देश में सभी नागरिकों के लिए ‘समान आपराधिक संहिता' है लेकिन ‘समान नागरिक संहिता’ कानून नहीं है। इसलिए भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता कानून बनाने को शामिल किया है। भाजपा की राज्य सरकारों ने इस पर काम शुरू कर दिया है। उत्तराखंड की धामी सरकार ने जन आकांक्षाओं के मुताबिक इस कानून को बना दिया है। गुजरात और असम की भाजपा सरकार इस पर आगे बढ़ चली है। धीरे-धीरे ही सही पूरे देश में सबके लिए समान कानून होगा।
भारत का संविधान सभी को समान अधिकार देता है। वह न धर्म के आधार पर, न जाति के नाम पर और न क्षेत्र के आधार पर भेदभाव करता है। लेकिन राजनीतिक स्वार्थ एवं वोट बैंक के कारण कुछ लोगों को धर्म के नाम पर गैरसंवैधानिक तरीके से कई आधिकार दिए गए हैं। इसमें शादी-विवाह, तलाक सहित संपत्ति तक विशेष अधिकार शामिल है। जबकि संविधान कहीं कोई अंतर नहीं करता है।
संविधान में दर्ज समानता की भावना के तहत उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता बिल विधानसभा से पास कर इतिहास में अपना नाम अंकित करवा लिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने समान नागरिक संहिता कानून बनाने का वादा किया था। जिसे अब पूरा कर दिया गया है। उत्तराखंड विधानसभा में यह बिल पास होने के बाद अब देश में भी इसको लेकर बहस छिड़ गई है। भाजपा शासित कई राज्य सरकारों ने भी समान नागरिक संहिता कानून बनाने की बात कही है।
बता दें कि समान नागरिक संहिता कानून का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए उत्तराखंड की धामी सरकार ने उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमिटी बनाई थी। कमिटी ने सरकार को 740 पेज की अपनी रिपोर्ट 2 फरवरी को सौंपी थी। धामी सरकार ने 6 फरवरी को विधानसभा के विशेष सत्र में करीब 200 पेज का समान नागरिक संहिता बिल पेश किया। इस बिल पर 6 और 7 फरवरी को विधानसभा में बहस हुई, जिसके बाद इस बिल को पास कर दिया गया। इस तरह 7 फरवरी उत्तराखंड के लिए एक ऐतिहासिक दिन बन गया। साथ ही यह पहाड़ी प्रदेश समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वाला स्वतंत्र भारत का पहला राज्य बन गया। हालांकि गोवा में यह कानून पुर्तगाली शासन के दिनों से ही लागू है।
इस बिल में 400 से ज्यादा प्रावधान हैं। शादी-विवाह से लेकर तलाक, लिव इन रिलेशन, उत्तराधिकार, बच्चा गोद लेने, संपत्ति का अधिकार आदि को लेकर एक समान कानून बनाया गया है। यह बिल राष्ट्रपति को भेजा जायेगा। राष्ट्रपति से अनुमति मिलने के बाद यह कानून लागू हो जायेगा। इसके बाद उत्तराखंड में धर्म के आधार पर मुसलमानों को मिले कई अधिकार खत्म हो जाएंगे। मसलन, कई शादियों का अधिकार, शरीयत के मुताबिक संपत्ति का बंटवारा, तीन तलाक आदि अब उत्तराखंड में नहीं होगा।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध किया है। बोर्ड का मानना है कि भाजपा सरकार मुसलमानों पर यह कानून लाद रही है। जबकि इस बिल का मूल उद्देश्य नागरिक कानूनों में एकरूपता लाना है। यानी प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान कानून होगा। किसी धर्म, पंथ आदि के आधार पर नागरिक मामलों में कोई छूट या विशेष प्रावधान नहीं होगा। उत्तराखंड विधानसभा में बिल पास होने के बाद गुजरात और असम सहित कई भाजपा शासित राज्यों ने समान नागरिक संहिता कानून बनाने के लिए कदम