विभूति परंपरा के नायक

युगवार्ता    10-Jun-2023   
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ऐतिहासिक तौर पर छत्रपति शिवाजी महाराज का समय भारतीय मध्यकाल का सबसे मुश्किल समय रहा है। औरंगजेब का शासन भी उसी समय रहा जिसके सूबेदार शाइस्ता खान ने डेढ़ लाख की सेना लेकर पुणे के आस-पास के क्षेत्र में तीन वर्ष तक लूटपाट की। लेकिन छोटे से सैनिक समूह को लेकर शिवाजी महाराज ने उसे परास्त कर दिया।

छत्रपति शिवाजी महाराज
भारत में महान विभूतियों की एक लंबी परंपरा है। इसी परंपरा के नायक हैं शिवाजी महाराज। भारतीय चिंतन परंपरा में शिवाजी के राज्याभिषेक दिवस का बहुत बड़ा महत्त्व है। शिवाजी का राज्याभिषेक ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है जिसका एक नाम हिन्दू साम्राज्य दिवस भी है। भारतीय पंचांगों के अनुसार यह इस बार 2 जून को है। यह बहुत आवश्यक है कि आज की पीढ़ी को भारतीय परंपरा के गौरव से परिचित कराया जाय।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था ‘क्या शिवाजी से बड़ा कोई नायक, संत, भक्त और राजा है? हमारे महान ग्रंथों में मनुष्यों के जन्मजात शासक के जो गुण हैं, शिवाजी उन्हीं के अवतार थे। वह देश की वास्तविक चेतना का प्रतिनिधित्व करते थे।’
वैसे सामान्य तौर पर देखा जाय तो स्वतंत्र भारत के इतिहासकारों ने शिवाजी महाराज के बारे में बहुत मनोयोग से नहीं लिखा। लेकिन उनका कार्यकाल ऐसा था जिसे छोड़कर कोई भी इतिहासकार आधुनिक युग का इतिहास पूरा नहीं कर सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ऐसा संगठन है जो शिवाजी के राज्याभिषेक दिवस को हिंदू साम्राज्य दिवस के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर उत्सव रूप में मनाता है। शिवाजी महाराज जन नायक थे। उनकी प्रेरणा स्रोत बचपन से उनकी माता जीजाबाई थीं। उन्होंने रामायण, महाभारत आदि अनेक पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों को सुनकर शिवाजी के मन में राष्ट्रप्रेम का जो बीज बोया वह हिन्दू साम्राज्य के शासक के रूप में बृहद पेड़ बना।
ऐतिहासिक तौर पर शिवाजी महाराज का समय भारतीय मध्यकाल का सबसे मुश्किल समय रहा है। औरंगजेब का शासन भी उसी समय रहा जिसके सूबेदार शाइस्ता खान ने डेढ़ लाख की सेना लेकर पुणे के आस-पास के क्षेत्र में तीन वर्ष तक लूटपाट की। लेकिन छोटे से सैनिक समूह को लेकर शिवाजी महाराज ने उसे परास्त कर दिया। इस प्रकरण की तह में हम और हमारे जैसे अनेक भारतीय क्यों नहीं जा पाते? इसे प्रारंभिक पाठ्य पुस्तकों का विशेष हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया? जिस प्रकार से मुगलों को महान बनाकर इतिहास की पुस्तकों में सजाया गया वैसी ललक छत्रपति शिवाजी महाराज को लेकर कहीं क्यों नहीं दिखी?
“शिवाजी महाराज ने हिन्दू समाज से जिन लोगों को लालच या दबाव में अलग कर दिया गया था उन्हें पुन: हिन्दू समाज में वापस लाने का बड़ा कार्य शुरू किया जिसका समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। हमारी नई पीढ़ी के प्रत्येक व्यक्ति को शिवाजी महाराज के चरित्र और गुणों का अनुकरण करना चाहिए जिससे सक्षम और संपन्न राष्ट्र का निर्माण हो सके।”
 
इस संदर्भ में हमें सबसे पहले शिवाजी महाराज के पहले की परिस्थिति को समझना चाहिए। उनके समय की परिस्थिति ऐसी थी कि जो दुश्मन थे वे तो थे ही जो अपने थे वे भी क्षणिक लाभ के लिए उसके साथ होकर विराट हिंदू समुदाय के साथ विश्वासघात कर रहे थे। बाहर और भीतर हर ओर स्थितियां एक जैसी ही थीं। लेकिन ऐसी परिस्थिति में शिवाजी महाराज कैसे छत्रपति शिवाजी महाराज बने इसके लिए हमें माता जीजाबाई के दिए गए संस्कार को अवश्य जानना चाहिए। उस समय के संकट से हिंदू समाज अपना आत्मविश्वास लगभग खो बैठा था। यही सबसे बड़ा संकट भी था। मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण और विजय नगर साम्राज्य के अवसान के बाद भारतीय जनमानस में एक निराशा जैसी स्थिति बन गई थी हताश और निराश हिंदू समाज अपने मन में दृढ़ कर चुका था कि अब हमको विदेशियों की चाकरी ही करनी है।
उस परिस्थिति में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक होना यह कोई सामान्य बात नहीं थी। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ हिंदुओं के आत्मविश्वास का उदय हुआ। युद्ध की व्यवस्थित और बिलकुल नई रणनीति से भारतीयों की विजय पताका लहराई। भारत की तब तक की युद्धनीति जो पूरे भारतवर्ष में चल रही थी वह सीधी और धार्मिक नीति थी। शिवाजी महाराज ने जब विरोधियों का छल छद्म देखा तो उन्होंने अपने धर्मयुद्ध की परिभाषा में बदलाव किया। उन्होंने जैसे को तैसा वाली नीति अपनाई। इसी नीति और रणनीति के साथ शिवाजी महाराज की विजय हुई।
शिवाजी महाराज ने हिन्दू समाज से जिन लोगों को लालच या दबाव में अलग कर दिया गया था उन्हें पुन: हिन्दू समाज में वापस लाने का बड़ा कार्य शुरू किया जिसका समाज पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। हमारी नई पीढ़ी के प्रत्येक व्यक्ति को शिवाजी महाराज के चरित्र और गुणों का अनुकरण करना चाहिए जिससे सक्षम और संपन्न राष्ट्र का निर्माण हो सके।
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संंतोष कुमार राय

संंतोष कुमार राय, वरिष्‍ठ लेखक
प्रारंभिक शिक्षा अपने गृह जनपद पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के शेरपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय तथा अन्य विद्यालयों से प्राप्त करने के बाद। उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से। पिछले दस वर्षों से दिल्ली के विभिन्न संस्थानों में अध्यापन करते हुए पिछले 15 वर्षों से हिंदी की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखन। लगभग एक दशक तक यथावत के लिए लेखन और युगवार्ता के लिए पिछले पांच वर्षों से नियमित लेखन। इसके अतिरिक्त कई समाचार चैनलों पर समय समय पर राजनीतिक विश्लेषक के रूप में सहभागिता।