जन सुराज अभियान का सियासी भविष्य

युगवार्ता    18-Sep-2024   
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जन सुराज अभियान के दौरान अपने भाषणों से बिहार का सियासी तापमान बढ़ाने वाले प्रशांत किशोर अब अभियान की समाप्ति पर दो अक्टूबर को अपनी नई पार्टी की घोषणा करेंगे। चुनावी रणनीतिकार के रूप में ख्यात प्रशांत किशोर राजनेता के रूप में अपनी कितनी छाप छोड़ पाएंगे, सबसे बड़ा सवाल यही है।
जनसुराज अभियान को संबोधित करते प्रशांत किशोरजन सुराज अभियान में प्रशांत किशोर
बिहार में विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाला है। लेकिन उसकी तैयारी अभी से ही शुरू है। सुस्त नेता जग गए हैं। कहीं चूक न जाएं। स्थापित नेता खुद को मांजने में लगे हैं। अपने कार्यों को कार्यकर्ताओं के द्वारा द्वार-द्वार तक पहुंचाने की अथक कोशिश करते दिख रहे हैं। इन सब के बीच सूबे में एक नई पार्टी को लेकर सुगबुगाहट तेज है। इस नई पार्टी की घोषणा 2 अक्टूबर को होगी। फिलहाल तो यह एक अभियान की शक्ल में है। नाम है- जन सुराज। इस अभियान के नेतृत्वकर्ता प्रशांत किशोर हैं। वैसे तो वह खुद को कार्यकर्ता ही बताते हैं पर सारा कार्य इन्हीं की देखरेख में किया जा रहा है।
प्रशांत किशोर की पहचान चुनावी-रणनीतिकार, चुनाव-प्रबंधक, डाटा के खिलाड़ी आदि के रूप में है। खिलाड़ी से कप्तान की भूमिका में आने की वजह बताते हुए प्रशांत किशोर कहते हैं कि व्यक्ति के तौर पर राजनीति में मैं इतना तो सशक्त जरूर हो गया हूं कि जिस किसी भी दल से चाहूं सांसद-विधायक-मंत्री बन सकता हूं। पर उनका क्या जो आज भी बुनियादी जरूरतों से वंचित हैं। उन्हीं पीड़ित-वंचितों के जीवन में थोड़ी रोशनी लानी है। इसीलिए जन जागरण कर रहा हूं। प्रशांत ने 2 अक्टूबर 2022 को पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा से अपनी पदयात्रा की शुरुआत की थी। अब तक पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, शिवहर, अररिया, सीवान, सारण, गोपालगंज, जमुई व भागलपुर आदि में लगभग पांच हजार किलोमीटर से ऊपर चल चुके हैं। महात्मा गांधी ने आजादी के आंदोलन की शुरुआत इसी चंपारण से की थी।
बहरहाल, जिनकी भी थोड़ी-बहुत राजनीति में रुचि है वह प्रशांत किशोर के हाव-भाव को तौल रहे हैं। अतीत में व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर जनता को एक कड़वा अनुभव अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी से हो चुका है। सत्ता की मलाई काट रहे केजरीवाल स्वराज के नाम पर जनता से अतीत में छल कर चुके हैं। इसकी अपनी एक अलग कहानी है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर प्रशांत किशोर कहते हैं कि मैंने कोई आंदोलन की शुरुआत नहीं की है। मैं जनता के बीच जा रहा हूं। लोगों से मिल रहा हूं। सवाल कर रहा हूं। सवालों का जवाब दे रहा हूं। समस्या बताना कोई बड़ी बात नहीं है। शिकायत तो कोई भी कर सकता है। समस्या के साथ समाधान और शिकायत का निपटारा अगर दोनों बातें हो तो जनता आपकी बात सुनती ही है।
बिहार में पदयात्रा के दौरान शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार को केंद्र में रखकर ही बातें की जा रही है। इनका मानना है कि सिर्फ सत्ता में बदलाव से बात नहीं बनेगी। बात तो आमूल-चूल परिवर्तन से ही बनेगी। प्रशांत की सभाओं में लोग जुट रहे हैं। जन समर्थन भी मिलता हुआ दिख रहा है। पर क्या प्रशांत किशोर इसे वोट में तब्दील कर पाएंगे। इसे देखा जाना अभी शेष है। वह अपने भाषणों में कहते हैं कि चाहे सरकार लालू जी की रही हो या नीतीश कुमार की बिहार से पलायन क्यों नहीं रुकता। बिहार एक ऐसा राज्य है जिसमें सिर्फ बुड्ढ़ा बच गए हैं। गरीब व्यक्ति मजदूरी के लिए, विद्यार्थी शिक्षा के लिए और शिक्षित रोजगार के लिए पलायन कर चुके हैं। परिवार बिखर गया है। इस पलायन को रोकना ही हमारा उद्देश्य होगा। रोजगार की व्यवस्था स्थानीय स्तर पर किया जाएगा। हम चांद पर पहुंचने की बात कत्तई नहीं करते हैं। हम तो धरती को ही सुंदर बनाने की बात करेंगे। इस तरह की बातों से वह लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।
दो वर्षों की यात्रा के बाद अब 2 अक्टूबर को जन सुराज अभियान एक राजनीतिक पार्टी में तब्दील हो जाएगा। प्रशांत किशोर का दावा है कि उनकी पार्टी किसी भी अन्य दल से किसी भी शर्त पर तालमेल नहीं करेगी। पूरा चुनाव अकेले दम पर लड़ा जाएगा। पूरे 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे जाएंगे। चाहे सरकार बने या ना बने लेकिन चुनाव तो सभी विधानसभा सीटों पर लड़ी जाएगी। अगर चुनाव जीतने में सफल रहे तो आमूल-चूल परिवर्तन होगा और असफल रहे तो यह अभियान और तेज किया जाएगा। साथ ही 2029 का चुनाव पूरे दमखम से लड़ा जाएगा। पर आधा-अधूरा कोई कार्य या समझौता नहीं किया जाएगा। इन बातों को सुनकर लोग ताली भी बजा रहे हैं। लेकिन सवाल फिर वही कि ये तालियां वोटों में तब्दील होंगी या नहीं।
