प्रयागराज में माफिया अतीक के इशारे पर हुई उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या के बाद से योगी सरकार अतीक व उससे जुड़े लोगों के साम्राज्य को मिट्टी में मिलाने में जोरशोर से जुटी हुई है। साल 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालते ही सीएम योगी ने साफ कह दिया था कि या तो अपराधी प्रदेश छोड़ दें या फिर अपराध।
अतीक अहमद पांच बार विधायक और एक बार उस फूलपुर सीट से सांसद भी रहा है, जहां से कभी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू लोकसभा का चुनाव लड़ते थे। डर-आतंक और दबंगई के बावजूद अतीक के ख़िलाफ़ सौ से ज़्यादा आपराधिक मुक़दमे दर्ज हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में सिस्टम उसके इशारे पर कुछ इस तरह नाचता है कि आज तक उसे एक भी मामले में सज़ा नहीं हो पाई है। अतीक की हनक और भौकाल का अंदाजा ऐसे भी लगाया जा सकता है कि हाईकोर्ट के दस जजों ने उसके मुकदमों की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
उमेश पाल शूटआउट केस के बाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में टिप्पणी करते हुए लिखा है कि ऐसा लगता है कि प्रयागराज के कुछ इलाकों में अब भी क़ानून का नहीं बल्कि अतीक का राज चलता है। इन इलाकों में खाकी का नहीं बल्कि अतीक का इक़बाल बोलता है। चार साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणियों के साथ उसे उत्तर प्रदेश से बाहर की जेल में रखे जाने का आदेश दिया था। अतीक के बारे में कहा जाता है कि वह इतना शातिर और खूंखार है कि अपराध से लेकर कारोबार और दबंगई से लेकर सियासत तक में जो भी उसके रास्ते आया, उसका अंजाम एक ही हुआ। चाहे उसका उस्ताद चांद बाबा हो या उमेश पाल। योगी राज में भी जेल में रहते हुए वह अपहरण कराकर अगवा हुए शिकार की जेल में पिटाई करता था।
एक तांगे वाले का अनपढ़ बेटा अतीक इतना महत्वाकांक्षी है कि पैसों की खातिर जुर्म की दुनिया में कदम रखने के बाद वह कुछ ही दिनों में अपराध जगत का बेताज बादशाह बन गया। अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए उसने सियासत को कवच के तौर पर इस्तेमाल किया और अपराध व राजनीति के दम पर करोड़ों नहीं बल्कि अरबों का आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लिया। अतीक को गुनाहों की दुनिया इतनी पसंद आ गई कि उसने पूरे परिवार को इसमें शामिल कर लिया है। वह खुद गुजरात की साबरमती जेल में बंद है तो छोटा भाई अशरफ यूपी की बरेली जेल में। बड़ा बेटा उमर लखनऊ जेल में कैद है तो दूसरा बेटा अली अहमद प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में। तीसरे बेटे असद पर उमेश पाल शूटआउट केस में ढाई लाख रुपये का इनाम घोषित है तो पत्नी शाइस्ता परवीन फरार हैं। एहजम और आबान नाम के दो नाबालिग बेटे भी लापता हैं।
करीब 58 साल के अतीक अहमद के पिता हाजी फ़िरोज़ भी आपराधिक प्रवृत्ति के थे। वो तांगा चलाते थे। बेहद मामूली घर के हाजी फ़िरोज़ की माली हालत ऐसी नहीं थी कि वह अतीक समेत अपनी दूसरी औलादों को बेहतर तालीम दिला सकते। पिता के नक़्शे कदम पर चलने की वजह से अतीक के खिलाफ सन् 1983 में पहली एफआईआर दर्ज हुई। उस वक्त उसकी उम्र महज़ अठारह साल थी। कुछ ही सालों में अतीक के गुनाहों की तूती बोलने लगी, तो वह जिले की क़ानून व्यवस्था के लिए खतरा बनने लगा। अतीक और पुलिस में लुकाछिपी का खेल आम हो गया था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब अतीक और उसके करीबियों पर पुलिस इनकाउंटर में मारे जाने का खतरा मंडराने लगा।
पुलिस इनकाउंटर से बचने के लिए अतीक ने साम्प्रदायिक कार्ड खेला और 1989 में हुए यूपी के विधानसभा चुनावों में इलाहाबाद वेस्ट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई। उस दौर के हालात के चलते अतीक को चुनाव में कामयाबी भी मिल गई और वह माननीय विधायक बन गया। 1989 के इस चुनाव में तत्कालीन पार्षद और अतीक जैसी ही आपराधिक छवि का चांद बाबा भी मैदान में उतरा था। अतीक को यह बात इतनी नागवार गुजरी थी कि नतीजे आने से पहले ही उसने रोशन बाग़ इलाके के कबाब पराठे की दुकान पर उसे अपने गुर्गों के साथ मिलकर गोली और बमों से मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद वह इसी इलाहाबाद सिटी वेस्ट सीट से 1991, 1993, 1996 और 2002 में भी लगातार जीत हासिल करता रहा। पहला दो चुनाव वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीता। तीसरे चुनाव में भी वह आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर ही मैदान में उतरा, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन ने उसे अपना समर्थन दिया और उसके खिलाफ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया। 1996 में वह समाजवादी पार्टी के टिकट पर विधायक चुना गया तो 2002 में डॉ. सोनेलाल पटेल के अपना दल से। 2002 के चुनाव के वक़्त वह अपना दल का प्रदेश अध्यक्ष बना था और हेलीकाप्टर से यूपी में कई जगहों पर प्रचार के लिए गया था। उसने अपने साथ अपना दल के दो और उम्मीदवारों को जीत दिलाई थी। साल 2004 में फिर से सपा में न सिर्फ उसकी वापसी हुई, बल्कि वह मुलायम सिंह की पार्टी से उस फूलपुर से सांसद चुना गया, जो कभी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की सीट हुआ करती थी। 2004 में सांसद चुने जाने तक अतीक ने जिस भी चुनाव में किस्मत आजमाई, उसे हर जगह कामयाबी मिली।
