देवभूमि से श्रीगणेश

24 Jul 2023 13:15:30

CM Pushkar Dhami
“ देश में समान नागरिक संहिता की चर्चा के बीच उत्तराखंड ऐसा राज्य बनने जा रहा है, जो इस कानून को सबसे पहले लागू कर सकता है। उत्तराखंड में यूसीसी का ड्राफ़्ट लगभग तैयार है। ऐसे में यह तय है कि जल्द ही धामी सरकार यूसीसी का श्रीगणेश देवभूमि से करने जा रही है। ”
 
इन दिनों देशभर में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) की चर्चा तेज हो गई है। ऐसे भी भाजपा के तीन मूल मुद्दों राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और यूसीसी में से दो मुद्दों का हल मोदी के अब तक के शासनकाल में हो गया है। तीसरे मुद्दे पर सरकार धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। भाजपानीत कुछ राज्य सरकारें इस पर गंभीरता से काम कर रही हैं। वहीं उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां बहुत जल्द यूसीसी लागू हो सकता है। क्योंकि इस पहाड़ी प्रदेश के यूसीसी का ड्राफ़्ट तैयार हो गया है। बहुत संभावना है कि धामी सरकार द्वारा बनाई गई विशेषज्ञ समिति इस महीने के अंत तक यूसीसी का ड्राफ़्ट और अपनी रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंप दे। कुछ दिनों पहले ही समिति ने इसकी जानकारी दी है।
पिछले महीने की 30 तारीख को धामी सरकार द्वारा बनाई गई समान नागरिक संहिता विशेषज्ञ समिति ने ऐलान किया कि जल्द ही ड्राफ़्ट को अंतिम रूप देकर सरकार को सौंप दिया जाएगा। ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष एवं उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रसाद देसाई ने दिल्ली में बताया कि यूसीसी का मसौदा लगभग तैयार हो गया है। जल्द ही उत्तराखंडवासियों को यूसीसी जैसा अहम कानून मिल सकता है। समिति के सदस्य लंबे समय से इसका ड्राफ्ट बनाने में जुटे हुए थे। समिति के सदस्यों ने दिल्ली में प्रवासी उत्तराखंडियों से भी इसके मसौदों पर राय ली थी। इसके बाद वे दिल्ली में ही ड्राफ्ट रिपोर्ट को अंतिम रूप देने में लग गए। इस विशेषज्ञ समिति का गठन पिछले साल 27 मई को किया गया था। समिति के सदस्य एवं उत्तराखंड के मुख्य सचिव रहे शत्रुघ्न सिंह ने बताया, 'ड्राफ़्ट तैयार करने के दौरान हमें ऑनलाइन और ऑफलाइन
ढाई लाख से अधिक सुझाव मिले हैं।'

