संचार क्रांति का चुनाव व उसके प्रचार के तरीकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। राजनीतिक दल और उम्मीदवार चुनाव प्रचार के पारंपरिक प्रचार माध्यमों की जगह आज सोशल मीडिया व डिजिटल माध्यमों पर ध्यान दे रहे हैं। डिजिटल माध्यमों के जरिये राजनीतिक दल और उम्मीदवार कम खर्च और कम समय में अधिक लोगों तक पहुंच बना रहे हैं।
दुनिया ही नहीं भारत में भी चुनाव प्रचार का स्वरूप लगातार बदल रहा है। बीते दो दशकों में संचार क्रांति का चुनाव व उसके प्रचार के तरीकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। आजादी के बाद से अब तक चुनाव प्रचार में लगातार कई बदलाव हुए हैं। चुनाव दर चुनाव हर राजनीतिक दल का चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया। बदलते समय और संचार क्रांति के चलते चुनाव प्रचार के तौर-तरीकों में भी बदलाव हुआ है। पहले राजनैतिक दलों के उम्मीदवार एवं उनके कार्यकर्ता चुनाव प्रचार गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले से लेकर मतदाता के घर-घर तक होता था। वहीं अब चुनाव प्रचार चौक-चौराहों की नुक्कड़ सभाओं और रोड शो में सिमट कर रह गया है। आज भारत में राजनीतिक पार्टियों से लेकर उम्मीदवारों ने पारंपरिक माध्यमों के बदले डिजिटल माध्यमों और सोशल मीडिया के जरिये अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं। क्योंकि इन माध्यमों के जरिये राजनीतिक दल और उम्मीदवार कम खर्च और कम समय में अधिक लोगों तक पहुंच रहे हैं।
पहले जहां गाड़ियों पर लाउडस्पीकर लगाकर कार्यकर्ता शहर से लेकर गांव गांव तक अपने उम्मीदवारों का प्रचार करते थे, अब वह गुजरे जमाने की बात हो गई। पहले चुनाव की घोषणा होने के साथ ही पूरा माहौल प्रचारमय हो जाता था। अब शहरों-गांवों और गलियों में न शोर मचाते प्रचार गाड़ी दिखते हैं, न ही पार्टी बिल्लों और टोपियों के लालच में प्रचार गाड़ियों के पीछे नारे लगाते दौड़ते बच्चे। पूर्व के चुनावों में महीनों पहले से ही गली-मुहल्लों में पार्टियों और उम्मीदवारों के झंडे-पोस्टर और बैनरों से चुनाव प्रचार की सरगर्मियां देखने को मिल जाती थी। पहले इस चुनावी माहौल को देखकर पता चलता था कि चुनावी प्रचार में कौन-सी राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवार कितना पैसा खर्च कर रहा है। चुनाव विश्लेषक, पत्रकार और लोग इसी माहौल को देखकर ही यह अंदाजा लगा पाते थे कि चुनाव में किसका पलड़ा भारी है। अब यह सब गुजरे जमाने की बात हो गई है। इस चुनाव में चुनाव प्रचार का वह परंपरागत स्वरूप दिखाई नहीं पड़ रहा है जिसको देखते हुए लोग आ रहे थे। इसलिए कई पत्रकार और लोग यह भी कह रहे हैं कि इस चुनाव के चुनाव प्रचार में अब वह पहले वाली बात नहीं है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि संचार माध्यमों में हुई प्रगति, चुनाव आयोग की सख्ती और कोविड काल ने प्रचार के तरीकों को पूरी तरह से बदल दिया है। अब राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवार सड़कों पर शोर मचाने व बैनर-झंडे लगाने के बदले सोशल मीडिया पर लोगों से जुड़ते हैं। एक आंकड़े के अनुसार, भारत में सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म के प्रयोगकर्ता की संख्या सबसे अधिक है। करीब 100 करोड़ मोबाइल फोन धारकों में से 70 प्रतिशत की आयु 15 से 35 के आयु वर्ग के बीच है। सोशल मीडिया के जानकार मानते हैं कि सोशल मीडिया के माध्यम से राजनीतिक दलों को युवाओं से सीधे जुड़ने व उन तक अपनी बात पहुंचाने का अवसर मिलता है। ये युवा वर्ग किसी दल की विचारधारा से प्रभावित होकर नहीं बल्कि व्यक्तित्व व तात्कालिक घटनाओं के प्रभाव में मतदान करते हैं।
