विपक्षी एकता की नाकाम कवायद

06 Jul 2023 11:00:10
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी दलों की 23 जून को पटना में एक बैठक हुई। इसमें 15 विपक्षी दलों के 32 नेताओं ने शिरकत की। मगर आम आदमी पार्टी ने विपक्षी एकजुटता की इस पूरी कवायद पर यह कहकर सवाल खड़ा कर दिया कि जब तक कांग्रेस दिल्ली से संबंधित केंद्र के अध्यादेश पर अपना रुख साफ नहीं करती है तब तक पार्टी उसकी मौजूदगी वाली किसी भी विपक्षी बैठक में शामिल नहीं होगी।
 
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बिहार की राजधानी पटना में 15 दलों के नेता 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की रणनीति बनाने के लिए जुटे। उनका मकसद था, नरेन्द्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनने से रोकना। 23 जून को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आवास पर संपन्न इस बैठक में कांग्रेस, आरजेडी, जेडीयू, आप, जेएमएम, एनसीपी, शिवसेना, टीएमसी, सपा, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, सीपीआई, सीपीआई (एमएल), सीपीएम व डीएमके के दो दर्जन से अधिक नेताओं ने भाग लिया। इनमें पांच वर्तमान व छह पूर्व मुख्यमंत्री हैं। इन नेताओं में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, शरद पवार, ममता बनर्जी, एम के स्टालिन, अरविंद केजरीवाल, भगवंत सिंह मान, डी राजा, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुला, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, नीतीश कुमार व लालू प्रसाद यादव प्रमुख थे।
बिहार की धरती कई ऐसे आंदोलनों की जननी रही है, जिसका देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह रहा हो या फिर जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति। इन आंदोलनों ने तत्कालीन सत्ता की नींव हिलाकर रख दी थी। लालू प्रसाद ने भी समय-समय पर अपनी रैलियों से कभी जनाधार का प्रदर्शन किया तो कभी अपने वोट बैंक के खिलाफ भेदभाव नहीं करने की चेतावनी दी।
तीन घंटे से अधिक समय तक चली इस बैठक में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए 15 दलों के नेताओं ने एकसाथ चलने की रणनीति पर काम करने का निश्चय किया। उम्मीद थी कि विपक्षी गठबंधन का संयोजक नीतीश कुमार को बनाने की घोषणा की जाएगी, किंतु मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक के बाद कहा कि अब इस पर निर्णय शिमला में 10 से 12 जुलाई के बीच होने वाली अगली बैठक में लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि शिमला की बैठक में एजेंडा बनाया जाएगा।
हरेक राज्य में कैसे काम करना होगा, इस पर चर्चा हुई है। हर राज्य के लिए अलग रणनीति तैयार की जाएगी। ममता बनर्जी ने कहा कि इस बैठक में तीन बातों पर सहमति बनी। पहली कि हम सभी एक हैं, दूसरी कि हम सब साथ लड़ेंगे और तीसरी कि हमारी लड़ाई जनता के लिए है। यदि इस बार बीजेपी फिर से सत्ता में आ गई तो अगला चुनाव ही नहीं होगा। वहीं, नीतीश कुमार ने कहा कि इस बैठक में सभी नेताओं ने अपनी-अपनी बात रखी। मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में अगली बैठक होगी। उसमें गठबंधन का नाम, संयोजक व शीट शेयरिंग के फार्मूले जैसी आगे की बातों को तय किया जाएगा।
चार घंटे तक पटना में चली मैराथन बैठक में विपक्षी नेताओं ने साझा हितों पर तालमेल बिठाकर अगला लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने का मंसूबा जरूर पाला। लेकिन बैठक खत्म होने से पहले ही इसमें बिखराव साफ-साफ दिखा।
वन अगेंस्ट वन अर्थात एक के खिलाफ एक। तात्पर्य यह कि भाजपा के एक उम्मीदवार के खिलाफ पूरे विपक्ष का एक ही प्रत्याशी लड़ेगा। नीतीश कुमार के इस फार्मूले से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अगर नया समीकरण बना तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा समेत एनडीए को करीब 350 सीटों पर कड़ी टक्कर का सामना करना होगा। जिन राज्यों के प्रमुख नेताओं की इस बैठक में भागीदारी रही, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार, झारखंड, पंजाब, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व दिल्ली को मिलाकर लोकसभा की कुल 283 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस शासित चार राज्यों में 68 सीटें हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसी स्थिति में इसका सीधा असर 12 राज्यों की करीब 328 सीटों पर पड़ने के आसार हैं।
