सिर्फ जीवन ही नहीं शरीर के अंदर भी संतुलन बनाना जरूरी है। स्वस्थ रहने के लिए ये संतुलन जरूरी है। हमारे सभी रोगों की जड़ में तीन असंतुलन हैं। शरीर के इन तीनों असंतुलन को दूर कर हम स्वस्थ रह सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है ये तीन असंतुलन।
हमारे शरीर को स्वस्थ रहने के लिए हमारे पेट का स्वस्थ रहना जरूरी है। हमारा पेट तभी स्वस्थ रहेगा जब हम अपने पेट के अंदर माइक्रोबियल संतुलन को बनाए रखेंगे। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि हमारे पेट के अंदर लगभग 100 अरब बैक्टीरिया होते हैं। जिनमें 1000 के आसपास पहचानी गई प्रजातियां हैं। यह माइक्रोबियल विविधता सामान्यत: हरेक स्वस्थ व्यक्तियों में मौजूद होती हैं। इनमें कई प्रजाति बहुत ही अनोखे होते हैं। पेट के अंदर बैक्टीरिया का यह तंत्र बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य करता है, जैसे- प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) की सहायता, हमें अच्छा महसूस कराने वाले सेरोटोनिन रसायन का हमारे दिमाग के अंदर उत्पादन, हमारे भोजन से ऊर्जा का उत्पादन और अवशिष्ट पदार्थों व हानिकारक तत्वों का निपटान करना। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारा शरीर हानिरहित बैक्टीरिया के समूहों से भरा है। हमारे पेट में अच्छे बैक्टीरिया, खराब बैक्टीरिया और रोगाणु जैसे वायरस और फंगस भी होते हैं। इनमें अधिकतर बैक्टीरिया हमारे स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं और हमारे शरीर की प्राकृतिक क्रियाओं में योगदान करते हैं। वहीं अच्छे बैक्टीरिया यह सुनिश्चित करते हैं कि पेट के अंदर अच्छे बैक्टीरिया का संपूर्ण जीव के साथ सहजीवन बना रहे। इससे अच्छे बैक्टीरिया और जीव, दोनों का फायदा होता है। इसे ही माइक्रोबियल संतुलन (यूबायोसिस) कहते हैं।
माइक्रोबियल असंतुलन
कभी-कभी हमारे पेट के अंदर अच्छे बैक्टीरिया अपना सामान्य संतुलन गंवा देते हैं। इससे पेट के अंदर सूक्ष्मजीव तंत्र बिगड़ने लगता है। और हमारे पेट के अंदर अच्छे बैक्टीरिया में कमी और खराब बैक्टीरिया में वृद्धि होने लगती है। परिवर्तन की इस स्थिति को डिस्बायोसिस या माइक्रोबियल असंतुलन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो माइक्रोबियल विविधता में कमी को माइक्रोबियल डिस्बायोसिस या असंतुलन कहते हैं। यह असंतुलन ही हमारे आंत के स्तर के विघटन का मूल कारण है। इसकी वजह से हमारे आंतों की पारगम्यता या लीकी गट (छिद्रयुक्त आंत) बढ़ जाती है। और हमारे शरीर के अंदर बीमारियों का जन्म होता है। हमारे शरीर के अंदर यह असंतुलन कई कारणों से उत्पन्न हो सकता है- खराब आहार, अतिरिक्त भोजन, तनाव, एंटीबायोटिक चिकित्सा, लैक्सेटिव्स का दुरूपयोग या हार्मोनल उपचार। इस असंतुलन का लक्षण न केवल पेट के स्तर पर बल्कि पेट से बाहर भी देखे-समझे जा सकते हैं, जैसे- कब्ज, डायरिया, ताकत में कमी, सूजन, सामान्य अस्वस्थता, मिजाज में परिवर्तन और नींद-संबंधी विकार आदि शामिल हैं। डॉक्टरों का मानना है कि कब्ज, डायरिया, सूजन, क्रोहन रोग, मधुमेह (टाइप 1 और टाइप 2), हृदय रोग, मोटापा, गठिया सहित कई पुरानी स्वास्थ्य स्थितियों में कम माइक्रोबियल विविधता देखने को मिलती है। बुजुर्गों, धूम्रपान करने वाले और एंटीबायोटिक