पहले चुनाव प्रचार का जिम्मा राजनीतिक दल के कार्यकर्ता और राजनीति के माहिर खिलाड़ी सम्हालते थे। अब यह बीते दौर की बात हो गई है। अब राजनीतिक दल चुनाव में जनता तक पहुंचने के लिए एडवरटाइजिंग एजेंसियों की सहायता ले रही है। साल 2009 से ही चुनावों में एडवरटाइजिंग एजेंसियों के जरिये प्रचार किया जा रहा है। इस चुनाव प्रचार में बहुत बड़े पैमाने पर धन खर्च किया जा रहा है। 2009 में चुनाव प्रचार अभियान मुख्यत: इलेक्टॉनिक न्यूज चैनलों पर चला था। इस बार दोनों प्रमुख राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में न्यूज चैनलों के साथ जीईसी (आम मनोरंजन चैनल), मूवी और खेल चैनलों पर भी विज्ञापन दे रही हैं। साथ ही सैकड़ों न्यूज वेबसाइटों पर भी विज्ञापन दिया जा रहा है।
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2024 में चुनाव प्रचार के अभियान का नेतृत्व करने के लिए विज्ञापन एजेंसी डीडीबी मुद्रा को नियुक्त किया है। बताते चलें कि लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस ने विज्ञापन एजेंसी परसेप्ट, सिल्वरपुश और निक्सन एडवरटाइजिंग को चुनाव प्रचार के लिए चुना था, जबकि लोकसभा चुनाव 2014 में उसने डेंटसु इंडिया को चुनाव प्रचार की जिम्मदारी सौंपी थी। वहीं भाजपा इसके लिए शीर्ष विज्ञापन एजेंसियों को अपने साथ जोड़कर अपने चुनाव अभियान को मजबूत किया है। भाजपा ने प्रसून जोशी के नेतृत्व वाली मैककैन वर्ल्ड ग्रुप को प्रमुख एजेंसी के रूप में नियुक्त किया है। इसके अलावा स्केयरक्रो एम एंड सी साची और एक्वायंट कंसल्टेंट्स को भी भाजपा ने अपने चुनाव अभियान के लिए चुना है। मैडिसन मीडिया का नेतृत्व करने वाले सैम बलसारा को एक बार फिर भाजपा की मीडिया योजना और संचालन की देखरेख की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बताते चलें कि मैडिसन मीडिया ने पहले 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी भाजपा के लिए मीडिया योजना और उनकी रणनीतियों का प्रबंधन किया था। इस मामले में क्षेत्रीय पार्टियां भी पीछे नहीं हैं। वे भी क्षेत्रीय चैनलों के माध्यम से चुनाव प्रचार कर रही है।
पहले ऐसा माना जाता था कि चुनाव में काले धन का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इसलिए चुनाव के दौरान चुनावी पर्चा, पोस्टर, बैनर, झंडे, बैच बनाने वाले छोटे कारोबारी, पेंटरों और प्रकाशकों आदि की जेब में भी पैसे आ जाते थे। और अर्थव्यवस्था सुधार और संतुलन हो जाता था। आज के दौर में अखबारी विज्ञापनों की अहमियत भी कम हुई हैं तो टेलिविजन और रेडियो जैसे विज्ञापनों की हिस्सेदारी में भी बदलाव हुए हैं। बदलते समय और चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से आज जिस तरह चुनाव इलेक्टॉनिक और डिजिटल माध्यमों से लड़ा जा रहा है उससे इस चुनाव प्रचार अभियान पर खर्च होने वाले पैसे कुछ खास मीडिया घरानों की जेब में ही जाता है। एक अनुमान के अनुसार, भाजपा व कांग्रेस इस बार के लोकसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल माध्यमों पर 400-500करोड़ रुपये अलग-अलग खर्च कर सकती हैं। लोकसभा चुनाव के बाद जब राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने खर्च चुनाव आयोग को देगी तो चुनावी खर्च का सही-सही पता चल पाएगा।
