लो टूट गया आईएनडीआईए!

युगवार्ता    01-Feb-2024   
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पिछले साल जून में जमावड़े के बाद बने विपक्षी एलायंस में टूटफूट का सिलसिला शुरू हो गया। अभी तो यह शुरुआत है आने वाले दिनों में आईएनडीआईए गठबंधन को और झटका लग सकता है। फिलहाल दो बड़ी पार्टियां बंगाल में टीएमसी और बिहार में जदयू ने आईएनडीआईए से अलग राह तो पकड़ ही ली है।

India Alliance
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनावी पटखनी देने के लिए विपक्षी दलों ने पिछले वर्ष आईएनडीआईए गठबंधन बनाया। पटखनी देना तो दूर बिना चुनाव मैदान में उतरे ही गठबंधन बिखरने लगा है। गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमार का इससे मोहभंग हो गया। या यूं कहें कि उन्हें 2024 में आईएनडीआईए गठबंधन का भविष्य दिख गया। और वे गठबंधन को छोड़ नरेन्द्र मोदी की शरण में आ गए। यानी नाविक ने नाव को छोड़ खुद किनारे पहुंचने की व्यवस्था कर ली और नाव को बीच मंझधार में छोड़ दिया। इस नाव की एक और नाविक ममता बनर्जी भी इससे किनारा कर चुकी है। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी प्रदेश की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है। अभी तो यह शुरुआत है आने वाले दिनों में आईएनडीआईए गठबंधन को और झटका लग सकता है। फिलहाल दो बड़ी पार्टियां बंगाल में टीएमसी और बिहार में जदयू ने आईएनडीआईए से अलग राह तो पकड़ ही ली है।
उल्लेखनीय है कि 28 विपक्षी दलों ने मिलकर आईएनडीआईए गठबंधन बनाया था। इसके प्रमुख सूत्रधार थे नीतीश कुमार। उन्होंने कांग्रेस की धुर विरोधी ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव सहित कई नेताओं से मिलकर गठबंधन की रूपरेखा पर बात की। आखिरकार 23 जून 2023 को पटना में गठबंधन की पहली बैठक हुई। गठबंधन की दूसरी बैठक कांग्रेस शासित राज्य बेंगलुरु में हुई और इस बैठक में गठबंधन का नामकरण आईएनडीआईए किया गया। इसके बाद तीसरी बैठक मुंबई और फिर दिल्ली में आयोजित हुई। लेकिन इन सभी बैठकों में कोई न कोई नेता नाराज दिखा। तभी से गठबंधन के भविष्य पर सवाल उठने लगा था। मसलन, पहली बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल नाराज होकर साझा प्रेस वार्ता में शामिल नहीं हुए। दूसरी बैठक में नीतीश कुमार ही नाराज होकर बेंगलुरु से निकल लिये। मुंबई बैठक में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल रूठ गए। इस पूरे घटनाक्रम के बीच कांग्रेस यही कहती रही कि जो भी मतभेद हैं उसे दूर कर लिया जाएगा।
इन बैठकों में न सीट शेयरिंग पर चर्चा हो पाई, न गठबंधन के संयोजक बनाने पर दल सहमत हुए। इस दौरान बिना अध्यक्ष के ही गठबंधन सिर्फ कागजों और इन बैठकों तक सीमित रहा। कुछ दिनों पहले एक वर्चुअल मीटिंग में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को गठबंधन का अध्यक्ष घोषित किया गया। इन विपक्षी दलों ने सपना देखा था कि सभी 543 सीटों पर गठबंधन एक उम्मीदवार उतारकर भाजपा को सत्ता से बेदखल कर देगा। लेकिन अब यह सपना टूट गया लगता है।
कुछ ही महीने के अंदर हालात ये हो गए कि पहले ममता बनर्जी ने बंगाल में ‘एकला चलो’ की राह पकड़ ली। उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। उनकी घोषणा के चार दिन बाद ही नीतीश कुमार न सिर्फ गठबंधन से बाहर हुए बल्कि भाजपा के संग आकर खड़े हो गए। 24 जनवरी को ममता बनर्जी ने कहा, ‘आगामी आम चुनाव में उनकी पार्टी टीएमसी बंगाल की सभी 42 सीटों पर लड़ेगी।’ हालांकि पहले वह कांग्रेस के लिए दो सीट छोड़ने को तैयार थीं। जबकि कांग्रेस कम से कम दस सीट की मांग कर रही थी। ममता उन सीटों को ही कांग्रेस को देने के लिए तैयार थी, जो उसने 2019 के आम चुनाव में जीती थीं। जबकि कांग्रेस के सांसद एवं लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि दो सीट तो वह पहले जीती ही है और आगे भी जीत जाएगी। बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 2019 में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने 22 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं भाजपा ने 18 सीटें जीती। टीएमसी 22 सीटों पर जीत के अलावा 19 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी। एक सीट पर वह तीसरे नंबर पर थी। जबकि भाजपा 22 सीटों पर दूसरे नंबर पर और दो सीटों पर तीसरे नंबर पर आई थी। कांग्रेस ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी। वह एक सीट पर दूसरे और पांच सीट पर तीसरे नंबर पर रही थी। लेफ्ट पार्टियां एक भी सीट जीत नहीं पाई थी। और न ही किसी सीट पर वे दूसरे नंबर पर रही थी।
“मैंने जो भी सुझाव दिए, वह सभी नकार दिए गए। इस अपमान के बावजूद मैंने बैठकों में हिस्सा लिया । लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि गठबंधन में वाम दलों का वर्चस्व कायम हो रहा है। इसलिए टीएमसी बंगाल में सभी 42 सीटों पर लड़ेगी।” -ममता बनर्जी मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
 
