विधि आयोग द्वारा विज्ञप्ति जारी कर समान नागरिक संहिता पर सुझाव मांगे जाने के कुछ ही दिनों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पहली बार किसी सार्वजनिक मंच से एक देश, एक कानून की जोरदार वकालत की है। ऐसे में प्रश्न है कि क्या अनुच्छेद 370 की विदाई व अंतिम चरण में चल रहे श्री राम मंदिर का निर्माण कार्य के बाद अब भाजपा के तीसरे वादे समान नागरिक संहिता की बारी है? प्रश्न यह भी है कि क्या इसे लागू कर पाना इतना आसान है क्योंकि सीएए को आज तक लागू नहीं किया जा सका है।
भोपाल में 27 जून को पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार मंच से यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया। पीएम ने कहा कि भारत के संविधान में नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? ये लोग हम पर आरोप लगाते हैं। ये अगर मुसलमानों के सही हितैषी होते तो मुसलमान पीछे नहीं रहते। सुप्रीम कोर्ट बार-बार कह रहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लाओ लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग ऐसा नहीं करना चाहते। वोट बैंक के भूखे लोग मुस्लिम बहनों का बहुत नुकसान कर रहे हैं। तीन तलाक से नुकसान सिर्फ बेटियों का ही नहीं बल्कि इसका दायरा इससे कहीं बड़ा है। इससे पूरे परिवार तबाह हो जाते हैं। अगर तीन तलाक कहकर किसी बेटी को कोई निकाल दे तो उसके पिता का क्या होगा? भाई का क्या होगा?
तीन तलाक इस्लाम में इतना ही अपरिहार्य होता तो कतर, जॉर्डन, बांग्लादेश, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों ने इसको क्यों प्रतिबंधित कर दिया। मिस्र ने आज से 90 साल पहले इसको खत्म कर दिया था। अगर इस्लाम से इसका संबंध होता तो इस्लामिक देश इसे क्यों खत्म करते। तीन तलाक का फंदा लटका कर कुछ लोग मुस्लिम बहनों पर अत्याचार की खुली छूट चाहते हैं। समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री का यह बयान विधि आयोग द्वारा एक विज्ञप्ति जारी कर देश के नागरिकों से समान नागरिक संहिता पर उनसे लिखित सुझाव मांगे जाने के बाद आया है। आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब भाजपा के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं। इनमें पहला जम्मूी-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था। दूसरा, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराना और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है। पहले दो एजेंडा पर काम खत्म करने के बाद अब भाजपा यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दे रही है। लिहाजा, केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग से सुझाव मांगे थे। इसके बाद देश के 22वें विधि आयोग ने 14 जून को यूसीसी पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के साथ विभिन्न पक्षों से 30 दिन के भीतर अपनी राय देने को कहा है। ऐसे में ये मुद्दा देशभर में एकबार फिर चर्चा में आ गया है।
केंद्र सरकार ने पहले भी 21वें विधि आयोग से यूसीसी पर सुझाव मांगे थे। इस पर आयोग ने समाज के सभी वर्गों पर समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत की जांच की थी। इस विधि आयोग ने 2018 में ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ नाम से सुझाव पत्र प्रकाशित किया। इसमें कहा गया था कि अभी देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है। अब 22वें विधि आयोग का कहना है कि इस सुझाव पत्र को जारी किए हुए तीन साल से ज्या दा हो चुका है। लिहाजा, इस मामले की अहमियत पर अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए फिर विचार करना बहुत जरूरी है।
भारत के संविधान में नागरिकों के समान अधिकार की बात कही गई है। एक घर में एक सदस्य के लिए एक कानून हो और दूसरे के लिए दूसरा तो ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा? तीन तलाक से नुकसान सिर्फ बेटियों का ही नहीं बल्कि पूरा परिवार तबाह हो जाता है।- नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
उल्लेखनीय है कि समान नागरिक सहिंता देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानूनों की बात करती है। यानी, विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम। देश में इस समय अपराध संहिता तो सबके लिए एक है लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है जबकि संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार अपने फैसलों में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर जोर दे चुका है। लेकिन वोट बैंक की नाराजगी की वजह से इसे अब तक लागू करने का कोई साहस नहीं जुटा पाया है।
