केंद्रीय वित्त मंत्री ने इस बजट में गरीब कैदियों को बहुत बड़ी खुशखबरी दी है। अब पैसे की कमी के कारण जो गरीब कैदी जमानत या जुर्माने की रकम जमा नहीं कर पाएंगे, उनकी राशि केंद्र सरकार भरेगी।
26 नवंबर यानी संविधान दिवस। देश की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उच्चतम न्यायालय में वहां के न्यायधीशों और अधिवक्ताओं को संबोधित कर रही थीं। अपने संबोधन में उन्होंने एक ऐसे गंभीर मुद्दे को रखा, जिसकी मांग कई सामाजिक कार्यकर्ता लंबे समय से कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कई मौकों पर इसके पक्ष में अपनी स्पष्ट राय रख चुके हैं। वह मुद्दा गरीब लोगों से जुड़ा था, जो लंबे समय से जेल में बंद हैं। बहुतों को जमानत भी मिल चुकी है, फिर भी वे जेल में हैं। क्योंकि उनके पास जमानत राशि भरने का पैसा नहीं है। राष्ट्रपति मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं से आग्रह करते हुए कहा, ‘सैकड़ों-हजारों गरीब और आदिवासी जमानत मिलने के बावजूद जेलों में बंद हैं। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे जमानत भर कर अपने परिवार के पास जा सकें। ऐसे गरीबों और आदिवासियों के लिए न्यायपालिका को कुछ करना चाहिए।’
राष्ट्रपति मुर्मू की इस अपील के तीन दिन बाद उच्चतम न्यायालय हरकत में आया। उन्होंने इस मुद्दे पर बड़ा कदम उठाते हुए सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को एक सूची तैयार करने के निर्देश दिए। इस सूची में ऐसे कैदियों को शामिल करने को कहा गया, जिन्हें जमानत मिल गई है लेकिन वे जमानत की शर्तों का पालन करने में असमर्थ हैं। जिसके कारण वे अभी भी जेल में हैं। उच्चतम न्यायालय ने इन सरकारों को यह निर्देश दिया कि ऐसे कैदियों को शीघ्र जेल से बाहर निकालने की प्रक्रिया सुनिश्चित किये जाएं। उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश का बहुत ज्यादा फर्क राज्य सरकारों पर नहीं पड़ा।
एक फ़रवरी को संसद में बजट भाषण देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जेल में बंद ऐसे गरीब व्यक्तियों को वित्तीय सहायता केंद्र सरकार प्रदान करेगी, जो जुर्माना और जमानत राशि देने में असमर्थ हैं। वित्त मंत्री के इस फैसले को कई लोगों ने सराहा है। खासकर विचाराधीन कैदियों के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठन और कार्यकर्ताओं ने। दरअसल, भारत में जेलों की स्थिति बहुत ही दयनीय है। भारतीय जेलों में क्षमता से बहुत ज्यादा कैदी बंद हैं। इस कारण जेलों में इन कैदियों के मानवाधिकार और बुनियादी जरूरतों का ध्यान नहीं रखा जाता है। हजारों की संख्या में ऐसे कैदी भी बंद हैं, जिन्हें महीनों या सालों पहले जमानत मिल गई, लेकिन वे जेल से बाहर निकल नहीं सके हैं। ऐसे कैदी गरीबी के कारण खुली हवा में सांस नहीं ले पाते और अपने परिवार से दूर रहने को मजबूर हैं।
राष्ट्रपति द्वारा उठाये गए इस मुद्दे के बाद उच्चतम न्यायालय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) से इस मामले पर विचार-विमर्श कर रहा है। नालसा ने 31 जनवरी को ही उच्चतम न्यायालय को इससे संबंधित एक रिपोर्ट सौंपी है। इस ताजा रिपोर्ट में दिए आंकड़ों को देखें तो देश के विभिन्न अदालतों द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद लगभग 5,029 विचाराधीन बंदी देश की जेलों में बंद थे। इनमें से 1,417 को रिहा किया गया है। नालसा की ही रिपोर्ट से पता चलता है कि 2,357 कैदियों को कानूनी सहायता दी गई थी। दिसंबर 2022 तक महाराष्ट्र में 703 बंदी थे, जिन्हें जमानत मिल चुकी थी। लेकिन वे जमानत की शर्तों को पूरा करने में असमर्थ थे, इस कारण वे सभी जेलों में बंद थे। इनमें से 215 बंदियों को कानूनी सहायता प्रदान की गई और 314 को रिहा कर दिया गया। दिल्ली की जेलों में बंद ऐसे कैदियों की संख्या देखें तो इनकी संख्या 287 थी। इनमें से 217 को कानूनी मदद दी गई। यहां इनमें से केवल 71 कैदियों को ही रिहा किया गया।
उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन इस पर कहती हैं, ‘हमारे जेलों में क्षमता से बहुत अधिक कैदी हैं। साथ ही हजारों की संख्या जमानत पा चुके कैदियों की भी है। यह कैदियों के मौलिक अधिकारों का हनन है। सरकार द्वारा की गई पहल वाकई तारीफ के काबिल है। ऐसी मांग बहुत पहले से हो रही था। इस सरकार ने इसे पूरा किया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने साल 2021 में एक रिपोर्ट ‘प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2021’ जारी किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016-2021 के बीच जेलों में कैदियों की संख्या में 9.5 प्रतिशत की कमी आई थी। लेकिन उसमें चिंता का विषय यह था कि इस दौरान विचाराधीन कैदियों की संख्या में 45.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो गई थी।
इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि जेलों में बंद चार में से तीन कैदी विचाराधीन हैं। 31 दिसंबर 2021 तक लगभग 80 प्रतिशत कैदियों को एक वर्ष के लिए जेलों में बंद रखा गया। इसमें एक और चौंकाने वाली तस्वीर थी। इसमें कहा गया है, ‘2021 में रिहा किए गए 95 प्रतिशत विचाराधीन कैदियों को अदालतों ने जमानत दे दी थी। अदालत द्वारा जमानत मिलने के बाद केवल 1.6 प्रतिशत को ही रिहा किया गया था।
आंकड़ों की जुबानी
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक 2020 में भारत की जेलों में कुल 4,88,511 कैदी थे। इनमें करीब 76 प्रतिशत यानी 3,71,848 कैदी विचाराधीन थे।
- एनसीआरबी की रिपोर्ट को मानें तो देश के जिला जेलों में कैदियों की दर औसतन 136 फीसदी है। अर्थात 100 कैदियों के रहने की जगह पर 136 कैदी रह रहे हैं। फिलहाल, भारत में कुल 410 जिला जेल है। इनमें तकरीबन साढ़े तीन लाख से कुछ ज्यादा ही कैदियों के रहने की व्यवस्था है।
- पिछले साल दिसंबर में कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) ने एक अध्ययन किया। अध्ययन से पता चला है कि पिछले दो वर्षों में जेल में कैदियों की संख्या 23 प्रतिशत बढ़ी है।
- शोध में यह भी सामने आया है कि कोरोना महामारी के दौरान नौ लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था। नतीजा ये हुआ कि जेल में रह रहे कैदियों की औसत दर 115 फीसदी से बढ़कर 133 फीसदी हो गई।
- 2020 तक जेल में बंद कैदियों में 20 हजार से ज्यादा महिलाएं थीं। इनमें 1,427 महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी थे।