उपचार के बाद भी माइक्रोबियल असंतुलन देखने को मिलता है। हालांकि कारण और प्रभाव के बीच हमेशा संबंध स्पष्ट नहीं होता है। फिर भी इतना स्पष्ट है कि पेट के अंदर माइक्रोबियल विविधता बनाए रखना जरूरी है। इस सूक्ष्मजीव तंत्र का संतुलन बनाए रखना बहुत आवश्यक है ताकि यह हमारे शरीर को स्वस्थ रखने का अपना कार्य करना जारी रख सकें। अर्थात हमें अपने आंतों के गट को बेहतर बनाए रखना जरूरी है। तभी हमारे शरीर के अंदर बेहतर पाचन शक्ति, बेहतर मेटाबॉलिज्म और मजबूत इम्यून सिस्टम होगा। केवल श्री अन्न के खमीरी दलिया या मिलेट अंबली में ही वह औषधीय गुण है जो हमारे आंतों के गट को ठीक कर सकता है। अगर हमें स्वस्थ रहना है तो हमें श्री अन्न का खमीरी दलिया या मिलेट अंबली का सेवन करना चाहिए।
हार्मोनल असंतुलन
हमारे शरीर की बेहतर कार्य प्रणाली के लिए हमारे हार्मोन्स का संतुलित रहना बहुत आवश्यक है। हार्मोन्स ऐसे रसायन हैं जो रक्त के माध्यम से अंगों, त्वचा, मांसपेशियों और अन्य ऊतकों तक संदेश पहुंचाकर शरीर में विभिन्न कार्यों के बीच समन्वय बनाए रखने में मदद करते हैं। यही हमारे शरीर को संदेश के माध्यम से बताते हैं कि क्या करना है और कब करना है? इन हार्मोन्स के संतुलन में थोड़ी-सी भी गड़बड़ी का असर तुरंत हमारी भूख, नींद और तनाव के रूप में दिखने लगता है। जब हमारे शरीर में कोई हार्मोन ज्यादा बनता है या फिर बहुत कम, तो इसे हार्मोनल असंतुलन कहते हैं। इसे समय रहते ठीक करना जरूरी है। डॉक्टरों का कहना है कि शरीर में नजर आने वाले कुछ लक्षण हार्मोनल असंतुलन के बारे में बताते हैं जिन्हें जानकर आप अपने शरीर में हो रहे बदलावों के बारे में जान सकते हैं। हार्मोनल असंतुलन के कारण महिला और पुरुष में अलग-अलग तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकते हैं। हार्मोन्स का सीधा असर हमारे आंतरिक संतुलन, मेटाबॉलिज्म, इम्यून सिस्टम, प्रजनन तंत्र, शारीरिक विकास, मूड और नींद-जागने का चक्र आदि पर पड़ता है। कुछ भोजन (ज्यादा काबोर्हाइड्रेट युक्त और ज्यादा प्रोटीन युक्त भोजन), कुछ दवाएं, इलाज या सेहत से जुड़ी समस्याएं भी शरीर में हार्मोन्स को प्रभावित कर सकती हैं। इस असंतुलन के कारण शरीर में कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। यहां तक कि मुंहासे, मोटापा, डायबिटीज, थायरॉइड से लेकर बांझपन तक की समस्या के लिए भी हार्मोनल असंतुलन एक कारण हो सकता है। हार्मोनल असंतुलन के कारण गैस, कब्ज, बदहजमी होना, अचानक वजन बढ़ना, कमर पर चर्बी बढ़ना, नींद कम आना या नहीं आना, तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन, बहुत पसीना आना, सेक्स की इच्छा में कमी, बालों का झड़ना, असमय बाल सफेद होना, दाढ़ी घनी न आना, ज्यादा प्यास लगना और ज्यादा ठंड या गर्मी लगना जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इन समस्याओं से बचाव के लिए हमें निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। इसके लिए जरूरी है प्राकृतिक पोषक आहार और पर्याप्त नींद लेना। साथ ही नियमित योग व ध्यान करना चाहिए। जंक फूड और तले-भुने खाद्य पदार्थ जिनमें कैलोरी की मात्रा अधिक हो उनसे परहेज करें। पोषक आहार के रूप में श्री अन्न या मिलेट का भोजन करें जिससे शरीर को जरूरी विटामिन, मिनरल्स और प्रोटीन मिलते रहें।
