कम वोटिंग, किसे फायदा

16 Jun 2024 15:26:31
india 
कम मतदान को हरेक पार्टी अपनी-अपनी तरह से व्याख्यायित कर रही है। विपक्षी गठबंधन इसे मोदी सरकार की विदाई बता रहा है तो भाजपा इसे तीसरी बार मोदी सरकार बनने का साफ संकेत मान रही है। कम मतदान को लेकर आखिर पिछला अनुभव क्या है?

कम मतदान सभी पार्टियों की चिंता बढ़ाने वाला है। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि 2019 के मुकाबले मतदान कम क्यों है। सभी पार्टियां इसकी व्याख्या अपनी-अपनी तरह से कर रही हैं। इंडी गठबंधन का दावा है कि तीन चरणों के चुनावों में एनडीए की हालत ठीक नहीं है। जबकि चुनावों का इतिहास देखें तो साफ तौर पर देखने को मिलेगा कि ऐसा कोई तथ्य या आंकड़ा नहीं मिलता जहां चुनाव प्रतिशत कम होने से सरकार बदल गयी हो। बल्कि इसके उलट 1971 में सबसे कम मतदान
हुआ था और जब नतीजा आया तो इंदिरा गांधी की सरकार बनी। कम मतदान का विपक्ष को कैसे फायदा होगा ये गणित विपक्ष ही समझा सकता है। हालांकि चुनाव आयोग ने जो रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार 8 मई रात 10 बजे तक तीसरे चरण में मतदान 65.68 प्रतिशत हुआ है। 2019 के लोकसभा चुनाव में तीसरे चरण के मतदान की तुलना में इसमें 1.65 प्रतिशत अंक की गिरावट है। हालांकि यह अंतिम आंकड़ा नहीं है। क्या कहते हैं आंकड़े
 
