आईएनडीआईए के सूत्रधार व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर आयाराम गयाराम परंपरा को कायम रखते हुए महागठबंधन का साथ छोड़कर अपने स्वाभाविक सहयोगी भाजपा के साथ नई सरकार बना चुके हैं। उन्होंने चौथी बार पाला बदलकर नौवीं बार सीएम पद की शपथ ली है। बिहार की राजनीति का यह ध्रुव सत्य है कि बीते 19 वर्षों से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री हैं। चाहे गठबंधन कोई भी रहा हो लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने हैं। भाजपा भी इस बार सतर्कता बरतते हुए नीतीश कुमार के साथ अपने दो ऐसे चेहरों सम्राट चौधरी और विजय चौधरी को डिप्टी सीएम बना दिया है जो नीतीश के घोर आलोचक रहे हैं। प्रस्तुत है पाला बदल की कथा।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से पाला बदल लिया है और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल को छोड़ कर दोबारा अपने स्वाभाविक सहयोगी दल भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गई है। इस पाला बदल के साथ आयाराम गयाराम की परंपरा का निर्वहन करते हुए विश्व रिकार्ड कायम करने को उद्यत नीतीश कुमार ने अपने पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव द्वारा पूर्व में किये गये नामकरण पलटू राम नाम को चरितार्थ कर दिया है। लगभग डेढ़ साल तक राजद के साथ मिलकर सरकार चलाने के बाद एक बार फिर से वे एनडीए गठबंधन का हिस्सा बन गये हैं। न केवल एनडीए गठबंधन का हिस्सा बने हैं बल्कि नये गठबंधन के नेता के रूप में नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले चुके हैं। यानी सरकार नई है लेकिन सीएम वही हैं।
यही नीतीश कुमार हैं जिन्हें मर जाना कबूल था लेकिन भाजपा के साथ जाना मंजूर नहीं था। जनवरी 2023 में उन्होंने बयान दिया था कि “मर जाना कबूल है परंतु उनके साथ जाना कबूल नहीं है। ये अच्छी तरह जान लीजिये।” वहीं, भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह से लेकर तमाम बड़े भाजपा नेताओं ने कहा था कि अब नीतीश कुमार के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। अब भाजपा किसी भी कीमत पर उनसे गठबंधन नहीं करेगी। लेकिन अब ये सारी बातें पुरानी हो चुकी हैं। भाजपा के दरवाजे भी खुल चुके हैं और नीतीश कुमार बगैर मरे पुराने चौखट पर मत्था टेककर सरकार भी बना चुके हैं।
बार-बार गठबंधन बदल लेने की उनकी कला के चलते सोशल मीडिया में एक बात जोरदार वायरल हो रही है कि नीतीश कुमार पहले ऐसे शख्स हैं जो, मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए, मुख्यमंत्री बनने के लिए, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर फिर से मुख्यमंत्री बन जाते हैं। भले ही यह बात मजाक में कही जा रही है लेकिन है सौ फीसदी सच। चाहे वह महागठबंधन का हिस्सा रहे हों या एनडीए का लेकिन बिहार की राजनीति का यह ध्रुव सत्य है कि बीते 19 वर्षों से नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री हैं।
बार-बार धोखा खाने के बावजूद नीतीश कुमार को समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनाया जाना भारतीय जनता पार्टी के एक वर्ग को पसंद नहीं आया है। वहीं आईएनडीआईएगठबंधन के समर्थक सोच ही नहीं पा रहे हैं कि नीतीश कुमार की आलोचना करें या प्रशंसा क्योंकि कुछ दिनों पहले तक नीतीश कुमार ही राज्य-राज्य घूम कर गठबंधन बनाने की कोशिशों में लगे थे। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा आईएनडीआईए गठबंधन है। हालांकि कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा जोड़कर आईएनडीआईए के रूप में एक भानुमती का कुनबा तैयार तो हो गया लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर यह बालू के भीत की तरह दरकने लगा है। इसकी शुरुआत हुई पश्चिम बंगाल से। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में अकेले दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। अरविंद केजरीवाल की पार्टी भी पंजाब में कांग्रेस से किनारा करने का ऐलान कर चुकी है। अब इस गठबंधन के प्रमुख रचनाकार नीतीश कुमार भी पाला बदलकर उसी भाजपा के साथ हो लिए हैं जिसे हराने के लिए उन्होंने दिन रात एक कर यह गठबंधन तैयार किया था।