आगे बढ़ा दिया है। कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी संभवत: भाजपा उत्तराखंड को मॉडल के रूप में पेश कर सकती है। इसका सबसे बड़ा कारण है, समान नागरिक संहिता पार्टी के तीन मूल मुद्दों में शामिल था। इसके अलावा दो अन्य मुद्दे अयोध्या में राम मंदिर, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना शामिल था। भाजपा ने इन दोनों मुद्दे को पूर्ण कर दिया है। समान नागरिक संहिता अभी बचा हुआ है, जिसे भाजपानीत राज्य सरकारों के माध्यम से सुलझाया जा रहा है।
समान नागरिक संहिता बिल के प्रमुख बिन्दु
* विवाह का पंजीकरण अनिवार्य। पंजीकरण नहीं होने पर सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पड़ सकता है।
* पति-पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह पूर्णत: प्रतिबंधित।
* सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित।
* वैवाहिक दंपत्ति में यदि कोई एक व्यक्ति बिना दूसरे व्यक्ति की सहमति के अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा।
* पति पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय 5 वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास ही रहेगी।
* सभी धर्मों में पति-पत्नी को तलाक लेने का समान अधिकार।
* तलाक का आधार पति-पत्नी में से किसी ने भी किसी ओर के साथ मर्ज़ी से शारीरिक संबंध बनाए हों, विवाह के बाद पति-पत्नी कम दो साल से अलग रह रहे हों, पति-पत्नी में से कोई एक मानसिक विकार से पीड़ित हो, कोई एक यौन रोग से पीड़ित हो, विवाह के एक साल के अंदर तलाक नहीं हो सकता केवल असाधारण मामलों में ही संभव।
* सभी धर्म-समुदायों में सभी वर्गों के लिए बेटा-बेटी को संपत्ति में समान अधिकार।
* मुस्लिम समुदाय में प्रचलित हलाला और इद्दत की प्रथा पर रोक।
* संपत्ति में अधिकार के लिए जायज और नाजायज बच्चों में कोई भेद नहीं किया गया है। नाजायज बच्चों को भी उस दंपति की जैविक संतान माना गया है।
* किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति में उसकी पत्नी व बच्चों को समान अधिकार दिया गया है। उसके माता-पिता का भी उसकी संपत्ति में समान अधिकार होगा। किसी महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के संपत्ति में अधिकार को संरक्षित किया गया ।
* लिव-इन रिलेशनशिप के लिए पंजीकरण अनिवार्य। पंजीकरण कराने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।
* लिव-इन के दौरान पैदा हुए बच्चों को उस युगल का जायज बच्चा ही माना जाएगा और उस बच्चे को जैविक संतान के समस्त अधिकार प्राप्त होंगे।
* उत्तराखंड समान नागरिक संहिता में स्पष्ट किया गया है कि विवाह केवल और केवल एक पुरुष और एक महिला के मध्य ही हो सकता है। यानी उत्तराखंड में समलैंगिक विवाह पर एक तरह से रोक लगा दी गई है।
* जन्म व मृत्यु पंजीकरण के तर्ज पर उत्तराखंड में अब विवाह और विवाह विच्छेद दोनों का पंजीकरण भी किया जा सकेगा। पंजीकरण एक वेब पोर्टल के माध्यम से भी किया जा सकेगा।
* विवाह पंजीकरण अनिवार्य होने से कोई व्यक्ति अपना पहला विवाह छुपाकर किसी महिला दूसरा विवाह नहीं कर सकेगा। क्योंकि विवाह पंजीकरण से व्यक्ति के विवाह का पता लगाया जा सकेगा।
* सरकारी सुविधाओं का लाभ केवल वही दंपत्ति ले सकेंगे, जिन्होंने विवाह का पंजीकरण कराया हो। पंजीकरण नहीं कराने पर किसी विवाह को अवैध या अमान्य नहीं माना जाएगा।
