जब कोई नई पहल होती है तब उसकी सफलता का कोई अंदाजा नहीं होता है। लेकिन कुछ योजनाएं और अभियान ऐसे होते हैं जिनकी सफलता समय से परे होती हैं। स्वच्छ भारत अभियान भी उन्हीं में से एक है। नेचर में छपे इस लेख में इसकी महत्ता को उजागर किया गया है।
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताआें सुमन चक्रवर्ती, सोयरा गुने, टिम ए. ब्रुकनर, जूली स्ट्रोमिंगर और पार्वती सिंह ने मिलाकर एक शोध पत्र लिखा। यह शोध पत्र 2 सितम्बर को नेचर में प्रकाशित हुआ। शोध पत्र का शीर्षक था ‘स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण और भारत में शिशु मृत्यु दर’ इसका अंग्रेजी शीर्षक ‘टॉयलेट कंस्ट्रक्शन अंडर स्वच्छ भारत मिशन एंड इन्फेंट मोर्टालिटी रेट इन इंडिया’ है। यह शोध पत्र उन आलोचकों के लिए करारा जवाब है जिन्होंने इस अभियान की आलोचना की थी। 2 अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। जिसका सुखद परिणाम आज हमें देखने को मिल रहा है। विश्व की सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय साइंस जर्नल में छपा शोध पत्र इस बात की गवाही दे रहा है कि कैसे एक छोटी सी पहल लाखों लोगों की जिंदगियों को बचा सकती है। इस शोध पत्र में आंकड़ों के आधार पर यह दावा किया गया है कि भारत के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की वजह से हर साल करीब 60 से 70 हजार शिशुओं की जान बच जाती है। इस अध्ययन में कहा गया है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालयों के निर्माण की वजह से भारत में शिशु मृत्यु दर में तेजी से कमी आई है। यह दुनिया का सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान था जिसके तहत 2020 तक भारत को खुले में शौच मुक्त बनाया जाना था। इसके तहत सरकार ने करीब 10 करोड़ शौचालय बनवाए। 6 लाख गांवों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया। इस शोध पत्र में कहा गया है शिशु मृत्युदर और अंडर फाइव मोर्टालिटी रेट (पांच साल से कम शिशु मृत्यु दर) का अध्ययन किया गया है।
इस अध्ययन के लिए 10 राज्यों और 640 जिलों के आंकड़े इकट्ठा किए गए थे। ये आंकड़े 2011 से 2020 के दौरान के थे। स्टडी में कहा गया है कि स्वच्छ भारत अभियान शुरू होने के बाद जिन जिलों में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 30 प्रतिशत से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ, वहां शिशु मृत्यु दर में 5.3 प्रतिशत तथा पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 6.8 प्रतिशत की कमी आई। अध्ययन में डाटा के आधार को दिखाते हुए साफ कहा गया है, ‘भारत में स्वच्छ भारत मिशन के बाद की अवधि में और इससे पहले के वर्षों की तुलना में शिशु और बाल मृत्यु दर में काफी तेजी से कमी देखी गई।’भारत जैसे देश में खुले में शौच बड़ी समस्या थी जिससे काफी हद तक निजात मिली है। इंडियन एक्सप्रेस में परमेश्वर अय्यर ने इसी विषय पर अपने लेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए लिखा कि एक योजना को अभियान के रूप में चला कर सबकी सहायता से इसे सफल बनाने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को जाता है। लेख में कहा गया है कि पहले डायरिया और अन्य इसी तरह की बीमारियों की वजह से बच्चों की मौतें होती थीं जिनमें काफी कमी आई है। शौचालय की वजह से खुले में शौच की समस्या कम हुई है। शोधकर्ता गुने ने कहा कि उनके निष्कर्षों से यह पुष्टि होती है कि बेहतर जल और स्वच्छता की स्थिति से शिशु मृत्यु दर में कमी आ सकती है, विशेष रूप से भारत जैसे देशों में, जहां खुले में शौच का प्रचलन अत्यधिक है। केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, मिशन का दूसरा चरण कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य 2026 तक भारतीय शहरों को कचरा मुक्त बनाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अध्ययन पर लिखा, स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रयासों के प्रभाव को उजागर करने वाले शोध को देखकर खुशी हुई। उचित शौचालयों तक पहुंच शिशु और बाल मृत्यु दर को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्वच्छ, सुरक्षित स्वच्छता सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा बदलाव बन गई है। और, मुझे खुशी है कि भारत ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई है।