सात चरणों में होने वाले चुनाव के पहले तीन चरण (19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 7 मई ) में 283 निर्वाचन क्षेत्रों को कवर किया गया। इन चरणों में क्रमश: 66.1, 66.7 और 65.6 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2019 के चुनावों से लगभग तीन प्रतिशत कम है। यह गिरावट दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मतदाताओं की भागीदारी पर सवाल उठाती है। पहले चरण की 102 सीटों पर 2019 में लगभग 70 प्रतिशत मतदान हुआ था और दूसरे चरण में 88 सीटों में से 83 सीटों पर 69.64 मतदान हुआ था, वहीं तीसरे फेज में 65.68 प्रतिशत वोट पड़े। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार मतदाताओं में पुरुषों ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन दर्ज किया। पहले चरण में पुरुषों का मतदान प्रतिशत 66.22 प्रतिशत और महिलाओं का प्रतिशत 66.07 प्रतिशत रहा। वहीं दूसरे चरण में, 66.99 प्रतिशत पुरुषों ने और 66.42 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। हालांकि तीसरे चरण की अंतिम रिपोर्ट आनी बाकी है पर यह माना जा रहा है कि इसमें महिलाओं का प्रतिशत बढ़ सकता है। वैसे अगर अभी तक की स्थिति का आकलन किया जाये तो, यूपी से लेकर बिहार तक और महाराष्ट्र से लेकर राजस्थान तक, ज्यादातर इलाकों में 2019 की तुलना में कम वोट पड़े हैं। जानकार मानते हैं कि तीन कारणों की वजह से मतदान कम हुआ है, या तो हीटवेव की स्थिति ने लोगों को बूथ से दूर किया, या फिर इस बार चुनाव को लेकर उत्साह नहीं है अथवा लोगों को विश्वास है कि मोदी सरकार फिर बन रही है। सिर्फ कर्नाटक में ही पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोटिंग हुई है, बाकी सभी राज्यों में गिरावट देखने को मिली है। कहीं ये गिरावट 10 फीसदी से भी ज्यादा की है। सबसे कम मतदान उत्तर प्रदेश में दिख रहा है। तीसरे चरण में भी कमोबेश यही स्थिति रही। कई विशेषज्ञों का मानना है कि तीसरे चरण तक 27 सीटों पर उत्तर प्रदेश में मतदान हो गया है। बाकी बची 53 सीटों पर मतदान होने हैं। हालांकि कम मतदान यह नहीं बता सकता कि किस पार्टी को इसका फायदा मिल रहा है। वैसे यहां पर समझने वाली बात ये है कि यूपी की कई सीटों पर कम मतदान जरूर हुआ है,लेकिन ये कह देना कि यह केंद्र सरकार के खिलाफ पड़ा है, ऐसा कहना गैरवाजिब होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक इस समय कई ऐसी सीटें मौजूद हैं, जहां पर विपक्ष द्वारा काफी कमजोर प्रत्याशी उतार दिए गए हैं। उस वजह से वहां भाजपा की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। ऐसे में अगर वहां पर कम वोटिंग भी हुई है तो बस जीत का मार्जिन छोटा हो सकता है,उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। कम वोटिंग का सबसे ज्यादा असर उन सीटों पर पड़ता है जहां पर मुकाबला आमने-सामने का रहता हो। दूसरे चरण में भी कुछ ऐसी सीटें हैं जहां पर दोनों भाजपा
और इंडी गठबंधन के मजबूत उम्मीदवार मैदान में खड़े हैं। ऐसी सीटों पर कम मतदान की वजह से हार-जीत का अंतर काफी कम हो जाता है। जैसे रामपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, नगीना, आदि। यही वो समीकरण है जो दोनों भाजपा और इंडी गठबंधन को चिंता में डाल रहा है। इसमें महाराष्ट्र की कम वोटिंग के बारे में विशेषज्ञ मान रहे हैं कि राज्य की राजनीतिक स्थिति जिस तरह से बनी हुई है। वही स्थिति वहां के मतदान में झलक रही है। एक तरफ शिवशेना दूसरी तरफ एनसीपी, इन दोनों पार्टी के दो और अंग। अब जो व्यक्ति इन पार्टियों को वोट देता रहा होगा क्या आज वो वोट देते समय असमंजस की स्थिति में नहीं होगा। जाहिर है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इस तरह का वोट प्रतिशत यह साफ बता रहा है कि किसी एक के
पक्ष में सहानुभति नहीं है। अगर हम मान लें कि उद्धव या शरद पवार को जनता का समर्थन मिल रहा है तो उस स्थिति में भी वोट प्रतिशत बढ़ना लाजिमी था। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है। मतदान कम होने के कई कारण हैं। जैसे की शुरूआत में बताया गया कि जब 1971 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी थीं, तब भी वोटिंग प्रतिशत कम हुआ था। और यह वो दौर था जब भारत में कई स्तरों पर अलग अलग समस्याएं चल रही थीं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब सामने प्रतिद्वंदी मजबूत न हो, मुद्दे नीचे तक नहीं पहुंच रहे हों और सरकार से जनता उस तरह से नाराज न हो तो उसके अंदर भी चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं रहता। हालांकि एक बात यह भी देखने वाली होगी कि कौन सा वोटर सबसे सक्रिय है। इसमें दोनों ही पक्ष हो सकते हैं। अब देश में इस समय जैसा माहौल है, ज्यादातर लोग भाजपा से ज्यादा नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देने की बात कर रहे हैं। ऐसे में कम वोटिंग को भी भाजपा अपने पक्ष में बताने की कोशिश कर रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 17 लोकसभा चुनावों में पांच बार मतदान कम हुआ है, उस स्थिति में 4 बार सरकारें बदल चुकी हैं, वहीं 7 बार जब मतदान बढ़ा है, तब सरकार बदली हैं। ऐसे में ये वोटिंग पैटर्न तो दोनों गठबंधन को थोड़ी उम्मीद और थोड़ा तनाव देने का काम कर रहा है। हालांकि प्रधानमंत्री ने एक रैली में भाषण के दौरान कहा कि चौथे चरण में हमारी सरकार आ रही है। दूसरी तरफ गृह मंत्री ने भी यही बात दोहराई है।
तुलनात्मक रूप से वोटिंग प्रतिशत
आंकड़ों को समझने के लिए पिछले चुनावों के वोटिंग पैटर्न को देखा जा सकता है। उससे एक अंदाजा लग सकता है कि कम वोटिंग का फायदा और नुकसान किसे ज्यादा रहने वाला है।
राज्य                      2019          2024
मणिपुर                  84.14          77.32
त्रिपुरा                     82.90          80.32
असम                     81.28          71.11
पश्चिम बंगाल           80.66        71.84
छत्तीसगढ़               75.12          73.62
केरल                      77.84          65.91
जम्मू-कश्मीर          72.50          72
कर्नाटक                   68.96          69.00
राजस्थान                68.42          59.97
मध्य प्रदेश             67.67          57.88
बिहार                      62.93             55.08
महाराष्ट्र                   62.81             57.83
उत्तर प्रदेश                62.18             54.85
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