यूनिफार्म सिविल कोड
समिति से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश के सभी 13 जिलों में वहां के स्थानीय लोगों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, अलग-अलग धार्मिक समुदायों आदि से समिति एवं उनकी उपसमिति ने चर्चा की है। इसकी शुरुआत उत्तराखंड के प्रथम सीमावर्ती गांव माणा से हुई थी। वहां आउटरीच संवाद कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। समिति ने इस तरह की कुल 40 बैठकें की हैं। इन बैठकों में समिति ने आम और अलग-अलग वर्गों के खास लोगों से चर्चा की। यही नहीं इन सबसे इतर उपसमिति की देहरादून में 143 बार बैठक हुई। एक दिन में कई बैठक की गई थी। सेवानिवृत्ति न्यायाधीश रंजना देसाई बताती हैं, 'हमने राजनीतिक दलों, राज्य वैधानिक आयोगों के प्रतिनिधियों, विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के नेताओं के साथ भी चर्चा की। सभी से चर्चा के बाद समिति ने चुनिंदा देशों में वैधानिक ढांचे, विभिन्न कानूनों और असंहिताबद्ध कानूनों का अध्ययन किया।'
महिलाओं और बुजुर्गों पर कई महत्वपूर्ण सिफारिश
समिति की अध्यक्ष देसाई या सदस्यों ने ड्राफ़्ट के बिंदुओं के बारे में कुछ भी बताने से मना कर दिया। लेकिन सूत्रों के हवाले से पता चला है कि समिति ने ड्राफ़्ट में सभी महिलाओं को समान अधिकार देने की सिफारिश की है। इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई समेत सभी धर्म की महिलाओं का परिवार और माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार होगा। बताया जा रहा है कि समिति ने बेटियों की शादी की उम्र बेटों के बराबर 21 साल करने की सिफारिश की है। उत्तराखंड यूसीसी में महिला और पुरुष दोनों को बहुविवाह करने पर रोक लगाने की सिफारिश है। देश में बढ़ रहे लिव इन रिलेशनशिप को ध्यान में रखते हुए समिति ने इसको लेकर भी कुछ सिफारिश की है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण है ऐसे कपल को लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए पंजीकरण कराने की सिफारिश की गई है। बुजुर्गों के लिए भी कुछ अहम सिफारिश यूसीसी में किया गया है, ऐसा सूत्रों ने बताया है। उनके मुताबिक परिवार की बहू और दामाद को भी अपने ऊपर निर्भर बुजुर्गों की देखभाल करना अनिवार्य बनाया गया है। यानी बुजुर्गों की जिम्मेदारी सिर्फ बेटे और बेटियों की नहीं होगी।
गोद ली गई संतानों को समान अधिकार
उत्तराखंड यूसीसी में गोद लिये गये बच्चों के अधिकारों को भी एक समान बनाने की सिफारिश की गई है। हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत दत्तक पुत्र या पुत्री को जैविक संतान के बराबर ही अधिकार मिला हुआ है। लेकिन मुस्लिम, पारसी और यहूदी समुदायों में ऐसा नहीं है। इसलिए उत्तराखंड यूसीसी में इन समुदायों द्वारा गोद लिये गये बच्चों को भी बराबर अधिकार देने की संभावना है। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड यूसीसी में अनाथ बच्चों की गार्जियनशिप की प्रक्रिया को आसान और मजबूत बनाने का भी प्रस्ताव है।
 
मुस्लिम महिलाएं समान नागरिक संहिता के पक्ष में
यूसीसी पर चल रही बहस के बीच कई संस्थाएं देश भर में सर्वे करवा रही हैं। अधिकांश सर्वे रिपोर्ट में एक बात कॉमन रूप से सामने आ रही है कि आधे से अधिक मुस्लिम महिलाएं समान नागरिक संहिता के पक्ष में हैं। मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि इससे उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार मिलेगा और उनके जीवन स्तर में सुधार होगा। एक निजी समाचार चैनल की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 67 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने शादी, तलाक, गोद लेने और संपत्ति के अधिकार के लिए इस कानून का समर्थन किया है। साथ ही 78 प्रतिशत मुस्लिम महिलाओं ने कहा है कि पुरुष और महिला दोनों की शादी की उम्र 21 वर्ष ही होनी चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि यह सर्वे शहरी क्षेत्रों या पढ़ी-लिखी मुस्लिम महिलाओं के बीच किया गया है। सर्वे में क्षेत्र, महिलाओं की उम्र, उनकी शिक्षा सभी का ध्यान रखा गया है। उच्चतम न्यायालय में वकालत कर रही सुबुही खान देशभर में समान नागरिक संहिता लागू करने की पक्षधर हैं। उनका मानना है कि इससे कुछ समुदायों में व्याप्त कुरीति का अंत होगा। वह कहती हैं, 'समान संहिता न्याय और कानून की एकरूपता के बारे में है, न कि पारिवारिक समारोहों, संस्कारों और रीति-रिवाजों के बारे में। इससे महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार मिलेंगे।' वह आगे यह भी बताती हैं कि हमारा संविधान अपने सभी नागरिकों को न्याय और समानता का अधिकार देता है। फिर एक मुस्लिम महिला को अपनी हिंदू बहन के समान अधिकार न होना क्या धार्मिक भेदभाव नहीं है? वह कहती हैं, 'संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य को अपने सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने के निर्देश है। फिर भी भेदभाव है। मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम 1937, महिला-पुरुष विभेद करता है। इस कारण यह संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
Powered By Sangraha 9.0