महज नौ साल के भीतर ही पूर्वोत्तर के सात राज्यों में भगवा परचम लहराने के मायने यही हैं कि साल 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से इन राज्यों के लोगों का विश्वास भाजपा के प्रति बढ़ा है। उससे पहले इन राज्यों में न भाजपा की कोई पहचान थी और न ही जनाधार ही था। त्रिपुरा, मेघालय व नागालैंड में भाजपा की वापसी बता रही है कि पीएम मोदी का जादू बरकरार है। यह जीत 2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा के लिए सियासी टॉनिक मिलने जैसा है।
पूर्वोत्तर के दो राज्यों त्रिपुरा और नागालैंड में तो भाजपा ने जोरशोर से वापसी की है, लेकिन मेघालय में महज दो सीट मिलने के बावजूद वहां भी भाजपा गठबंधन की सरकार बन चुकी है। यानी तीनों ही राज्यों में भाजपा ने अपना परचम लहरा दिया है। त्रिपुरा में वह अपने दम पर ही दोबारा सरकार बना रही है तो नागालैंड और मेघालय में पिछली बार की तरह ही वह गठबंधन सरकार का अहम हिस्सा होगी। भाजपा के लिये ये जीत जहां 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए सियासी संजीवनी साबित होने वाली है वहीं, कांग्रेस,लेफ्ट समेत ममता बनर्जी की टीएमसी के लिए ये नतीजे निराश करने वाले हैं। बेशक पूर्वोत्तर के राज्य छोटे हैं लेकिन भाजपा के लिए ये जीत किसी टॉनिक से कम नहीं है।
इस साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा ने पूरी ताकत लगा रखी थी कि वह इनमें से किसी भी एक राज्य में सरकार बनाने से चूक न जाये और इसमें वह कामयाब भी हुई। महज नौ साल के भीतर ही पूर्वोत्तर के आठ में से सात राज्यों में भगवा परचम लहराने के मायने यही हैं कि साल 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से इन राज्यों का कायाकल्प हुआ है और कट्टर हिंदुत्व की छवि होने के बावजूद वहां के लोगों ने भाजपा के प्रति अपना भरोसा जताया है। साल 2014 तक पूर्वोत्तर के सभी आठ राज्यों में कांग्रेस या लेफ्ट की ही सरकार थी। उससे पहले इन राज्यों में न भाजपा की कोई पहचान थी और न ही जनाधार ही था। साल 2003 में सिर्फ अरुणाचल प्रदेश इकलौता ऐसा अपवाद बना था,जब कांग्रेस के दिग्गज नेता ने पार्टी के कई विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था। तब वह पहला मौका था,जब भाजपा ने पूर्वोत्तर के किसी राज्य में अपनी सरकार बनाई थी।
साल 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई, तब पूर्वोत्तर के आठ में से पांच राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में कांग्रेस की सरकार थी। जबकि त्रिपुरा में सीपीआई(एम) और सिक्किम में एसडीएफ की सरकार थी और नगालैंड में एनपीएफ का राज था, लेकिन वहां 2016 से सरकारें बदलने का जो सिलसिला शुरू हुआ उसने 2019 आते-आते पूरी तरह से पूर्वोत्तर का सियासी नक्शा ही बदलकर रख दिया। यानी भाजपा ने कांग्रेस और लेफ्ट के समीकरण को ध्वस्त करके रख दिया। देखते ही देखते आठ में से सात राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने सरकार बना ली जिसके बारे में कांग्रेस या वाम दलों ने कभी सोचा भी नहीं था। भाजपा इतनी ताकतवर हो गई कि असम और त्रिपुरा में उसने अकेले दम पर सरकार बनाई, जबकि मेघालय, नगालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में क्षेत्रीय दलों के गठबंधन के साथ। केवल मिजोरम में एमएनएफ गठबंधन की सरकार रही। सातों राज्यों में जादू बरकरार रहने का सीधा-सा मतलब है कि वहां के लोग मोदी सरकार की नीतियों से खुश हैं।
केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद से पूर्वोत्तर के राज्यों में जिस तेजी से विकास हुआ है,उससे लोगों को रोजगार मिलने के अलावा उनकी आमदनी भी बढ़ गई। सभी राज्यों को एयर, रेल और रोड कनेक्टिविटी के जरिए देश के बाकी हिस्सों से जोड़ा गया। मोदी सरकार ने इन राज्यों के बीच बरसों से चले आ रहे विवाद को भी खत्म कराया। मसलन, मेघालय और असम का 50 साल पुराना सीमा विवाद खत्म कराया,तो वहीं नगालैंड-असम सीमा विवाद को सुलझाने के लिए भी सरकार ने कई कदम उठाए। इसके अलावा त्रिपुरा, असम और मेघालय में राजनीतिक हिंसा में काफी कमी आई। पीएम मोदी के एजेंडे में नार्थ ईस्ट के राज्य कितने अहम हैं,इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि