़ी घोषणाएं केंद्र की भाजपा सरकार ने की। सबसे पहले केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की। उसके बाद आम बजट 2025-26 में आयकर छूट की सीमा बढ़ाकर 12 लाख रुपए कर दी। विधानसभा चुनाव में यही मतदाता आप की जीत सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। दिल्ली में मध्यम वर्ग को अधिकांशत: अनदेखा किया जाता रहा है। इनका मानना है कि इनके टैक्स के पैसे को फ्री बीज में देकर राजनीतिक दल अपना वोट बैंक मजबूत बनाते हैं और इनके ऊपर ध्यान नहीं दिया जाता है। केंद्र की मोदी सरकार ने बजट में इस समूह को प्रत्यक्ष लाभ देकर इन्हें बड़ी राहत दी। राजधानी में इनकी आबादी करीब 70 प्रतिशत के आसपास है।

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जनसमस्याओं पर फोकस
इस बार चुनावी अभियान के तहत भाजपा ने दिल्ली की जनसमस्याओं को भी रेखांकित किया। नागरिक मुद्दों को केंद्र में रखकर क्षतिग्रस्त सड़कें, खराब सफाई व्यवस्था, सीवेज की रुकावटें और मानसून के दौरान जलभराव आदि में केजरीवाल सरकार की विफलता से भी लोगों को अवगत कराया गया। पार्टी नेताओं द्वारा राजधानीवासियों को इन तमाम समस्याओं से निजात दिलाने का वादा किया गया। सबसे ज्यादा जोर दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से निजात दिलाने पर है। साथ में यमुना की सफाई भी इस चुनाव में एक अहम मुद्दा बना।
वायु गुणवत्ता, जलापूर्ति और सड़कों के रखरखाव पर अधूरे वादों को लेकर उपजी निराशा ने आप सरकार के प्रति लोगों में गुस्सा भर दिया था। ओवरफ्लो हो रहे सीवर, खराब हो रही सड़कें और लगातार बढ़ता प्रदूषण दिल्लीवासियों की बड़ी चिंताएं थीं। इन मुद्दों पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप सरकार की अक्षमता की आलोचना भी की थी। इन मुद्दों पर मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अगुवाई वाली पीठ ने टिप्पणी की थी कि आप सरकार बुनियादी ढांचे की चिंताओं को दूर करने के बजाय मुफ्त सुविधाएं देने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।
यमुना की गंदगी
इस चुनाव में यमुना की गंदगी भी एक बड़ा मुद्दा था। भाजपा ने अरविंद केजरीवाल द्वारा पिछले चुनाव में किए गए उस वादे को याद दिलाया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि हमने यमुना को साफ नहीं किया तो हमें वोट मत देना। भाजपा नेताओं ने यमुना को भारतीय संस्कृति और पूर्वांचल के महापर्व छठ से जोड़ते हुए अपनी बात रखी। पिछले कई सालों से पूर्वांचल के लोग यमुना नदी में छठ महापर्व नहीं कर पाते हैं। कुछ लोग करते भी हैं, तो वे प्रदूषित पानी में आचमन करने को विवश हैं।
वोट प्रतिशत में इजाफा
पिछले 10 सालों में भाजपा का वोट शेयर लगभग 13 प्रतिशत बढ़ा है। वहीं इस अवधि में आप के वोट शेयर में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आई है। हालांकि, इस बार के चुनाव में दोनों दलों के वोट शेयर का अंतर केवल दो प्रतिशत रहा। लेकिन सीटों के मामले में आप 22 पर सिमट गई। जबकि भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 48 सीटें जीतीं। कांग्रेस इस बार भी खाता नहीं खोल सकी। आप ने 43.57 प्रतिशत वोट हासिल किए। जबकि 2020 के चुनाव में उसका वोट शेयर 53.57 प्रतिशत था। 2015 और 2020 में पार्टी ने क्रमश: 67 और 62 सीटें हासिल की थीं। भाजपा ने 45.56 प्रतिशत वोटों के साथ 48 सीटें जीतीं। भाजपा का वोट शेयर 2020 में 38.51 प्रतिशत और 2015 में 32.3 प्रतिशत था। जबकि कांग्रेस ने 6.34 प्रतिशत वोट हासिल किए। इस बार कांग्रेस के वोट शेयर में 2.1 प्रतिशत का सुधार हुआ। 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 4.3 प्रतिशत वोट मिले थे।
 
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गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।