नीतीश कुमार जैसे राजनीति के मंजे खिलाड़ी भी जन सुराज अभियान को अनदेखा नहीं कर पा रहे हैं। वह भी गाहे-बगाहे प्रशांत किशोर से संबंधित कोई-न-कोई बयानबाजी करते ही रहते हैं। सबसे ज्यादा असर तो राजद पर देखने को मिला। पार्टी की ओर से फरमान जारी किया गया है कि कोई भी कार्यकर्ता या पदाधिकारी अगर जन सुराज से जुड़े किसी कार्यक्रम में भाग लेता है तो उसे पार्टी बाहर का रास्ता दिखायेगी। बात बिल्कुल साफ है कि जन सुराज से चुनौती मिलती हुई दिख रही है। प्रशांत किशोर कहते हैं कि असर तो होना ही था। इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है। आप ही बताइए जो जाति जनगणना की बात करते हैं वह खुद ही दस प्रतिशत हैं और 18 प्रतिशत मुसलमानों का वोट लेकर अल्पसंख्यकों का रहनुमा बने फिरते हैं।
“बिहार में पदयात्रा के दौरान शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार को केंद्र में रखकर ही बातें की जा रही है। इनका मानना है कि सिर्फ सत्ता में बदलाव से बात नहीं बनेगी। बात तो आमूल-चूल परिवर्तन से ही बनेगी। प्रशांत की सभाओं में लोग जुट रहे हैं। जन समर्थन भी मिलता हुआ दिख रहा है।”
अल्पसंख्यकों को डरा कर कब तक वोट अपने पाले में करते फिरेंगे। राजद में यादवों का बोलबाला है। दो तिहाई से ऊपर जनप्रतिनिधि इसी जाति से आते हैं। 18 प्रतिशत वालों की सत्ता में हिस्सेदारी 8 प्रतिशत भी नहीं है। प्रशांत किशोर भाजपा को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। उससे भी राज्य में लगभग 20 सालों का तो केंद्र में 10 सालों का हिसाब मांग रहे हैं। अब देखना यह है कि इस पदयात्रा से बिहार की चुनावी राजनीति में वाकई कोई बदलाव आता है या नहीं। वैसे अतीत में महात्मा गांधी, विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण, चंद्रशेखर भी पदयात्रा कर चुके हैं। यात्रा के दम पर अपना लोहा भी मनवा चुके हैं। अभी हाल ही में राहुल गांधी भी पदयात्रा कर मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस को जीवित करने में सफल रहे। ऐसे में देखना यह है कि प्रशांत किशोर इस दिशा में कितना सफल हो पाते हैं। जिस बिहार की राजनीति में धर्म और जाति का बोलबाला है। उसे वह सुराज के सिद्धांत से कितना चुनौती दे पाएंगे। फिलहाल यह भविष्य के गर्भ में है। पर इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि प्रशांत किशोर को लेकर बिहार का राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ जरूर है।
टीम लेती है निर्णय
जन सुराज अभियान के तहत प्रशांत किशोर ने लगभग प्रत्येक गांव में जाने की कोशिश की। पर समय की कमी को देखते हुए इसमें तर्कसंगत बदलाव किया गया है। गांव के बजाय प्रखंड स्तर पर जाना ज्यादा मुनासिब माना गया है। यह गलत भी नहीं है। अनुभव से सीख कर आवश्यकता के अनुसार बदलाव किया जाए तो वह कहीं से भी गलत नहीं माना जाता। प्रशांत किशोर व्यक्ति स्तर पर ना तो कोई निर्णय लेते हैं और नहीं कोई कार्य करते हैं। उनके हर कार्य के लिए एक टीम बनी हुई है। टीम जो निर्णय लेती है उसी के अनुरूप वे कार्य करते हैं। जब पद यात्रा की रूपरेखा तैयार हो रही थी तो यह फैसला किया गया कि क्यों ना वहां से इस अभियान की शुरुआत की जाए जहां से महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत की थी। हुआ भी वही। 2 अक्टूबर 2022 को चंपारण के भितरिया गांव से जनसुराज अभियान प्रारंभ हुआ
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राकेश कुमार

राकेश कुमार (संवाददाता सह उप-संपादक)
आपने पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्‍नातकोत्‍तर एवं एम. फिल की उपाधि प्राप्‍त की है। विद्यार्थी जीवन में आप छात्र राजनीति से जुड़े रहे हैं। विभिन्‍न आंदोलनों में आपकी सक्रिय भागीदारी रही है। यथावत, युगवार्ता और नवोत्‍थान सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में आप लिखते रहे हैं। घुमक्‍कड़ी से आपको बेहद लगाव है। हाल ही में आपको समाजशास्‍त्री पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया है। इन दिनों आप हिन्‍दुस्‍थान समाचार समूह की पत्रिका 'युगवार्ता' पाक्षिक के संवाददाता सह उप-संपादक हैं।