हालांकि अब इसे लेकर चर्चा गरम है। विधि आयोग ने देश के नागरिकों से इस पर सुझाव मांगा है। विधि आयोग द्वारा देश के नागरिकों से यूसीसी को लेकर मांगे गये सुझाव की अंतिम तिथि 15 जुलाई है। इस दौरान प्राप्त होने वाले सुझावों के आधार पर कानून मंत्रालय और इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों, राजनीतिज्ञों, शिक्षाविदों और सभी धर्मों के लोगों की एक कमेटी की भी राय ली जाएगी। इस तरह प्राप्त सुझावों के आधार पर कानूनी जानकारी रखने वाली एक टीम इसका प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार करेगी। उस ड्राफ्ट के तैयार होने के बाद ही यह पता चल सकेगा कि आखिर देश में यह कानून किस तरह का होगा।
जानकारों का मानना है कि यूसीसी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार को सुनिश्चित करेगी। साथ ही अनुच्छेद 15 के तहत धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या फिर प्लेस आॅफ बर्थ के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव पर रोक लगाने का काम करेगी। यानी पर्सनल लॉ या फिर मजहबी किताबों पर आधारित कानूनों और परंपराओं को इस यूनिफार्म सिविल कोड से रिप्लेस किया जाएगा। हालांकि यूसीसी को लागू कर पाना इतना आसान भी नहीं है। समान नागरिक संहिता के पक्षधर भी इस बात को मानते हैं कि जिस तरह से प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं उससे साफ है कि इसका मुस्लिम समुदाय की तरफ से जबर्दस्त विरोध होगा। एक बात और कि पूरे तामझाम के साथ सीएए कानून तो बन गया लेकिन लागू आज तक नहीं हो पाया। ऐसे में समान नागरिक संहिता का हश्र भी कहीं वही न हो जाए।
तीन तलाक इस्लाम में इतना ही अपरिहार्य होता तो कतर, जॉर्डन, बांग्लादेश, पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देशों ने इसको क्यों प्रतिबंधित कर दिया। मिस्र ने आज से 90 साल पहले इसको खत्म कर दिया था। अगर इस्लाम से इसका संबंध होता तो इस्लामिक देश इसे क्यों खत्म करते।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा समान नागरिक संहिता का जिक्र करने के बाद कांग्रेस से लेकर ओवैसी की पार्टी तक सभी बौखलाए हुए हैं। मुस्लिमों का सबसे बड़ा रहनुमा होने का दावा करने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि प्रधानमंत्री भारत की विविधता और बहुलवाद को समस्या मानते हैं। इसलिए वह इस तरह की बातें करते रहते हैं। वह एक देश, एक चुनाव, एक टैक्स, एक कानून, एक पहचान की बातें करते हैं। तो क्या वह यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर देश की विविधता और बहुलवाद को छीन लेंगे? वह जब यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करते हैं तो दरअसल, हिंदू सिविल कोड की बात कर रहे होते हैं।
ओवैसी की ही तरह समाजवादी पार्टी के नेता और महाराष्ट्र से विधायक अबू आजमी ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पीएम मोदी के बयान का विरोध किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, यूनिफॉर्म सिविल कोड पर मोदी जी को यह भी कह देना चाहिए कि इस देश में एक ही धर्म के लोग रहेंगे। हमारे देश में कुछ किलोमीटर दूर जाने पर भाषाएँ, संस्कृति, धर्म आदि बदलते हैं। क्या आप उन सब को खत्म कर देना चाहते हैं? यूसीसी के जरिए शरीयत में दखलअंदाजी का विरोध सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि सभी मजहब के लोग करेंगे जिन-जिन के धार्मिक कानूनों में आप हस्तक्षेप करोगे।
वहीं आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे बेवजह की कवायद करार दिया है। मुस्लिम बोर्ड का मानना है कि ये मुसलमानों पर हिंदू धर्म थोपने जैसा है। अगर इसे लागू कर दिया जाए तो मुसलमानों को चार शादियों का अधिकार नहीं रहेगा। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के सुझाव मांगे जाने पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मुस्लिम बोर्ड ने कहा है कि भारत में इस तरह का कानून बनाना बेवजह देश के संसाधनों को बर्बाद करना है और यह समाज में वेवजह अराजकता का माहौल बनाएगा। मुस्लिम बोर्ड का कहना है कि इस समय यह कानून लाना अनावश्यक, अव्यावहारिक और खतरनाक है। मुस्लिम लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ, एसक्यूआर इलियास ने ने कहा कि मुस्लिम लॉ बोर्ड में बनाए गये कानून मुस्लिमों की पवित्र किताब कुरान से ली गई है और उसमें लिखी बातों को काटने और बदलने की इजाजत खुद मुसलमानों को भी नहीं है। तो फिर सरकार कैसे एक कानून के जरिए इसमें दखलंदाजी कर सकती है।
प्रधानमंत्री भारत की विविधता और बहुलवाद को समस्या मानते हैं। इसलिए वह इस तरह की बातें करते रहते हैं। वह एक देश, एक चुनाव, एक टैक्स, एक कानून, एक पहचान की बातें करते हैं। तो क्या वह यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर देश की विविधता और बहुलवाद को छीन लेंगे?-असदुद्दीन ओवैसी एआईएमआईएम अध्यक्ष