सोशल मीडिया: प्रचार का कम खर्चीला और व्यापक माध्यम
आज राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवारों से लेकर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार तक सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। आज हर कम्युनिटी, जाति-बिरादरी, गली-मुहल्ले, हाउसिंग सोसाइटी, मार्केट एसोसिएशन, पंचायत, प्रखंड, जिला, राज्य स्तर का विभिन्न प्लेटफार्मों पर अलग-अलग सोशल मीडिया ग्रुप है। अब राजनीतिक दल और उम्मीदवार इन सोशल मीडिया ग्रुपों से जुड़कर अपना चुनाव प्रचार करते हैं। इन सोशल मीडिया ग्रुपों में उम्मीदवारों के टिकट की घोषणा से लेकर राजनीतिक सरगर्मियों और चुनावी गतिविधियां सभी को फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप आदि पर लाइव या तुरंत डाल दिया जाता है। लाइव के दौरान आने वाले कमेंट्स में उम्मीदवार और उनकी सोशल मीडिया टीम से जुड़े लोग जवाब देकर अपने मतदाताओं से सीधे जुड़ते हैं। आज हाल यह है कि कोई भी राजनीतिक दल और उम्मीदवार बिना सोशल मीडिया के अपना प्रचार अभियान चलाने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। आज जब सोशल मीडिया चुनाव प्रचार का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है तो इसकी जिम्मेदारी संभालने वाले पार्टी कार्यकर्ता एवं सोशल मीडिया टीम के लोग सबसे ज्यादा व्यस्त नजर आ रहे हैं। अपने राजनीतिक नेताओं और उम्मीदवारों का जन संपर्क हो या फिर जनसभा या नुक्कड़ सभा, हर कार्यक्रम को तत्काल अपलोड करना, शेयर करना और अधिक से अधिक लोगों के बीच पहुंचाने में सोशल मीडिया टीम के लोग जुटे हैं। क्योंकि सोशल मीडिया के जरिये इनका अपने मतदाताओं से पहुंच बनाना बहुत ही आसान है। एक राष्ट्रीय दल के सोशल मीडिया चुनाव अभियान टीम के एक प्रमुख सदस्य के अनुसार, ‘‘सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार करना न केवल कम खर्चीला है बल्कि इसकी पहुंच भी बहुत व्यापक होती है। पहले किसी चुनावी सभा के दौरान राजनीतिक नेता और उम्मीदवार वहां उपस्थित लोगों तक ही अपनी बात पहुंचा सकते थे। लेकिन आज चुनावी सभा का लाइव वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर कुछ ही देर में अपनी बात लाखों लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।’’
रोड शो और शक्ति प्रदर्शन
चुनाव प्रचार में जबसे बड़ी सभाओं के बदले रोड शो और शक्ति प्रदर्शन का चलन आया है तब से मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक दलों के नेता और उम्मीदवार रोड शो में वाहनों का काफिला लेकर चलने लगे हैं। आजादी के बाद रिक्शा, तांगा, जीप आदि वाहनों से प्रचार का क्रम शुरू हुआ था। पुराने समय की खुली जीप से शुरू हुआ प्रचार का क्रम आज लक्जरी गाड़ियों तक पहुंच गया है। अब रोड शो में एक ही मॉडल की गाड़ियों का काफिला चुनाव प्रचार में चलन सा बन गया है।