मीडिया में कई दिनों से ये बातें चल रही थीं कि आईएनडीआईए अलायंस का चेहरा न बनाए जाने से नीतीश नाखुश थे। अलायंस के सहयोगी पार्टियों के बीच सीटों को लेकर तालमेल में देरी भी उनकी नाखुशी की एक और वजह थी। हाल ही में नीतीश कुमार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए बिना किसी का नाम लिए वंशवाद पर गहरी चोट की थी। उन्होंने कहा था कि कर्पूरी ठाकुर अपने परिवार का पक्ष नहीं लेते थे लेकिन आज लोग परिवार को आगे बढ़ाने में लगे हैं। इसे लालू परिवार पर हमला माना गया। इसके बाद ये कयास लगाए जाने लगे कि वो महागठबंधन से बाहर जा सकते हैं। जो अब सच साबित हो चुका है। नीतीश के वार के बाद लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य ने अपने सोशल मीडिया हैंडल 'एक्स' पर एक के बाद एक तीन पोस्ट कीं। रोहिणी ने अपने पोस्ट में कहा, 'समाजवादी पुरोधा होने का करता वही दावा है, हवाओं की तरह बदलती जिनकी विचारधारा है।'
रोहिणी ने अगली पोस्ट में लिखा, 'खीज जताए क्या होगा, जब हुआ न कोई अपना योग्य। विधि का विधान कौन टाले,जब खुद की नीयत में ही हो खोट।' इसके अलावा अपनी पहली पोस्ट में रोहिणी ने लिखा, 'अक्सर कुछ लोग नहीं देख पाते हैं अपनी कमियां, लेकिन किसी दूसरे पे कीचड़ उछालने को करते रहते हैं बदतमीजियां। हालांकि पोस्ट को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज होने के बाद लालू प्रसाद के हस्तक्षेप के बाद रोहिणी ने पोस्ट को डिलीट कर दिया।
आखिर क्या कारण है कि राजद हो या भाजपा, नीतीश कुमार को साथ लेने में कोई नहीं हिचकता और खुद नीतीश कुमार भी अपनी सुविधा के अनुसार किसी के साथ जाने में नहीं हिचकते। दरअसल, वह बिहार की सियासत में एक बैलेंसिंग फैक्टर का काम करते हैं और जिस ओर जाते हैं सत्ता उस गठबंधन की ओर चली जाती है। हालांकि, एक बात फिक्स रहती है कि सत्ता की बागडोर नीतीश कुमार के हाथों में ही रहती है। एक बार फिर कुछ ऐसा ही हुआ है और नीतीश कुमार फिर सीएम पद की शपथ ले चुके हैं। यानी बिहार में गठबंधन तो बदल जाता है। लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहतेहैं। यह बात बिल्कुल पक्की है।
सीएम नीतीश बीते पांच वर्षों के भीतर तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। महागठबंधन और एनडीए, दोनों खेमों के लिए नीतीश कुमार जरूरी और मजबूरी रहे हैं। बिहार का राजनीतिक समीकरण ऐसा है कि राज्य के तीन प्रमुख दलों भाजपा, जदयू और राजद में से जब तक दो दल एक साथ न आयें तब तक सत्ता नहीं मिलती है। यही कारण है कि नीतीश अपनी सुविधा के अनुसार राजद और भाजपा के साथ गलबहियां करते रहते हैं। जब उनको राजद के साथ मुश्किल होती है तो भाजपा के साथ चले जाते हैं। जब वहां दिक्कत होती है तो राजद के पाले में चले जाते हैं।
“नीतीश कुमार पहली बार 3 मार्च 2000 में मुख्यमंत्री बने थे। दूसरी बार 24 नवंबर 2005 में, तीसरी बार 26 नवंबर 2010, चौथी बार 22 फरवरी 2015, पांचवीं बार 20 नवंबर 2015, छठी बार 27 जुलाई 2017, सातवीं बार 16 नवंबर 2020 और आठवीं बार 9 अगस्त 2022 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अब नौवीं बार 28 जनवरी 2024 को शपथ ली है।”
बहरहाल, चौथी बार पलटी मारने के बाद नीतीश कुमार ने नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार की पलटी से सबसे हैरान आईएनडीआईए गठबंधन के साथी हैं। राजद-जदयू गठबंधन का अंत आईएनडीआईए गठबंधन के लिए बिहार के बाहर भी एक गंभीर झटके के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने उन्हें गिरगिट का खिताब दे दिया जबकि शिवसेना उद्धव गुट के नेता संजय राउत ने कहा कि पलटूराम नीतीश कुमार बीमार हैं। उन्हें भूलने की बीमारी है और वह अपनी याददाश्त खो चुके हैं।