वर्तमान में इनमें से 165 पर बीजेपी तथा 128 पर विपक्षी पार्टियों के सांसद हैं। शेष सीटें अन्य दलों के पास हैं, जो इस महागठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। विपक्षी एकता की इस बैठक में शामिल हो रहे क्षत्रपों के राज्यों के पास लोकसभा की 90 सीटें हैं। इनमें बिहार में जेडीयू के पास 16, पश्चिम बंगाल में टीएमसी के पास 23, महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) के पास 18 व एनसीपी के पास चार, तमिलनाडु में डीएमके के पास 23, पंजाब व दिल्ली में आप के पास दो और जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस के पास तीन तथा झारखंड में जेएमएम के पास एक सीट है।
2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक 185 सीटें ऐसी हैं, जहां भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दलों से था। वहीं, देश में 97 सीटें ऐसी हैं, जहां क्षेत्रीय दल ही नंबर एक या नंबर दो पर थे, यानी मुकाबला इन्हीं के बीच था। यहां भाजपा या कांग्रेस तीसरे या चौथे नंबर पर थी। इनमें 43 सीटों पर विपक्ष काबिज है ही तो इनके एकजुट लड़ने की स्थिति में शेष 54 सीटों पर भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। वहीं, 71 सीटों पर कांग्रेस व क्षेत्रीय दल आमने-सामने थे। जबकि 190 सीटों पर भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था। अभी इनमें से 175 पर भाजपा का कब्जा है।
बहरहाल, राहुल गांधी व ममता बनर्जी ने बैठक में भाग तो लिया है, लेकिन सीट बंटवारे के फार्मूले पर दोनों कितने सहमत होंगे, यह कहना मुश्किल है। जिन राज्यों की पार्टियों ने बैठक में हिस्सा लिया है, उनमें से अधिकांश में क्षेत्रीय दलों का मुकाबला कांग्रेस से ही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि क्षेत्रीय दलों के अपने-अपने स्वार्थ हैं, उनकी अलग-अलग राजनीति है। ऐसे में किसी अन्य के प्रभुत्व व रणनीति को वे कैसे स्वीकार करेंगे, यह आने वाला समय बताएगा। शायद यही वजह थी कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि सबको कुर्बानी देनी होगी, तभी हम एकजुट हो सकेंगे। किसी का दबदबा नहीं चलेगा।
जानकारों का मानना हैं कि पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो यह साफ है कि अगर वन अगेंस्ट वन का फार्मूला तय होता है तो सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को उठाना होगा। वह करीब पौने दो सौ सीटों पर ही अपने प्रत्याशी खड़े कर पाएगी, जबकि पार्टी बार-बार तीन सौ से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कहती आ रही है। इसमें संशय है कि वह इसके लिए तैयार होगी।
गैर भाजपाई दलों को अहसास हो गया है कि एक-दूसरे से हाथ मिलाए बिना सत्ता परिवर्तन संभव नहीं है। नीतीश कुमार ने एक मंच पर लाकर अपना काम कर दिया है, अब इन पार्टियों पर है कि वे क्या करते हैं और कैसे आगे बढ़ते हैं। यह एक सकारात्मक संकेत है। क्षेत्रीय दलों के नेताओं की अपनी जमीन है। ये दल आसानी से कांग्रेस के पाले में आने वाले नहीं हैं। यही असली चुनौती होगी। वैसे इनकी खटास बैठक के तुरंत बाद सामने आ गई। अरविंद केजरीवाल के दिल्ली पहुंचने के बाद आप पार्टी ने एक बयान जारी कर कहा कि केंद्र द्वारा जारी अध्यादेश पर कांग्रेस अपना रुख साफ करे, नहीं तो उसके साथ किसी बैठक में पार्टी भाग नहीं लेगी। कांग्रेस को छोड़ पटना की बैठक में भाग लेने वाले 11 दलों ने इस अध्यादेश का राज्यसभा में विरोध करने का भरोसा दिया है। इन पार्टियों ने कांग्रेस से केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल का समर्थन करने को कहा है। बहरहाल इतना तो तय है कि अगर नए सियासी समीकरण ने आकार ले लिया तो एनडीए को 2024 के लोकसभा के चुनाव में कड़ी चुनौती मिलेगी।
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