मौत और लूट का रूट डंकी रूट

युगवार्ता    24-Mar-2025   
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DUNKI 
 
बेहतर जिंदगी जीने की चाह में देश छोड़कर अवैध तरीके से ‘परदेस’ यानी विदेश जाने वाले लोगों को कदम-कदम पर दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। मानव तस्करों के चंगुल में फंसने के बाद वे कहीं के नहीं रह जाते हैं।
 
 
विदेश जाकर अपनी माली हालत को दुरुस्त करना मिडिल क्लास का एक सपना होता है। कुछ लोग पढ़ाई करके वीजा पर बाहर चले जाते है। जिन्हें वीजा नहीं मिलता, वे गैर-कानूनी तरीके अपनाते हैं। ‘डंकी रूट’ उन्हीं में से एक प्रमुख विकल्प है। आखिर डंकी रूट क्या है? दरअसल, यह पंजाबी का एक शब्द है। डंकी का अर्थ है, एक स्थान से दूसरे स्थान तक उछल कर पहुंचना। जब लोग गैर-कानूनी तरीका अपनाने लगे तो उसे ‘डंकी रूट’ नाम दे दिया गया। राजकुमार हिरानी और शाहरुख खान की फिल्म ‘डंकी’ की कहानी भी इसी विषय पर आधारित है। उसमें दिखाया गया है कि यह तरीका कितना खतरनाक है। लेकिन लोग अपने सपने को पूरा करने के लिए इस खतरे को अपनाते हैं। प्यू रिसर्च 2021 के अनुसार, अमेरिका में अवैध तरीके से घुसने वाले अप्रवासियों का तीसरा सबसे बड़ा ग्रुप भारतीय लोगों का होता है। 2011 के बाद अमेरिका में बिना किसी दस्तावेज के रहने वाले भारतीयों की संख्या में 70 प्रतिशत का उछाल आया है।
 
जोखिम भरा है डंकी रूट
इसकी शुरुआत एक सपने से होती है। पंजाब, हरियाणा और दक्षिण भारत के कई राज्यों में इसके एजेंट सक्रिय होते हैं। फिर लोगों में कुछ झूठी कहानियां प्रचारित की जाती हैं। इन कहानियों में बताया जाता है कि कैसे एक आदमी डंकी रूट से गया था और आज अमेरिका में एक बड़ा आदमी बन गया है। फिर एजेंट दूसरे पड़ाव की तरफ बढ़ते हैं, जहां वे किसी परिवार की माली हालत को देखते हुए नेगोशिएट करते हैं। इसमें भी अगर ज्यादा जोखिम है तो पैसे कम पड़ते हैं। लेकिन कम जोखिम के साथ पैसा बढ़ जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, विदेश जाने के इच्छुक लोगों को 40 लाख से लेकर 90 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं। ये कोई छोटी रकम नहीं है। कई बार इसमें एक परिवार की पूरी संपत्ति दांव पर लग जाती है। इस बार जब अमेरिका ने लोगों को वापस भारत भेजा तो कई कहानियां सामने आईं, जिनमें यह पता चला कि कई युवक जो इस रूट से गए थे, उन्होंने भारी-भरकम रकम खर्च की थी। डंकी रूट यूरोप और अमेरिका के लिए ज्यादा इस्तेमाल होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर आपको अमेरिका जाना है तो कई देशों की सीमाएं पार करनी होंगी। पनामा, कोस्टा रिका, अल साल्वाडोर और ग्वाटेमाला जैसे मध्य अमेरिकी देशों में कई पड़ाव पार करके घुसाने की कोशिश होती है। इस रास्ते में एजेंट मानव तस्करों के नेटवर्क की मदद लेकर यह जोखिम भरा कार्य करते हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट में जालंधर के हरजिंदर सिंह ने बताया, हमें एक पहाड़ और नदी को पार करने के लिए घोड़े पर बैठाया गया। उसके बाद कोलंबिया से हम आठ घंटे की बस यात्रा करके कैली पहुंचे। पनामा जंगल के बीचोबीच एक नाव लेने से पहले हम तटीय शहर टर्बो की ओर गए। हमें पनामा जंगल के 105 किलोमीटर लंबे हिस्से को पार करने में 10 दिन से ज्यादा समय लगा। इस दौरान हमने कम से कम 40 मृत लोगों को देखा, जिनमें कुछ जानवरों द्वारा आधे खाए हुए थे और कुछ कंकाल। इस बात को पांच साल हो गए, लेकिन मुझे अभी भी उस हिस्से को पार करने के बुरे सपने आते हैं। कुछ दिनों बाद हमने सैनिकों को देखा। तब कुछ राहत भी थी और डर भी था। उन्होंने हमें एक कैंप में धकेल दिया, जहां मैं कई दिनों के बाद सोया। आखिरकार हमें वेराक्रूज के एक कैंप में ले जाया गया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अमेरिकी सीमा अधिकारियों से हमारी बात कराई गई। हमने सोचा कि हम अमेरिका जाएंगे, लेकिन हमें वापस भारत भेज दिया गया। इस डंकी रूट को पार करने वाले कई भारतीयों को बलात्कार तक का शिकार होना पड़ता है। तस्करों का मानना है कि इस मुश्किल यात्रा में हर कोई जिंदा नहीं बच पाता। अपनी मंजिल तक सभी लोग नहीं पहुंच पाते, क्योंकि 10 से 12 प्रतिशत लोग रास्ते में ही मर जाते हैं या पेमेंट न करने पर मार दिए जाते हैं।
 