25 जनवरी साल 2005 को प्रयागराज में एक ऐसी घटना घटी, जो न सिर्फ इतिहास बन गई, बल्कि उसने अतीक और उसके परिवार के सियासी करियर को तबाह करके रख दिया। इस घटना के बाद भी अतीक ने लोकसभा और विधानसभा के कई चुनाव लड़े, लेकिन हरेक चुनाव में नाकामी ही उसके हिस्से आई। दरअसल सांसद बनने के बाद अतीक को विधानसभा की सदस्यता छोड़नी पडी। अतीक ने अपने इस्तीफे से खाली हुई सीट पर अपने छोटे भाई खालिद अजीम उर्फ़ अशरफ को सपा का टिकट दिलवा दिया। अशरफ के मुकाबले बीएसपी ने राजू पाल को टिकट दिया। दो बाहुबलियों की लड़ाई में अशरफ चुनाव हार गया और राजू पाल विधायक चुन लिया गया। विधायक बनते ही राजू पाल पर कई बार जानलेवा हमले हुए।
25 जनवरी 2005 को शहर के धूमनगंज इलाके में विधायक राजू पाल की दिन दहाड़े हत्या कर दी गईं। विधायक की हत्या का आरोप अतीक और अशरफ पर लगा। इस मामले में दोनों भाइयों को जेल भी जाना पड़ा। राजू पाल की हत्या के बाद सिटी वेस्ट सीट पर दूसरा उपचुनाव हुआ। तत्कालीन सपा सरकार ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया और सरकारी मशीनरी की मदद से अशरफ विधायक चुन लिया गया। इसी सीट से साल 2007 के चुनाव में अशरफ और 2012 में अतीक को हार का सामना करना पड़ा। राजू पाल की हत्या का आरोप अतीक के गले की ऐसी फांस बनी, जिससे वह आज तक नहीं उबर सका। वह उसके लिए नासूर बन चुका है और अब मिट्टी में मिलने की कगार पर पहुंच गया है।
अतीक ने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रतापगढ़ से अपना दल के टिकट, 2014 में श्रावस्ती सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट, 2018 में फूलपुर सीट के उपचुनाव में आज़ाद और 2019 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन सभी जगह उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। श्रावस्ती को छोड़कर लोकसभा के बाकी तीन चुनावों में तो उसकी जमानत तक जब्त हो गई।
ऐसा नहीं है कि सफेदपोश बनने के बाद अतीक ने काली करतूतों से तौबा कर ली हो, बल्कि यह कहा जा सकता है कि वक़्त के साथ उसके अपराधों की संख्या बढ़ती चली गई। उसने सियासत को ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया और हत्या-जानलेवा हमले, डकैती और अपहरण जैसी वारदातों को अंजाम देता रहा। सियासत में स्थापित होने के बाद उसने संगठित अपराधों पर ज़्यादा फोकस किया और आर्थिक साम्राज्य मजबूत करने में लग गया। तमाम बेनामी सम्पत्तियां बनाईं। करीबियों के नाम पर करोड़ों-अरबों के ठेके लिए और बाद में कमीशन लेकर उन्हें दूसरों को दे दिया। देश के तकरीबन एक दर्जन राज्यों में अतीक का कारोबार फैला हुआ है। रंगदारी-वसूली और गुंडा टैक्स से भी उसने अरबों रुपये कमाए हैं।
योगी राज में हुईं कई बड़ी कार्रवाइयां
योगीराज में अतीक और उसके गुर्गों के साथ ही तमाम करीबियों के खिलाफ भी बड़ी कार्रवाइयां की गई हैं। उसकी कमर तोड़ दी गई है, लेकिन गुनाह की दुनिया का खात्मा होना अभी पूरी तरह बाकी है।उमेश पाल शूट आउट केस के बाद जारी किये गए आंकड़ों के मुताबिक़ योगी राज में माफिया अतीक के गैंग पर कुल 144 कार्रवाइयां की गई हैं। गैंग से जुड़े हुए 14 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। 22 करीबियों की हिस्ट्रीशीट खोली गई है। 14 लोगों के खिलाफ गुंडा एक्ट की कार्रवाई की गई है। 68 शस्त्र लाइसेंस रद्द किये गए हैं। दो लोगों को जिला बदर किया गया है। गैंगस्टर एक्ट के तहत 415 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई है।751 करोड़ रुपये की अवैध सम्पत्तियों का ध्वस्तीकरण किया गया है। इसके अलावा ठेके-टेंडर और दूसरे अवैध कामों पर 1200 करोड़ रुपये से ज़्यादा की चोट की गई है।
अतीक को कुल मिलाकर 2368 करोड़ रुपये की आर्थिक चोट दी गई है। उसके खिलाफ ईडी ने मनी लांड्रिंग का भी केस दर्ज किया है। काली कमाई को लेकर माफिया के कई करीबी ईडी की रडार पर हैं। तमाम मामलों में गैंग के कई सदस्यों की जमानत कोर्ट से निरस्त कराई जा रही है। शहर के लूकरगंज इलाके में अतीक के कब्ज़े से खाली कराई गई ज़मीन पर गरीबों के लिए बेहद कम कीमत पर फ़्लैट बनाए जा रहे हैं। हालांकि इन सारी कवायदों के बावजूद माफिया की दहशत की दुनिया का अभी पूरी तरह से खात्मा नहीं हो सका है।