* यह कानून पूरे उत्तराखंड में रहने
वाले और उसके बाहर के निवास कर रहे प्रवासी उत्तराखंड के लोगों पर भी लागू होगा चाहे उसकी जाति या धर्म कोई भी हो।
* उत्तराखंड में केंद्र या राज्य सरकार के कर्मचारियों पर भी यह लागू होगा। साथ ही राज्य में राज्य या केंद्र सरकार की योजना का लाभ लेने वालों पर भी यह लागू होगा।
* इस विधेयक में अनुसूचित जनजातियों के लोग को बाहर रखा गया है।
इस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कहते हैं, ‘हमारी सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के ‘एक भारत और श्रेष्ठ भारत’ मंत्र को साकार करने के लिए उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था। प्रदेश की देवतुल्य जनता ने हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना आशीर्वाद देकर पुन: सरकार बनाने का मौका दिया। सरकार गठन के तुरंत बाद हमने पहली कैबिनेट की बैठक में समान नागरिक संहिता बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया था।’ 27 मई 2022 को उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में पांच सदस्यीय कमिटी का गठन धामी सरकार ने किया था। इस कमिटी ने देश का पहला गांव माणा से जनसंवाद यात्रा शुरू की थी। अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कमिटी ने करीब नौ माह में 43 जनसंवाद कार्यक्रम किये। सामाजिक संगठनों से बात की। राज्य के बाहर रह रहे उत्तराखंड के प्रवासी लोगों से भी सुझाव लिए गए। कमिटी ने इसको लेकर नई दिल्ली में भी बैठकें की। इस दौरान उन्हें 2 लाख 32 हजार से अधिक सुझाव मिले। प्रदेश के लगभग 10 प्रतिशत परिवारों ने भी इस पर कानून निर्माण के लिए अपने सुझाव दिए थे। कमिटी के सदस्यों के मुताबिक इनमें से कई महत्वपूर्ण सुझावों को शामिल किया गया है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत समान नागरिक संहिता की बात की गई है। इसके मुताबिक राज्य को निर्देश दिया गया है कि वे अपने राज्य के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का लक्ष्य हासिल करें। लेकिन देश की राजनीतिक कमजोरी के कारण इसका किसी भी राज्य सरकारों ने पालन नहीं किया। उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां से महिलाओं एवं बच्चों से जुड़ी कई कुप्रथा खत्म हो जायेंगे। इस बिल के कानून बनने के बाद उत्तराखंड में बाल विवाह, बहु विवाह, तलाक जैसी सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं पर रोक लगेगी। यह बाल और महिला अधिकारों की सुरक्षा करेगा। साथ ही किसी भी धर्म की संस्कृति, मान्यता और रीति-रिवाज इससे प्रभावित नहीं होंगे। इस बिल में शादी, तलाक और उत्तराधिकार, लिव इन रिलेशन आदि पर विशेष जोर दिया गया है। लिव इन रिलेशनशिप के दौरान जन्में बच्चों को भी इस कानून में पूरा अधिकार दिया गया है। साथ ही इसमें तलाक को लेकर भी विशेष प्रावधान किया गया है। प्रदेश में बहुविवाह पर रोक लगाई गई है। एक शादी के बाद दूसरी शादी के लिए तलाक अनिवार्य किया गया है। हालांकि प्रदेश के जनजातीय समाज को इससे पूरी तरह बाहर रखा गया है।
विवाह पर प्रावधान