ममता का कहना था कि मैंने जो भी सुझाव दिए, वह सभी नकार दिए गए। इस तरह के अपमान के बावजूद मैंने समझौता किया और बैठकों में हिस्सा लिया है। लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि गठबंधन और कांग्रेस को वाम दलों का वर्चस्व कायम हो रहा है। पिछले कुछ दिनों से सीट शेयरिंग के लेकर कांग्रेस और टीएमसी के बीच बातचीत हो रही थी लेकिन जब बात नहीं बनी तो ममता बनर्जी ने ‘एकला चलो रे’ की घोषणा कर दी है। हालांकि गठबंधन के कुछ सहयोगी दलों का मानना है कि ममता को मना लिया जाएगा और मिलकर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है।
पश्चिम बंगाल के बाद इस विपक्षी गठबंधन को पंजाब में भी झटका लगा है। गठबंधन में शामिल आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया है कि वह पंजाब में अकेले चुनाव लड़ेगी। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि पंजाब की सभी 13 सीटों पर उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। हालांकि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल मानकर चल रहे हैं कि यहां इस बार भी कोई सीट मिलने की संभावना नहीं है। इसलिए वह कांग्रेस को तीन के बजाय चार सीट भी देने को तैयार हैं। लेकिन पंजाब में भाजपा ज्यादा मजबूत नहीं है। इसलिए वह पंजाब में ज्यादा से ज्यादा सीट पर लड़ना चाहती है। कांग्रेस के एक विश्वस्त सूत्र बताते हैं, आम आदमी पार्टी पंजाब में सीट देने के बदले हरियाणा और गुजरात में दो-दो एवं गोवा में एक सीट चाहती है।’ यही सूत्र यह भी बताते हैं कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी को गुजरात में सीट देने को तैयार तो है लेकिन वह हरियाणा और गोवा में सीट देने को तैयार नहीं है। मामला यहीं अटक रहा है।
“पंजाब में हमारा कांग्रेस के साथ कुछ नहीं है। आप के पक्ष में 13 सीटें जाएंगी। यहां से पार्टी की लोकसभा सीटों की संख्या 14 भी हो सकती है क्योंकि एक लोकसभा सीट चंडीगढ़ की भी है। -भगवंत मान मुख्यमंत्री, पंजाब
सीट बंटवारे पर जैसे-जैसे बात आगे बढ़ेगी गठबंधन के दलों में नाराजगी और बढ़ेगी। आने वाले दिनों में गठबंधन के कुछ और दल अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने कांग्रेस को 11 सीट देने की एकतरफा घोषणा की है जबकि कांग्रेस वहां 20 से 22 सीटों पर लड़ना चाहती है। इसी तरह झारखंड में भी सीटों के बंटवारे पर राय नहीं बन पा रही है। राज्य में कुल 14 सीटें हैं। कांग्रेस यहां 10 सीटों पर दावेदारी कर रही है। वहीं, जेएमएम भी सात सीटें मांग रही है। इनके अलावा आरजेडी और लेफ्ट भी दो-दो सीट मांग रहे हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 9 और जेएमएम ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था।
आईएनडीआईए में बचे दल
पिछले साल जून में आईएनडीआईए की पटना में पहली तो जुलाई 2023 में बेंगलुरु में इनकी दूसरी बैठक हुई थी। उस दौरान दावा किया गया था कि गठबंधन में 28 दल शामिल हैं। इनमें कई दल ऐसे हैं, जिनका न तो सांसद है और न ही कोई विधायक। आईएनडीआईए गठबंधन के मुख्य दलों में ममता की टीएमसी, नीतीश की जदयू, आम आदमी पार्टी, तमिलनाडु से डीएमके, वाम दल, आरजेडी, झारखंड मुक्ति मोर्चा आदि शामिल हैं। इन प्रमुख दलों में जदयू ने गठबंधन को बाय-बाय कह दिया है तो टीएमसी और आम आदमी पार्टी ने अपने मजबूत आधार वाले राज्य में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है। ऐसे में इस गठबंधन के पास अब कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट), सीपीआई, सीपीआईएम, डीएमके, झारखंड मुक्ति मोर्चा, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, आरएलडी, सीपीआई (एमएल), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (एम), मनीथानेया मक्कल काची (एमएमके), एमडीएमके, वीसीके, आरएसपी, केरला कांग्रेस, केएमडीके, एआईएफबी, अपना दल कमेरावादी और पीजेंट्स एंड वर्कर पार्टी आॅफ इंडिया हैं।
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गुंजन कुमार

गुंजन कुमार (ब्‍यूरो प्रमुख)
प्रिंट मीडिया में डेढ़ दशक से ज्‍यादा का अनुभव। 'दैनिक हिंदुस्तान' से पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त कर 'हरिभूमि' में कुछ समय तक दिल्ली की रिपोर्टिंग की। इसके बाद साप्ताहिक 'दि संडे पोस्ट' में एक दशक से ज्यादा समय तक घुमंतू संवाददाता के रुप में काम किया। कई रिपोर्टों पर सम्मानित हुए। उसके बाद पाक्षिक पत्रिका 'यथावत' से जुड़े। वर्तमान में ‘युगवार्ता’ पत्रिका में बतौर ब्‍यूरो प्रमुख कार्यरत हैं।