नीतीश कुमार को अपने पाले में करने से भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा तो यह होता दिख रहा है कि आईएनडीआईए गठबंधन बनने से भाजपा के खिलाफ जो एक मजबूत विपक्ष की भावना बनी थी वह ध्वस्त होती दिख रही है। लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले इस स्तर पर उलटफेर से आईएनडीआईए गुट को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा और इससे भाजपा के इस तर्क को भी बल मिलेगा कि विपक्षी गुट एक अस्थिर गठबंधन है। पार्टी अब इसको चुनाव में यह कहते हुए भुनाने की कोशिश करेगी कि आईएनडीआईए गठबंधन में दल आपस में ही लड़ते रहते हैं और यह देश के लिए ठीक नहीं होगा।
जदयू नेता केसी त्यागी का बयान भी इसी दिशा में दिया गया है। उन्होंने अपने अलगाव का दोष राजद पर देने के बजाय कहा कि कांग्रेस ने आईईएनडीआईए गठबंधन को हड़पने की कोशिश की। वैसे भाजपा ने नीतीश कुमार का स्वागत इस बार पलक पांवड़े बिछाकर नहीं किया है बल्कि उनकी सशर्त वापसी हुई है। भाजपा की ओर से कह दिया गया था कि नीतीश कुमार पहले इस्तीफा देकर गठबंधन से अलग हों उसके बाद पार्टी समर्थन वाली चिट्ठी देगी। इसी के साथ पार्टी ने दो ऐसे चेहरों को नीतीश कैबिनेट में डिप्टी सीएम बनाया है जो नीतीश कुमार के घोर आलोचक रहे हैं। ये हैं बिहार भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष रहे विजय कुमार सिन्हा। एक सवर्ण है तो दूसरा अति पिछड़ा।
इन दोनों आक्रामक चेहरों को डिप्टी सीएम बनाया जाना इस बात का साफ संकेत है कि भाजपा इस बार नीतीश कुमार का नकेल कस के रखेगी। दोनों ही नेता अपनी सक्रियता और जनता से कनेक्शन के लिए जाने जाते हैं। भाजपा ने इनके सहारे सामाजिक समीकरण साधने की भी कोशिश की है। विजय कुमार सिन्हा जहां भूमिहार जाति से आते हैं वहीं सम्राट चौधरी कोईरी समुदाय से हैं। नये मंत्रिमंडल में महादलित समुदाय से पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के पुत्र संतोष कुमार सुमन को जगह दी गई है।
बहरहाल,राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को इस्तीफा सौंपने के बाद नीतीश ने पत्रकारों से कहा 'आज हमने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और जो सरकार थी उसको भी समाप्त करने का प्रस्ताव हमने राज्यपाल को दे दिया। सभी लोगों की राय, अपनी पार्टी की राय, सब ओर से राय आ रही थी। हमने कुछ बोलना छोड़ दिया था। चारों तरफ से कहा जा रहा था जिसके बाद हमने ये फैसला लिया। जो गठबंधन डेढ़ साल पहले बनाया था उसमें भी इधर आकर स्थिति ठीक नहीं लग रही थी। दोनों तरफ तकलीफ थी। जिस तरह का दावा किया जा रहा था एक पार्टी की तरफ से वो हमलोगों को खराब लग रहा था। इसीलिए हम लोगों ने आज इस्तीफा दे दिया, अलग हो गए। हम लोग इतनी मेहनत करते थे और सारा क्रेडिट दूसरे लोग ले रहे थे। अब नए गठबंधन में जा रहे हैं।
“राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार के पास भले ही एक राजनीतिक बैलेंसिंग पॉवर है लेकिन बार-बार पाला बदलने से उनकी छवि को गहरा आघात लगा है। उनकी सुशासन बाबू की छवि धुमिल हुई है और पलटूराम की छवि उन पर चस्पा हो गई है। ”
इस्तीफा देने के पांच घंटे तक पूर्व मुख्यमंत्री रहने के बाद नीतीश कुमार ने पुनः भाजपा, हम और एक निर्दलीय के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। इसके बाद उन्होंने एक बार फिर मीडिया से बात की और इस बार कहा कि “भाजपा से अलग हुए थे, अब मिलकर काम करेंगे। हम भाजपा के साथ पहले भी थे। हम जहां थे, वहीं पर फिर से आ गए। अब इधर-उधर जाने का सवाल ही नहीं।” उधर राजद सुप्रीमो लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने ‘कूड़ा फिर से गया कूड़ेदानी में’ लिख कर नीतीश कुमार पर निशाना साधा। हालांकि राजद ने काफी संयम बरता।
जो राजद कभी ‘तेल पिलावन और लाठी घुमावन’ पार्टी के नाम से जानी जाती थी। वह बिल्कुल ही बदली-बदली लग रही है। तेजस्वी के नेतृत्व में पुरानी आरजेडी अपनी छवि बिल्कुल ही बदल लेना चाहती है। नीतीश कुमार की सत्ता बदली की खबरों के बीच राजद विधायकों की गोलबंदी हुई, बावजूद किसी प्रकार का होहल्ला करने के बजाय सभी ने संयम बरता। जबकि 2017 में ऐसा नहीं था। उस समय राजद का साथ छोड़कर नीतीश जब भाजपा के पाले में गये तो राजद नेताओं ने राजभवन पर धरना दे दिया था।
