प्राणायाम: रोग से करे निरोग

22 Jun 2023 17:10:14
हमारा जीवन श्वास पर निर्भर है। जितनी गहरी एवं लंबी श्वास ली जाएगी, उतनी ही श्वास की अवधि बढ़ती जाएगी। श्वास की अवधि बढ़ेगी, तो आयु की अवधि बढ़ेगी। प्राणायाम इसी अवधि को बढ़ाने की प्रक्रिया है।

प्राणायाम 
समस्त शारीरिक रोगों का विकास हमारी मानसिक दशा पर निर्भर करता है। योग के द्वारा रोगों से बचाव किया जा सकता है। महर्षि पतंजलि के अनुसार प्राणायाम योग का चौथा अंग है और इसका अभ्यास करने से अनेक प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक रोगों से बचाव होता है। महर्षि पतंजलि के योग दर्शन के अनुसार प्राणायाम का अर्थ है ‘तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:’ अर्थात आसन की सिद्धि होने पर श्वास-प्रश्वास की गति को रोकना प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम करने के लिए श्वास अंदर लेने को पूरक कहते हैं और श्वास को अंदर रोक कर रखने को आंतरिक कुंभक कहते हैं। श्वास को बाहर छोड़ने को रेचक कहते हैं और श्वास को बाहर ही रोक कर रखने को बा‘ कुंभक कहते हैं। इस प्रकार प्राणायाम करने के लिए पूरक आंतरिक कुंभक रेचक एवं बा‘ कुंभक क्रियाएं की जाती हैं। योग दर्शन के अनुसार प्राणायाम करने से ज्ञान रूपी प्रकाश को ढकने वाला अज्ञान का आवरण हट जाता है एवं मन में धारणा की योग्यता आ जाती है। धारणा योग का ही छठा अंग है।
संसार में जितने भी प्राणी हैं वह श्वास के सूत्र से सर्वत्र व्याप्त जीवनी शक्ति से जुड़े हुए हैं एवं उस पर निर्भर रहते हैं। जैसे जल में रहने वाली मछली जल से जुड़ी रहती है। श्वास लेना ही जीवित होने का प्रमाण होता है। प्राणायाम करना श्वास का लेना एवं छोड़ना मात्र नहीं होता अपितु वायु के साथ प्राणशक्ति, जीवनी शक्ति को भी साधना होता है। इसकी वृद्धि करना होता है जो कि प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से होता है। प्राणायाम व्यक्ति को 100 वर्ष जीने की क्षमता प्रदान करता है। उदाहरण के तौर पर कछुआ 1 मिनट में 4 से 7 बार सांस लेता है इसलिए उनकी आयु बहुत अधिक होती हैं जबकि मनुष्य 1 मिनट में औसतन 15 से 20 बार सांस लेता है, इसलिए उसकी आयु कम हो जाती है। प्राणायाम का प्रभाव हमारे शरीर की मुख्य नाड़ियों जैसे ईड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना नाड़ी पर पड़ता है। जिससे शरीर में जीवनी शक्ति का संचार सुचारू रूप से होता है।
प्राणायाम कैसे किया जाए?
शुरू में लंबी गहरी श्वास एवं धीमी श्वास लेने एवं छोड़ने का अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम करते समय सही ढंग से श्वास लेने और छोड़ने पर पूरा ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। इसमें लयबद्धता एवं निश्चित क्रम का होना बहुत आवश्यक है। इसमें किसी भी तरह की शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि धीरे-धीरे अभ्यास बनाना चाहिए। जब हम काम-क्रोध मनो विकारों से ग्रसित होते हैं, तब हमारी श्वास तेज चलने लगती है एवं छोटी-छोटी श्वास आने लगती हैं और हम तनाव का अनुभव करने लगते हैं। गहरी और लंबी श्वास लेने से इसके विपरीत स्थिति हो जाती हैं। तब हम शांति का अनुभव करते हैं। यही स्थिति हमें मानसिक रोगों से बचाती हैं।
पहले नाड़ी शोधन प्राणायाम करके नाक के दोनों स्वरों (दाहिनी एवं बाईं नासिका) को शुद्ध कर लेना चाहिए। नाड़ी शोधन का अभ्यास श्वास को खींचकर पूरक करें, पूरक में जितने सेकंड लगे उससे चौगुना समय अंदर रोकने में लगाना चाहिए। इसे कुंभक करना कहते हैं। जितनी देर आसानी से अंदर श्वास रोकी जा सके, उतनी ही देर तक रुकना चाहिए। श्वास छोड़ने को रेचक क्रिया कहते हैं। श्वास धीरे-धीरे छोड़ना चाहिए और जितने सेकेंड श्वास लेने में लगे हो उससे दोगुनी सेकंड सांस छोड़ने में लगाना चाहिए। हम मन में गिनती गिनते हुए इसका हिसाब रख सकते हैं। यह एक प्राणायाम हुआ। समय और सुविधा के अनुसार यह विधि बार-बार दोहराना चाहिए।
निरंतर प्राणायाम के अभ्यास से मन में एकाग्रता, स्मरण शक्ति, दिमागी ताकत, मनोबल, संकल्प शक्ति आदि में वृद्धि होती है। चेहरा तेजस्वी एवं कांतिमय रहता है। फेफड़े मजबूत रहते हैं, रक्त शुद्ध होता है। मानसिक एवं शारीरिक विकार दूर होते हैं। शरीर की सब धातु में शुद्धता होती हैं, मन में पवित्रता आती है, बुरे विचार व मानसिक भय दूर रहते हैं। नींद अच्छी आती है। मानसिक शक्ति का अद्भुत विकास होता है। अत: रोग से निरोग की प्राप्ति के लिए हमें प्रतिदिन प्राणायाम का अभ्यास अवश्य करना चाहिए।
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