विनोबा दर्शन प्रभाष जोशी के विनोबा के साथ 39 दिन की यात्रा की रिपोर्टिंग का संकलन है। 39 दिनों की इस यात्रा में आचार्य विनोबा ने लगभग डेढ़ सौ भाषण और प्रवचन दिए थे। इस किताब का संपादन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने किया है। और संकलन कमलेश सेन ने किया है। यह पुस्तक प्रभाष जी की प्रारंभिक पत्रकारिता का साक्षी है। प्रभाष जी ने विनोबा जी की इस यात्रा की जैसी रिपोर्टिंग की है, वैसी रिपोर्टिंग अन्यत्र दुर्लभ है।
पुस्तक : विनोबा दर्शन लेखक : प्रभाष जोशी
संपादन : मनोज कुमार मिश्र
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : 499 रुपये
विनोबा दर्शन प्रभाष जोशी के विनोबा के साथ 39 दिन की यात्रा की रिपोर्टिंग का संकलन है। 39 दिनों की इस यात्रा में आचार्य विनोबा ने लगभग डेढ़ सौ भाषण और प्रवचन दिए थे। इस किताब का संपादन वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिश्र ने किया है। और संकलन कमलेश सेन ने किया है। यह पुस्तक प्रभाष जी की प्रारंभिक पत्रकारिता का साक्षी है। प्रभाष जी ने विनोबा जी की इस यात्रा की जैसी रिपोर्टिंग की है, वैसी रिपोर्टिंग अन्यत्र दुर्लभ है। प्रभाष जी ने लगातार बिनोवा जी की 39 दिनों के इंदौर प्रवास की रिपोर्टिंग की थी। इस दौरान 37 परिशिष्ट नई दुनिया में प्रकाशित हुए। यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि विनोबा जी की इस यात्रा के दौरान प्रभाष जी की उम्र मात्र 23 साल थी। उनके पास ना पत्रकारिता की कोई डिग्री थी, ना ही पत्रकारता के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण। ऐसे में विनोबा जी के 39 दिन की यात्रा की बेहतरीन रिपोर्टिंग प्रभाष जी के लिए भी आसान नहीं रही होगी। 39 में से 25 से 30 दिन बारिश होती रही। लेकिन इस बारिश में लगातार तय कार्यक्रम के मुताबिक विनोबा जी यात्रा करते रहे और प्रभाष जी उस यात्रा की रिपोर्टिंग करते रहे। कहते हैं असाधारण, असामान्य और चुनौतीपूर्ण काम ही व्यक्ति को खास बनाता है। प्रभाष जोशी पत्रकारिता के शिखर पुरुष ऐसे ही नहीं बने। इस किताब को पढ़ाते हुए आपको इस बात का एहसास होगा कि यह काम कोई जीनियस ही कर सकता है। उन्होंने इसे बड़े ही कुशलता और तत्परता से अंजाम दिया। यह किताब इसका साक्ष्य है। उनके परिश्रम और समर्पण को इस पुस्तक में देखा जा सकता है।
इस किताब के पुरोकथन में रामबहादुर राय लिखते हैं कि जिन लोगों ने कागज कारे की बुलंदी को पढ़ा है उन्हें यह बुनियाद भी पढ़नी चाहिए। जनसत्ता प्रभाष जी की पत्रकारिता के जीवन की बुलंदी है तो विनोबा के साथ 39 दिन उनकी बुनियाद। यह किताब बताती है कि युवा प्रभाष जोशी के सरोकार क्या थे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रभाष जोशी गांधी विनोबा के विचारों से ओत-प्रोत थे। इसलिए यात्रा की रिपोर्टों में यह वैचारिकता स्पष्टत: दिखाई देती है। यह पुस्तक बताती है कि एक पत्रकार को रिपोर्टिंग कैसे करनी चाहिए। मौसम, माहौल सहित हर छोटी-बड़ी घटना व जानकारी अपनी रिपोर्ट में प्रभाष जी देने की कोशिश करते थे। प्रभाष जी ने इस किताब में मौसम और माहौल का ऐसा वर्णन किया है कि किताब पढ़ते हुए आपके आंखों के सामने वह दृश्य जीवंत हो उठेगा।