उल्लेखनीय है कि बिहार में आरजेडी 79 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। भाजपा के 78, जदयू के 45 और हम के 4 विधायक हैं। इन तीनों दलों के विधायकों की कुल संख्या 127 है। बिहार विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 122 है। वहीं महागठबंधन में शामिल वाम दलों के 16 और कांग्रेस पार्टी के 19 विधायक हैं। एआईएमआईएम का 1 और एक निर्दलीय विधायक है। बिहार विधानसभा में महागठबंधन का संयुक्त आंकड़ा 114 बैठता है। यानी बहुमत से 8 कम। 2020 में जदयू और भाजपा ने मिलकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था। नीतीश कुमार की पार्टी महज 43 सीटें जीत पाई थी जबकि भाजपा को 74 सीटों पर जीत मिली थी। फिर भी भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद अचानक अगस्त 2022 में भाजपा से नाता तोड़कर उन्होंने आरजेडी के साथ सरकार बना ली थी और अब एक बार फिर एनडीए से हाथ मिला लिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार के पास भले ही एक राजनीतिक बैलेंसिंग पॉवर है लेकिन बार-बार पाला बदलने से उनकी छवि को गहरा आघात लगा है। उनकी सुशासन बाबू की छवि धुमिल हुई है और पलटूराम की छवि उन पर चस्पा हो गई है। दरअसल, स्वाभाविक गठबंधन तो उनका भाजपा के साथ ही है। लेकिन जब तब वे पाला बदलते रहते हैं और हर बार इसके लिए पार्टी नेताओं की राय को ढाल बना लेते हैं। ‘अब इधर-उधर नहीं जाना है’ अपनी इस बात पर कायम रहेंगे अथवा पलटुराम की अपनी छवि के अनुरूप अब नहीं पलटेंगे। कहना जरा मुश्किल है। विश्वसनीयता के गंभीर संकट से जूझ रहे नीतीश के पिछले उदाहरणों को देखते हुए कोई भी यह दावे के साथ नहीं कह सकता कि वह अब एनडीए के साथ ही रहेंगे। खैर, जो भी हो नीतीश कुमार एनडीए तथा महागठबंधन दोनों की मजबूरी तथा सत्ता समीकरण के लिहाज से फिलहाल जरूरी हैं। उनकी यह अहमियत आगे भी बनी रहती है या नहीं, यह भी देखना दिलचस्प होगा।
सीएम रहते,सीएम बनने के लिए यूटर्न
मुख्यमंत्री रहते नीतीश कुमार का ये चौथा यूटर्न है। अगस्त 2022 में उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ा था। और दो साल से भी कम वक्त में वो दोबारा एनडीए से जुड़ गए हैं।नीतीश कुमार न सिर्फ सबसे लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री हैं, बल्कि अब तक सबसे ज्यादा बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी उन्होंने ही ली है।इसी के साथ एक तथ्य और है कि नीतीश कुमार ने अपना आखिरी विधानसभा चुनाव 1995 और लोकसभा चुनाव 2004 में लड़ा था। उसके बाद से उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा है। 2006 से नीतीश विधान परिषद के सदस्य हैं। 2018 में वो तीसरी बार विधान परिषद के सदस्य बने थे।
पहली बार
2013 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनायातो इससे नाराज होकर नीतीश ने एनडीए से 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ दिया। उन्होंने आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बनाई। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू की हार के बाद नीतीश ने इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।
दूसरी बार
2015 का चुनाव नीतीश ने आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा और महागठबंधन की सरकार बनी। लेकिन 2017 में तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद 26 जुलाई 2017 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और गठबंधन भी तोड़ दिया। उसके बाद उन्होंने फिर एनडीए के साथ मिलकर सरकार बनाई।
तीसरी बार
2022 में नीतीश कुमार की भाजपा से फिर अनबन शुरू हो गई। ये अनबन इतनी बढ़ गई कि 9 अगस्त 2022 को उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया। उन्होंने इसे अंतर्आत्मा की आवाज बताया। बाद में उन्होंने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई।
चौथी बार
जनवरी 2024 में नीतीश कुमार की आरजेडी से तनातनी शुरू हो गई थी। आखिरकार नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग हो गए। नीतीश कुमार का कहना है कि उन्होंने अपने लोगों की राय सुनी। अब उन्होंनेभाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली है।