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता में विवाह को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया है। हालांकि इसमें शादी की न्यूनतम उम्र में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यानी लड़कों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल ही रखी गई है। लेकिन विवाह को पंजीकृत कराना अनिवार्य कर दिया गया है। हालांकि बिना पंजीकरण के भी शादी मान्य होगी। लेकिन उन्हें सरकारी सुविधाओं पर पाबंदी रहेगी। विवाह का पंजीकरण धारा 6 के अंतर्गत अनिवार्य होगा। ऐसा नहीं करने पर 20 हजार रुपये का जुमार्ना भी लगेगा। शादी पंजीकरण करने को आसान बनाया गया है। पति-पत्नी आॅनलाइन आवेदन करके पंजीकरण करा सकेंगे। यह हिंदू, मुस्लिम समेत सभी धर्म के लोगों पर लागू होगी। एक शादी के बाद लड़के और लड़की को दूसरी शादी की तब तक इजाजत नहीं होगी, जब तक पहली शादी अमान्य न हो जाए। या फिर दोनों का तलाक न हो जाएं। कानून के खिलाफ विवाह करने पर छह महीने की जेल और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। पुरुष और महिला के बीच दूसरा विवाह तभी किया जा सकता है, जब दोनों के पार्टनर में से कोई भी जीवित न हो। माता-पिता की देखभाल का विशेष तौर पर ध्यान रखा गया है।
“ आजादी के बाद 60 सालों से अधिक समय तक राज करने वाले लोगों ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारें में आखिर क्यों विचार तक नहीं किया। दरअसल, वे राष्ट्रनीति को भूलकर सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करते रहे। हमारी सरकार का यह कदम संविधान में लिखित नीति और सिद्धांत के अनुरूप है। यह महिला सुरक्षा तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय है।” -पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री
विधानसभा में बिल पास होने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि आज हम आजादी के अमृतकाल में हैं। इसलिए हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम एक समरस समाज का निर्माण करें, जहां पर संवैधानिक प्रावधान, सभी के लिए समान हों। हमने जो संकल्प लिया था, आज इस सदन में उस संकल्प की सिद्धि हो गई है। साथ ही उन्होंने कहा कि हम, वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर, एक ऐसे समाज का निर्माण करें जिसमें हर स्तर पर समता हो। वैसी ही समता, जिसके आदर्श मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम हैं हमारी देवभूमि समानता से सभी का सम्मान करना सिखाती है, जैसे यहां के चार धाम और कई मंदिर हमारे लिए पूजनीय है, वैसे ही पिरान कलियर भी हमारे लिए एक पवित्र स्थान है।
“भाजपा सरकार में संवैधानिक समझ की कमी है। करीब दो सौ पेज के विधेयक को पढ़ने-समझने का समय विपक्ष को नहीं दिया गया। यह सही नहीं है। हमने सरकार से इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग की थी। लेकिन सरकार ने विपक्ष की मांग नहीं मानी। क्योंकि सरकार जल्दबाजी में थी। आगामी आम चुनाव के मद्देनजर जल्बाजी में इस विधेयक को पास किया गया है।” -यशपाल आर्य, नेता प्रतिपक्ष
तलाक से संबंधित प्रावधान
तलाक को लेकर कई कड़े प्रावधान किए गए हैं। किसी भी लड़के या लड़की को शादी के तुरंत बाद तलाक की सुविधा नहीं दी गई है। कोई भी पति-पत्नी अपनी शादी के एक साल पूरा करने के बाद ही तलाक का आवेदन कर सकते हैं। उसके पहले वे आवेदन भी नहीं कर सकते हैं। विवाह चाहे किसी भी धार्मिक प्रथा के जरिए किया गया हो, लेकिन तलाक केवल न्यायिक प्रक्रिया के तहत हो सकेगा। किसी भी व्यक्ति को पुनर्विवाह करने का अधिकार तभी मिलेगा, जब कोर्ट ने तलाक पर निर्णय दे दिया हो और उस आदेश के खिलाफ अपील का कोई अधिकार नहीं रह गया हो। मुस्लिम समाज में व्याप्त तीन तलाक जैसी व्यवस्था को इसमें मान्य नहीं माना गया है। यानी इससे उत्तराखंड में तीन तलाक का अंत हो जाएगा।