इसी तरह कांग्रेस ने भी समान नागरिक संहिता को लेकर सवाल उठाया। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने पीएम मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि परिवार और राष्ट्र एक नहीं है। हालांकि जिस आम आदमी पार्टी से उम्मीद नहीं थी उसने समान नागरिक संहिता को संविधान सम्मत बताते हुए इसका समर्थन किया है। वैसे नेता जो भी कहें लेकिन दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता का पालन होता है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड के अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस आदि शामिल हैं। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एक समान कानून है। इन देशों में किसी भी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं। यहां तक कि अपने ही देश के गोवा में भी समान नागरिक संहिता लागू है और वहां किसी को कोई दिक्कत नहीं है। राज्यन में सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्तंराधिकार के कानून समान हैं। गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है। रजिस्ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी। संपत्ति पर पति-पत्नी का समान अधिकार है। हालांकि, यहां भी एक अपवाद है। जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है। वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है। हालांकि, इसकी कुछ शर्तें भी हैं।
समान नागरिक संहिता पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
* ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है। साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी।
* बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था। इस दौरान उन्होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है।
* गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा। लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया।
उत्तराखंड में जल्द लागू होगा यूसीसी
समान नागरिक संहिता को लेकर पूरे देश की नजरें उत्तराखंड पर टिकी हुई हैं। गोवा के बाद उत्तराखंड इसे लागू करने वाला पहला राज्य बनने जा रहा है। उत्तराखंड के बाद इसे पूरे देश में लागू किये जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं। उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट बनाने के लिए गठित समिति इन दिनों इसे अंतिम रूप देने में जुटी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि फाइनल ड्राफ्ट आते ही सरकार समान नागरिक संहिता को राज्य में लागू कर देगी। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि धामी सरकार द्वारा की गई पहल में केंद्र की सहमति सम्मिलित थी। समान नागरिक संहिता का विषय भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर रहा है। वर्ष 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश भाजपा ने अपने दृष्टिपत्र में इसे प्रमुख स्थान दिया था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी चुनावी भाषणों में कहा था कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने पर यहां समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। सत्ता में आने के बाद उन्होंने इस दिशा में कदम बढ़ाया। धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करने के लिए रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया। यह समिति आम जन के साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय, प्रदेश की विभिन्न जनजातियों व महिलाओं के साथ बैठक कर उनके सुझाव ले चुकी है। समाज के सभी वर्गों और समुदायों ने खुले मन से अपनी बात समिति के समक्ष रखते हुए सुझाव दिए हैं। प्रदेश सरकार समिति का कार्यकाल दो बार बढ़ा चुकी है। अभी कार्यकाल सितंबर तक के लिए बढ़ाया गया है। समिति को ढाई लाख से अधिक सुझाव मिले हैं और वह ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे रही है। अब विधि आयोग (लॉ कमीशन) भी पूरे देश में समान नागरिक संहिता के लिए जनता से विचार विमर्श कर रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून को अपने संबोधन में कहा कि सुप्रीम कोर्ट इसके निर्देश दे चुकी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी इसके लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सराहना कर चुके हैं। जाहिर है कि ऐसे में पूरे देश की नजरें उत्तराखंड पर टिक गई हैं। समझा जा रहा है कि उत्तराखंड में लागू होने वाली समान नागरिक संहिता में इससे जुड़े विभिन्न पहलू शामिल किए जाएंगे और इसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। इससे केंद्र के साथ ही दूसरे राज्यों के लिए भी राह आसान होगी। ऐसे में प्रदेश सरकार जल्द से जल्द इसे लागू करने के प्रयास में जुट गई है। माना जा रहा है कि समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद प्रदेश सरकार इसमें आवश्यकतानुसार कुछ संशोधन के साथ विधानसभा से विधेयक पारित कराने के बाद समान नागरिक संहिता लागू कर देगी।