जनवादी आलोचना के स्तंभ कहे जाने वाले प्रो. रमेश कुंतल मेघ को हिंदी साहित्य में आलोचना के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय अवदान के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।
हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक, चिंतक और प्रसिद्ध सौंदर्यशास्त्री प्रो. रमेश कुंतल मेघ का एक सितंबर को निधन हो गया। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे। 92 वर्षीय प्रो. मेघ को एक सितंबर की सुबह उन्हें हार्ट अटैक आया और करीब साढ़े आठ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे इन दिनों चंडीगढ़ के सेक्टर 16 में अपनी पुत्री शिप्राली टंडन के साथ रह रहे थे। प्रो. रमेश कुंतल मेघ ने जीवित रहते हुए ही अपना शरीर दान कर दिया था।
प्रो. मेघ के निधन पर साहित्य जगत में शोक की लहर है। साहित्य अकादमी ने साहित्य जगत की इस क्षति पर शोक सभा का आयोजन करके प्रो. रमेश कुंतल मेघ के साहित्यिक योगदान को याद किया। साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव और अन्य साहित्यकारों ने रमेश कुंतल मेघ को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि प्रो. रमेश कुंतल मेघ अपने पीछे समृद्ध कृतियों की अमूल्य विरासत छोड़ गए हैं, जो हमेशा हमारे बीच रहेंगी। साहित्य अकादमी प्रो. रमेश कुंतल मेघ के निधन पर अत्यंत शोक प्रकट करती है तथा दिवंगत लेखक के परिवार के प्रति संवेदना निवेदित करती है।
प्रो. रमेश कुंतल मेघ का मूल नाम रमेश प्रसाद मिश्र था। वे हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित आलोचक थे। उनका जन्म 1 जून, 1931 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। उन्होंने बीएनएसडी कॉलेज, कानपुर, इलाहाबाद विश्वविद्यालय और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई पूरी की। प्रो. मेघ ने अमेरिका के आरकंसास विश्वविद्यालय में फुलब्राइट प्रोफेसर और अमृतसर स्थित गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के भाषा संकायाध्यक्ष के रूप में कार्य किया था। इसके अलावा उन्होंने यूगोस्लाविया, इटली, सोवियत रूस सहित कई देशों की शैक्षणिक-साहित्यिक यात्राएं की।
प्रो. मेघ व्यक्तिगत और व्यावहारिक जीवन में बेहद सौम्य और उदार थे। लेकिन विचारों में दृढ़ मार्क्सवादी थे। हिंदी आलोचना में उनके अभिनव भाषाई प्रयोगों ने हिंदी जगत को चमत्कृत किया। सौंदर्यशास्त्र से लेकर देह भाषा और मिथकों के अनेक विषयों पर उनके शोध कार्य महत्वपूर्ण हैं। साहित्य के क्षेत्र में उन्होंने अपने समकालीन साहित्यकारों के सामने नई-नई वैचारिक चुनौतियां प्रस्तुत कीं। हिंदी में जनवादी आलोचना के वे एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर थे। वे आलोचना में नई व अधिक अर्थपूर्ण भाषा के पक्षधर थे। ताउम्र वो इस दिशा में प्रयत्नशील रहे।
प्रो. रमेश कुंतल मेघ ने अपने साहित्य साधना की शुरुआत जयशंकर प्रसाद की प्रसिद्ध कृति ‘कामायनी’ से की थी। मध्यकालीन साहित्य के सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन और विश्लेषण संबंधी उनके अवदान को साहित्य में हमेशा याद किया जाएगा। उनकी पहचान एक गहन शोधकर्ता की रही है। ‘कामायनी की मनस्सौंदर्य सामाजिक भूमिका’, ‘मिथक और स्वप्न’, ‘तुलसी आधुनिक वातायन से’, ‘मानव देह और हमारी देह भाषाएं’, ‘आधुनिकता बोध और आधुनिकीकरण’, ‘क्योंकि शब्द एक समय है’, ‘विश्वमिथकसरित्सागर’, ‘मनखंजन किनके’, ‘मध्ययुगीन रस दर्शन और समकालीन सौन्दर्य बोध’, ‘काँपती लौ’, ‘आथतो सौन्दर्यजिज्ञासा’, ‘सौन्दर्य-मूल्य और मूल्यांकन’, ‘मिथक से आधुनिकता तक’, ‘खिड़कियों पर आकाशदीप’ आदि उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं।
आपको उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान तथा बिहार सरकार के राजभाषा विभाग के सम्मान सहित आपकी आलोचना पुस्तक ‘विश्वमिथकसरित्सागर’ के लिए वर्ष 2017का साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान किया गया था। यह कृति घने परिश्रम और सघन चिंतन के सहारे तैयार की गई थी। ग्रंथ में सर्वत्र मिथ, भौगोलिक मानचित्रों, समय-सारणियों, तालिकाओं, दुर्लभ चित्रफलकों तथा रेखाचित्रों का समावेश इसे अनूठा बनाता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य प्रो. रमेश कुंतल मेघ ने आलोचना में अंतरानुशासन को विशेष महत्व दिया। आधुनिक साहित्य में मिथक और सौंदर्य के बड़े विश्लेषक के रूप में उनकी पहचान रही है। हिंदी साहित्य में आलोचना के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय अवदान के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे।