- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
नई दिल्ली, 19 मई (हि.स.)। भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के स्तर पर भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, सिर्फ एफडीआई में नहीं बल्कि भारत विदेशी मुद्रा भंडार ममले में भी बेहतर से अच्छा करता दिख रहा है। जिसको देखते हुए जहां बाजार उत्साहित है, वहीं तमाम आर्थिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यदि देश की गति इसी प्रकार से बनी रही तो एशिया महाद्वीप में ही नहीं भारत विश्व योगदान में फिर से प्राचीन काल के अपने 32 प्रतिशत से अधिक के आर्थिक योगदान को प्राप्त कर लेगा।
दरअसल, यह 2014 में 36 बिलियन डॉलर के मुकाबले बढ़कर 2022 में 83.5 बिलियन डॉलर हो गया है। भारत का निर्यात बाजार जो 2014 में 466 बिलियन डॉलर का था, वह 2023 तक आते-आते 776 बिलियन डॉलर का हो गया और उसके बाद वाणिज्य मंत्रालय के लेटेस्ट आंकड़ों को देखें तो एक्सपोर्ट के मामले में वित्त वर्ष 2024-25 की शुरुआत शानदार रही है। अप्रैल 2024 में देश का टोटल एक्सपोर्ट (वस्तु और सर्विसेस) 6.88 प्रतिशत बढ़ा है। इस साल अप्रैल में देश से कुल 64.56 अरब डॉलर का एक्सपोर्ट हुआ है।
केंद्र सरकार के बैंकिंग सेक्टर में लम्बे समय तक प्रबंधक एवं अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों पर रहे आर्थिक विशेषज्ञ प्रहलाद सबनानी कहते हैं कि प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है। वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग तीन प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था।
सबनानी बताते हैं, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुकसान पहुंचाया एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं।
उन्होंने कहा, ‘आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है।’
सबनानी की मानें तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की वर्तमान विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं।
इसके साथ में प्रहलाद सबनानी यह भी जोड़ते हैं कि नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने वैश्विक और घरेलू आर्थिक आंकड़ों के आधार पर हाल ही में जो कहा है, उस पर भी हमें गंभीरता से गौर करना चाहिए, उनके अनुसार 2027 तक, हम जर्मनी और जापान से आगे निकल जाएंगे। विश्लेषकों का यह कहना सही है कि 2035 और 2040 के बीच वैश्विक जीडीपी वृद्धि का 30 प्रतिशत भारत से आएगा।
इस संबंध में हिस से जुड़े आर्थक मामलों को लम्बे समय से देख रहे आर्थिक विश्लेषक प्रजेश शंकर का कहना है कि यहां भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की बात करना भी समीचीन होगा; वर्ष 2014 के 303 बिलियन डॉलर के मुकाबले यह बढ़कर 2024 में 645 बिलियन डॉलर हो गया है । निश्चित ही यह कार्य विदेशियों का विश्वास जीते वगैर संभव नहीं हो सकता था।
उन्होंने कहा कि इसी तरह से देश के करेंट अकाउंट घाटा (डेफिसिट) की जीडीपी की तुलना देखी जा सकती है, जोकि 2013 में 5.1 प्रतिशत से वित्त वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही में घटकर 1.2 प्रतिशत पर आ गया है। वहीं, केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से मोदी सरकार ने आम जनता को ऋण के मामले में भी बहुत अधिक सुविधा दी है और महंगाई को भी अपने कंट्रोल में करके रखा है, बनस्पत उस स्थिति में जब भारत से लगे सभी सार्क देशों समेत पूरे युरोप और अमेरिका में महंगाई से आग लगी हुई हो।
प्रजेश शंकर संयुक्त राष्ट्र के वक्तव्य को भी यहां दोहराते हैं, जिसमें कि 2024 के लिए भारत के विकास पूर्वानुमान को 70 आधार अंक संशोधित कर 6.9 प्रतिशत कर दिया है, जो जनवरी में अनुमानित 6.2 प्रतिशत था। वहीं, हाल ही में एसएंडपी ग्लोबल रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि अगले तीन वर्षों में देश सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था होगा।
उल्लेखनीय है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक के बाद अब मूडीज ने भी भारत में आर्थिक विकास के संदर्भ में बताया है कि आने वाले कुछ वर्षों तक भारत की आर्थिक विकास दर विश्व में सबसे अधिक बने रहने की प्रबल सम्भावना बनी रहेगी। इस प्रकार, एक के बाद एक विभिन्न वैश्विक आर्थिक संस्थान भारत में आर्थिक विकास दर के मामले में अपने अनुमानों को लगातार सुधारते-बढ़ाते जा रहे हैं। इस प्रकार, आगे आने वाले समय में भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में योगदान भी लगातार बढ़ता जाएगा और सम्भव है कि कालचक्र में ऐसा परिवर्तन हो कि भारत एक बार पुनः वैश्विक स्तर पर अपने आर्थिक योगदान को 32 प्रतिशत के स्तर तक वापिस ले जाने में सफल हो जाए।
हिन्दुस्थान समाचार/ मयंक/संजीव