“सभी रोगों की जड़ में ये तीन असंतुलन हैं-माइक्रोबियल असंतुलन, हार्मोनल असंतुलन और ग्लूकोज असंतुलन। अगर हम इन्हें दूर कर लेते हैं तो हमें अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ” - डॉ. खादर वली
ग्लूकोज असंतुलन
हमारे शरीर के रक्त में ग्लूकोज या शुगर की मात्रा पूरे दिन और रात में एक समान नहीं रहती है। मधुमेह के मरीजों के लिए रक्त शर्करा को संतुलित रखना एक जरूरी काम है जिसे वे हमेशा करते हैं। लेकिन जो लोग मधुमेह के मरीज नहीं उनका क्या? क्या वे पूरे दिन अपने ब्लड शुगर के संतुलन पर नजर रखते हैं? निश्चित रूप से कह सकते हैं वे नजर नहीं रखते। सामान्यत: ब्लड शुगर का टेस्ट 70 से 99 मिलीग्राम/डीएल की सीमा में होना चािहए। यदि कोई व्यक्ति खाने के बाद अपने ब्लड शुगर का टेस्ट कराता है तो ब्लड शुगर 140 मिलीग्राम/डीएल से कम होना चाहिए। जब हमारे खून में शुगर की मात्रा घटती-बढ़ती है तो उसे ग्लूकोज असंतुलन कहते हैं। खून में इस ग्लूकोज के असंतुलन के कारण व्यक्ति थकान, चिड़चिड़ापन, कमजोरी, धुंधली दृष्टि, सिरदर्द, बार-बार पेशाब आना और प्यास में वृद्धि का अनुभव कर सकते हैं। यह शरीर के संकेत करने का तरीका है कि आपके खून में ग्लूकोज का स्तर सामान्य सीमा के भीतर नहीं है। ऐसी स्थिति में कई ऐसे तरीके हैं जिनसे एक सामान्य व्यक्ति अपने खून में ग्लूकोज को संतुलित रख सकता है। हम आजकल चावल या गेहूं को मुख्य भोजन के रूप में शामिल करते हैं। चावल या गेहूं के खाने से हमारे खून में ग्लूकोज का स्तर एकाएक बढ़ जाता है। इसकी जगह पर हमें पोषक तत्वों और फाइबर से युक्त पारंपरिक अनाज श्री अन्न या मिलेट का भोजन करना चाहिए, क्योंकि श्री अन्न या मिलेट खाने से एकाएक ग्लूकोज का स्तर नहीं बढ़ता। दूसरी तरफ एक ही भोजन में हम बहुत अधिक या बहुत कम भोजन करते हैं। उदाहरण के तौर पर, हम नाश्ता छोड़ दोपहर का भोजन बहुत अधिक करते हैं। नाश्ता नहीं करने के कारण सुबह खून में ग्लूकोज का लेवल बहुत कम होता है। लेकिन दोपहर में हम अपने पेट को उच्च कैलोरी और चीनी से अधिक भर देते हैं। खून में ग्लूकोज की मात्रा में यह अचानक परिवर्तन (निम्न स्तर से उच्च स्तर की ओर जाना) हमारे स्वस्थ के लिए ठीक नहीं है। इसलिए एक-दो बार बहुत ज्यादा न खाकर पूरे दिन में तीन या चार बार संतुलित भोजन करना ही स्वस्थ विकल्प है। हमारे लिए बेहतर विकल्प यही है कि हम श्री अन्न (मिलेट) का सेवन करें। यह औषधीय गुणों से युक्त पारंपरिक अनाज है। वहीं तनाव की स्थिति में हमारे शरीर में तनाव हमारे हार्मोन को बढ़ाता है जो हमारे शरीर में जमा ग्लूकोज को आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए खून में अचानक उपलब्ध होने के लिए प्रेरित करता है। और इस तरह तनाव खून में ग्लूकोज के असंतुलन का कारण बनता है। इसलिए तनाव से बचने की कोशिश करें। व्यायाम नहीं करना भी हमारे खून में ग्लूकोज के संतुलन को प्रभावित करता है। इसकी वजह से हम अपने शरीर में एकत्रित अतिरिक्त ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पाते। व्यायाम करने से हमारे शरीर में हर जगह रक्त और ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद मिलती है। इससे हमारे शरीर के खून में ग्लूकोज की मात्रा को संतुलित रखने में भी मदद मिलती है।