पत्रकारिता के विद्यार्थी इस पुस्तक से सीख सकते हैं कि रिपोर्ट में क्या-क्या दर्ज करना जरूरी है। और क्या नहीं दर्ज करना है। प्रभाष जोशी जी ने 'सार सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाई' वाली शैली में रिपोर्टिंग की है। इसलिए प्रभाष जी ने अपनी रिपोर्टिंग में 'दिलचस्प निचोड़' शीर्षक से अंत में पूरे दिन का सार भी लिखते थे।
प्रभाष जी प्रतिदिन यात्रा की रिपोर्टिंग कर रहे थे इसलिए वे दोहराव से बचने का पूरा प्रयास करते थे। यहां तक कि प्रभाष जी ने आचार्य विनोबा भावे के लिए आचार्य विनोबा, भूदान प्रणेता, भूदान प्रवर्तक, आचार्य भावे, श्री विनोबा, सर्वोदय के संत, संत प्रवर, विनोबा, विनोबा जी, संत विनोबा, 20वीं सदी के आखिरी संत और बाबा जैसे कई संबोधनों का प्रयोग किया है। आज जब लोग सोशल मीडिया और कही-सुनी बातों के जरिए पत्रकारिता कर रहे हैं ऐसे समय में यह किताब बताती है की मौके पर जाकर रिपोर्टिंग कैसे की जा सकती है। पत्रकार और पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक एक अनिवार्य पाठ है।
अगर आप सर्वोदय के संत विनोबा के बारे में जानना चाहते हैं, उनके विचार और दर्शन के बारे में जानना चाहते हैं तो यह किताब बहुत ही उपयोगी है। अगर आप विनोबा की लिखी अन्य पुस्तकों को नहीं पढ़ पाए हैं तो यह एक किताब भी पढ़ कर आप विनोबा जी के बारे में अपनी समझ बढ़ा सकते हैं। कुछ लोग अज्ञानतावश विनोबा भावे के दिए मंत्र 'जय जगत' को नारा कहते हैं। विनोबा जी ने 'जय जगत' को नारा नहीं मंत्र कहा था। प्रभाष जी ने अपनी रिपोर्टिंग में इसे विस्तार से बताया हैं। हम आज वैश्वीकरण की बात करते हैं लेकिन विनोबा जी ने 63 साल पहले जय जगत के जरिए विश्व राष्ट्र की परिकल्पना प्रस्तुत किया था।
आज जब इंदौर शहर की गिनती भारत के सबसे साफ-सुथरा शहरों में नंबर एक पर होती है, तब शायद ही लोगों को याद हो कि इसकी चेतना विनोबा जी ने जगाई थी। यह किताब इस बात की भी तस्दीक करती है। प्रभाष जी ने लिखा है कि इंदौर में साफ-सफाई कार्य की अगुवाई अप्पा साहब पटवर्धन ने की थी। अप्पा साहब गांधी जी के शिष्य थे और सफाई कार्य में उनकी ख्याति थी। इतना ही इस पुस्तक में विनोबा जी के देश, समाज, सर्वोदय, सत्याग्रह, सर्वोदय नगर, समाज में स्त्री का दर्जा, स्त्री शक्ति संबंधी कई बातें हैं जिनका प्रभाष जी ने अपनी रिपोर्टिंग में विस्तार से उल्लेख किया है। यह अकेली पुस्तक है जो बताती है कि विनोबा क्या करना चाहते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो इसमें विनोबा जी की जीवन दृष्टि है। वर्तनी संबंधी कुछ अशुद्धियों को छोड़ दिया जाए तो यह पुस्तक नवनीत की तरह बेहद उपयोगी है।