अमेरिका से निर्वासित लोगों का मामला
बीती पांच जनवरी को अमेरिका ने 104 अवैध भारतीय अप्रवासियों को भारत वापस भेजा है। इन्हें यूएस मिलिट्री के सी-17 प्लेन से पंजाब के अमृतसर लाया गया। इन लोगों के पैरों और हाथों में चेन बंधी थी। अमेरिकी बॉर्डर पेट्रोल चीफ माइकल बैंक ने अपने एक्स हैंडल पर इसका वीडियो शेयर किया है। इसके बाद विपक्ष ने संसद के दोनों सदनों में हंगामा और संसद परिसर में प्रदर्शन किया। डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद यह अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों का पहला निर्वासन है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ वार्ता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा से कुछ ही दिन पहले यह कार्रवाई हुई। निर्वासित लोगों में से 30 पंजाब से, 33-33 हरियाणा और गुजरात से, 3-3 महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से तथा 2 चंडीगढ़ से हैं। इनमें 19 महिलाएं और 13 नाबालिग भी शामिल हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सदन में बताया कि सबसे ज्यादा 2019 में 2042 लोगों को भारत वापस भेजा गया। साल 2009 में 734, साल 2010 में 799, साल 2011 में 597 और साल 2012 में 530 भारतीयों को निर्वासित किया गया।
 
शशि थरूर 
यह पहली बार नहीं है, जब हमारे लोगों को डिपोर्ट किया गया है। अभी चर्चा इसलिए हुई, क्योंकि ट्रंप ने लोगों की अपेक्षा से थोड़ा जल्दी यह कर दिया है। इस पर ज्यादा बहस नहीं होनी चाहिए। यह सुनना थोड़ा अटपटा है कि उन्हें जबरन सैन्य विमान में वापस लाया गया। इसकी कोई जरूरत नहीं थी। उन्हें कॉमर्शियल फ्लाइट में बैठाकर वापस भेजना चाहिए था।
शशि थरूर, सांसद, लोकसभा
 
एस. जयशंकर 
अमेरिका से भारतीयों की बेदखली पहली बार नहीं है। 16 सालों में 15,652 लोगों को वापस भेजा गया है। ऐसा 2009 से हो रहा है। हम कभी भी अवैध मूवमेंट के पक्ष में नहीं हैं। इससे किसी भी देश की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है। जहां तक रही बात निर्वासितों के साथ दुर्व्यवहार की, तो इसके लिए हम ट्रंप सरकार के संपर्क में हैं।
एस. जयशंकर, विदेश मंत्री
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सौरव राय

सौरव राय (वरिष्‍ठ संवाददाता)
इन्हें घुमक्कड़ी और नई चीजों को जानने-समझने का शौक है। यही घुमक्कड़ी इन्हें पत्रकारिता में ले आया। अब इनका शौक ही इनका पेशा हो गया है। लेकिन इस पेशा में भी समाज के प्रति जवाबदेही और संजीदगी इनके लिए सर्वोपरि है। इन्होंने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्नातकोत्तर और फिर एम.फिल. किया है। वर्तमान में ये हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका ‘युगवार्ता’ साप्ताहिक में वरिष्‍ठ संवाददाता हैं।