हार कर भी जीता इंडी गठबंधन

युगवार्ता    17-Jun-2024   
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इंडी गठबंधन ने टॉप तो नहीं किया है लेकिन प्रथम श्रेणी से पास जरूर हो गया। इंडी गठबंधन में शामिल लगभग सभी प्रमुख दलों का चुनावी प्रदर्शन इस बार पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर रहा है।
 
INDIA Block Meeting
 
इस बार के लोकसभा चुनाव के नतीजा आने के बाद शंकाएं-आशंकाएं खत्म हैं। ईवीएम पर कोई सवाल नहीं है। नतीजों से विपक्ष बेहद खुश है। वह अपनी हार में ही जीता हुआ महसूस कर रहा है। आखिर उम्मीदों से ज्यादा इन्हें मार्क्स जो आए हैं। विपक्ष यानी इंडी गठबंधननीट-यूजी के टॉपर्स की तरह टॉप तो नहीं किया लेकिन प्रथम श्रेणी से पास जरूर हो गया। इंडी गठबंधन में शामिल लगभग सभी प्रमुख दलों का चुनावी प्रदर्शन इस बार पिछले चुनाव की तुलना में बेहतर रहा है। खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने उम्मीद से बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है। कांग्रेस ने पिछले चुनाव के 52 सीटों की तुलना में इस बार 99 सीटों पर जीत दर्ज की है। वहीं समाजवादी पार्टी ने 5 सीट की तुलना में इस बार 37 सीटेंजीतने में कामयाब हुई है। सिर्फ इन दोनों दलों का प्रदर्शन बेहतर होने से भाजपा न सिर्फ अपने लिए तय लक्ष्य तक पहुंचने में नाकामयाब रही बल्कि बहुमत के आंकड़ें को भी नहीं छू सकी।
कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन में सबसे बड़ी भूमिका राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा को माना जा रहा है। कम से कम इस यात्रा से राहुल गांधी की छवि आम लोगों के बीच बदली है। वहीं कांग्रेस के अंदर और विपक्षी दलों के बीच भी इनकी साख बढ़ी है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास लौटा है। इसका चुनाव में पार्टी को लाभ हुआ है। राहुल सहित कांग्रेस और विपक्ष के काम को भाजपा के ही एक-दो नेताओं ने आसान बना दिया। भाजपा के ये नेता '400 पार' के नारे को संविधान बदलने के लिए जरूरी बता दिया। इस मुद्दे को विपक्ष ने हाथों-हाथ लिया। विपक्ष के सभी बड़े नेता अपनी रैलियों और सभाओं में यही कह रहे थे कि उनकी लड़ाई संविधान और आरक्षण बचाने की है।
राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आने के बाद से भाजपा को पिछड़ों का अच्छा खासा वोट मिलता रहा है है। एक तरह से कहा जाए तो यादव जैसी शक्तिशाली बिरादरी को छोड़ दें तो अन्य पिछड़ा वोट बैंक भाजपा का बन गया था। लेकिन इस बार खासकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के इस वोट बैंक में अखिलेश और राहुल की जोड़ी सेंध लगाने में कामयाब हुई है। सिर्फ पिछड़ा ही नहीं, इस बार चुनाव के बीच में ही एक विवादित टिप्पणीनेराजपूतों को नाराज कर दिया। भाजपा से राजपूतों की नाराजगी ने उन्हें विपक्ष के पास जाने पर मजबूर कर दिया। किसान आंदोलन और हरियाणा की महिला पहलवानों के विवाद ने पहले ही जाटों को भाजपा से दूर कर दिया था।
इस नाराजगी का सीधा फायदा कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय विपक्षी दलों को हुआ। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने अपने पक्ष में माहौल बनाया। उत्तर प्रदेश सहित कुछ अन्य प्रदेशों में इसका असर साफ दिखाई दिया। इसी प्रकार जाटों की भाजपा से नाराजगी का भी लाभ विपक्ष को मिला। जाटों के नाराज होने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में विपक्ष की सीटों में बढ़ोत्तरी हुई है। हरियाणा में भाजपा को इससे पांच सीटे गंवानी पड़ी। वहीं करीब आधा दर्जन सीटें उत्तर प्रदेश में भी सपा के खाते में चली गयी।
चुनावों के बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक बयान दे दिया कि भाजपा को किसी की जरूरत नहीं है। उनका यह बयान संघ को लेकर था। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में संघ उदासीन रहा है। जिसका खामियाजा भाजपा को नतीजा आने के बाद पता चला है। भाजपा के खामियाजा से विपक्ष को लाभ मिलना स्वाभाविक है। ऐसे भी भाजपा कितनी भी बड़ी पार्टी बन जाए, संघ का साथ मिलने से पार्टी की शक्ति चुनाव में और बढ़ जाती है। 2004 में भी संघ चुनाव से दूर रहा था। जिस कारण इंडिया शायनिंग के बाद भी भाजपा को हार और कांग्रेस को सत्ता मिली थी।
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गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।