कानूनी तौर पर तलाक के लिए हिंदू और मुस्लिम सभी वर्ग को एक समान प्रक्रिया से गुजरना होगा। पहले से शादीशुदा व्यक्ति को बिना तलाक लिए दूसरी शादी की इजाजत नहीं दी जाएगी। अगर कोई शादी करता है तो उसे योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाएगा। इसके अलावा नियमों के खिलाफ तलाक लेने में तीन साल तक का कारावास का प्रावधान है। महिला या पुरुष में से अगर किसी ने शादी में रहते हुए किसी अन्य से शारीरिक संबंध बनाए हों तो इसको तलाक के लिए आधार बनाया जा सकता है। अगर किसी ने नपुंसकता या जानबूझकर बदला लेने के लिए विवाह किया है तो ऐसे में तलाक के लिए कोई भी कोर्ट जा सकता है। अगर पुरुष ने किसी महिला के साथ रेप किया हो या विवाह में रहते हुए महिला किसी अन्य से गर्भवती हुई हो तो ऐसे में तलाक के लिए कोर्ट में याचिका लगाई जा सकती है। अगर महिला या पुरुष में से कोई भी धर्मपरिवर्तन करता है तो इसे तलाक की अर्जी का आधार बनाया जा सकता है।
उत्तराधिकार पर प्रावधान
इस कानून का ड्राफ्ट तैयार करने के दौरान उत्तराधिकार पर भी काफी चर्चा हुई थी। उत्तराधिकार को लेकर इस बिल में विशेष प्रावधान किया गया है। मुस्लिम महिला भी अब बच्चों को गोद ले पाएंगी। वहीं, अगर सिंगल गर्ल चाइल्ड वाली लड़की की मौत शादी के बाद होती है तो उसके माता-पिता की देखरेख की जिम्मेदारी पति की होगी। इसके अलावा गोद लिए गए बच्चे को भी संपत्ति में एक समान अधिकार होगा। जैविक संतानों और कानूनी रूप से गोद लिए गए बच्चों में अभिभावक कोई फर्क नहीं कर पाएंगे। लड़कियों का भी पैत्रिक संपत्ति में समान अधिकार होगा। बेटियों से किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। वहीं, बुजुर्ग माता-पिता की देखरेख को लेकर भी यूसीसी में विशेष प्रावधान किया गया है।
लिव इन रिलेशनशिप पर प्रावधान
इस बिल में लिव इन रिलेशनशिप को खत्म नहीं किया गया है। बल्कि इसे मान्यता दी गई है। लेकिन शर्तों के साथ। साथ ही इसके लिए भी न्यूनतम आयु निर्धारित किया गया है। लिव इन रिलेशन में में रहने वाले लड़के एवं लड़कियों को अपनी पूरी जानकारी देनी होगी। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए पंजीकरण कराना जरूरी कर दिया गया है। बगैर पंजीकरण के कोई भी जोड़ा एक साथ नहीं रह सकेगा। पंजीकरण नहीं कराने पर जोड़ों को छह महीने की जेल और 25 हजार का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। लिव इन में रहने वाले ऐसे जोड़े जिनकी उम्र 21 साल से कम होगा, उन्हें एक साथ रहने से पहले अपने माता-पिता से सहमति लेना अनिवार्य किया गया है। पंजीकरण के बाद रजिस्ट्रार भी उनके अभिभावकों को इस बारे में सूचना देंगे। लिव इन में रहने वाले युवा अपना पंजीकरण रसीद दिखाएंगे, तभी उनको किराये पर रहने के लिए घर, हॉस्ट ल या पीजी मिल सकेगा। इसके बाद नजदीकी थाने में भी इस संबंध में जानकारी देनी होगी।
यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसके मुताबिक, लिव इन में रहने वाले पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में नहीं होने चाहिए। अगर युवा गलत जानकारी देते हैं तो जिले का रजिस्ट्रार उनके माता और पिता को भी समन भेजकर बुला सकते हैं। इस प्रकार की जानकारी नहीं देने वालों को कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा। लिव इन जोड़े को अगर बच्चे होते हैं तो उसका भी पिता- माता की संपत्ति में पूरा अधिकार होगा। इस तरह इन रिश्तों से जन्मे बच्चे को भी कानूनी उत्तराधिकारी माना गया है। इससे लिव इन में रहने वाले जोड़े अब एक- दूसरे को धोखा नहीं दे पाएंगे। साथ ही लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिला से पुरुष अलग हो जाता है तो वो अदालत से मदद और अपने भरण-पोषण के लिए मदद मांग सकती है। लिव इन रिलेशन को कानूनी दायरे में लाने की अपेक्षा न्यायालय भी कर रहा था। बीते सालों में भारतीय अदालतों ने भी इन रिश्तों को नापसंद करते हुए टिप्पणियां की थी।
जनजातीय समुदाय पर नहीं होगा लागू
उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता बिल में जनजातीय समुदाय को इससे अलग रखा गया है। बता दें कि प्रदेश में पांच जनजातियां अधिसूचित हैं। इनकी जनसंख्या 2,91,903 है। राज्य में इनके 211 गांव है। इसका ड्राफ्ट तैयार करने के लिए गठित कमिटी ने अपनी बैठकों का सिलसिला प्रदेश की सीमा पर स्थित देश के पहले गांव माणा से किया। यह गांव जनजातीय समाज का है। कमिटी ने आदिवासी समाज की स्थिति, उनकी समस्याएं आदि जानने के साथ ही समान नागरिक संहिता में इन्हें शामिल करने या न करने के सुझाव लिए थे। अंतत: इन्हें इससे बाहर रखा गया। बिल में इसके पीछे बेहद कम जनसंख्या वाले जनजातीय समाज की संस्कृति और परपंराओं को सहेजे रखने के साथ ही उनके संरक्षण को उठाए जा रहे कदमों का उल्लेख किया गया है। कमिटी ने अपनी विशिष्ट पहचान, पिछड़ेपन और विभिन्न कारणों से घटती जनसंख्या को देखते हुए राज्य की जनजातियों को समान नागरिक संहिता से बाहर रखने की सिफारिश की है। प्रदेश में बोक्सा, राजी, थारू, भोटिया और जौनसारी जनजातियां हैं। इन्हें 1967 में जनजाति घोषित किया गया था। यहां बोक्सा और राजी जनजाति अन्य जनजातियों के मुकाबले अधिक पिछड़ी हुई है। देश में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों की दशा सुधारने के लिए केंद्र की ओर से शुरू किए गए प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाभियान (पीएम-जनमन) में उत्तराखंड की बोक्सा और राजी जनजातियों को लिया गया है। जनजातीय समाज के गांवों को आवश्यक सुविधाओं से सुसज्जित करने के लिए 9 विभागों को जिम्मा सौंपा गया है।
2012 में दिल्ली की एक अदालत ने इस रिलेशनशिप को ‘अनैतिक’ कहा और इस तरह के रिश्तों को ‘शहरी सनक’ और ‘पश्चिमी सभ्यता का बदनाम उत्पाद’ कहते हुए खारिज कर दिया था। वहीं 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एक मामले में ऐसे रिलेशनशिप का समर्थन किया था। हालांकि एक अन्य मामलों में साल 2013 में उच्चतम न्यायालय ने संसद से कहा कि वे लिव इन रिलेशनशिप में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून लागू करे। तब अदालत ने कहा था कि सामाजिक तौर पर मान्यता न दिए जाने के बावजूद इस तरह के रिश्तों को ‘अपराध या पाप’ की तरह न देखा जाए। उच्चतम न्यायालय की इस टिपण्णी के मद्देनजर देखा जाए तो उत्तराखंड का समान नागरिक संहिता बिल न्यायालय की अपेक्षा को पूरा करने का प्रयास है।