बीते दिनों पीएमओ की तरफ से जारी हुई एक सूचना के मुताबिक साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक मोदी नॉर्थ ईस्ट के इन राज्यों में 97 बार दौरा कर चुके हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने नॉर्थ ईस्ट के लिए मंत्रियों की एक अलग टीम भी बनाई है। इन तीन राज्यों के चुनाव को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए नार्थ ईस्ट के बजट को बढ़ाकर 5892 करोड़ रुपये किया है,जो कि 2022-23 के मुकाबले 113 फीसदी ज्यादा है। जाहिर है कि इन सब कारणों ने भी भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई है।
कांग्रेस की अभूतपूर्व भारत जोड़ो यात्रा के बाद ईसाई, मुस्लिम व जनजाति बहुल पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में उसकी राजनीतिक स्थिति सुधरने के जो कयास लगाए जा रहे थे, वो बेतुके प्रतीत हुए। अबकी बार त्रिपुरा की कुल 60 सीटों में से भाजपा को 32 (स्पष्ट बहुत), सीपीआईएम को 11, टीएमपी को 13, कांग्रेस को 3 और 1 सीट अन्य को मिली है। पिछले चुनाव के मुकाबले देखा जाए तो यहां भाजपा को 3 सीटें कम मिली हैं, जिससे पता चलता है कि राज्य में उसका जनाधार खिसका है। वहीं, सीपीआईएम को भी पांच सीटें कम मिली हैं, जिससे मालूम होता है कि राज्य में उसका भी जनाधार छिजा है। यहां पर अन्य दलों को भी 8 सीटें कम मिली हैं, जिससे उनके जनाधार के भी खिसकने की चर्चा है। जबकि कांग्रेस ने यहां पर 3 सीटें जीतकर शून्य सीट के अभिशाप को खत्म करने में सफलता हासिल की है। वहीं, इस राज्य की नवगठित पार्टी टीएमपी यहां पर सबसे बड़ी गेनर के रूप में उभरी है और पहली बार में ही उसने 13 सीटें हथिया ली है, जो बहुत बड़ी राजनीतिक सफलता है। ऐसा इसलिए कि यह पार्टी यहां के पुराने राजपरिवार से जुड़ी हुई है, जिसकी जड़ें यहां पर काफी पुरानी हैं और उसका फिर से यहां जमना कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही सियासी चुनौती को बढ़ायेगा।
वहीं, नागालैंड की कुल 60 सीटों में भाजपा गठबंधन को 37 सीटें मिली हैं, जो स्पष्ट बहुमत से ज्यादा है। जबकि एनसीपी को 7, एनपीएफ को 2 और अन्य को 14 सीटें मिली हैं। पिछले चुनाव के मुकाबले देखा जाए तो यहां पर भाजपा गठबंधन की 9 सीटें बढ़ी है, जबकि एनपीएफ़ को 25 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है, जो कि बहुत बड़ी राजनीतिक क्षति समझी जा रही है। वहीं, एनसीपी ने यहां 7 सीटें गेन की है जबकि पहले वह शून्य पर थी। वहीं अन्य को भी 9 सीटों का फायदा हुआ है। हालांकि एनपीएफ को हुए भारी राजनीतिक नुकसान की वजह से भाजपा को यहां स्वाभाविक रूप से काफी मजबूती मिली है।
मेघालय की कुल 60 सीटों में से 59 सीटों पर ही मतदान हुआ, लेकिन किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुत नहीं मिला है। हां, एनपीपी को यहां 26 सीटें मिली हैं, जो कि राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। वहीं, भाजपा को 2 सीटें मिली हैं। वहीं, कांग्रेस को 5, टीएमसी को 5 और अन्य को 21 सीटें मिली हैं। पिछले चुनाव के मुकाबले देखा जाए तो एनपीपी को जहां 7 सीटों का फायदा हुआ, वहीं भाजपा गठबंधन की स्थिति जस की तस बनी हुई है। यहां पर भाजपा ने एनपीपी को समर्थन दिया है, जिससे उसके सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया है। हां, यहां पर कांग्रेस को 16 सीटों का नुकसान हुआ है, जबकि टीएमसी को 5 सीटों का फायदा हुआ है। वहीं अन्य को भी तीन सीटों का फायदा हुआ है।
भाजपा की इन बातों में दम है कि लोगों ने यहां पर शांति, विकास और समृद्धि की जारी निरन्तर कोशिशों को चुना है। जो पूर्वोत्तर कभी नाकाबंदी, उग्रवाद, आतंकवाद और लक्षित हत्याओं के लिए जाना जाता था, उसका भाग्य और तस्वीर बदलने में पीएम नरेंद्र मोदी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। अपने 9 साल के प्रधानमंत्रित्व काल में वो 50 से अधिक बार पूर्वोत्तर की यात्रा कर चुके हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंता विश्व शर्मा के मुस्लिम विरोधी तेवर पूर्वोत्तर के हिंदुओं और ईसाइयों को आश्वस्त कर रहे हैं कि उनका उत्पीड़न अब वैसे नहीं होगा, जैसे कि 2014 से पहले होता आया है।
त्रिपुरा में किस पार्टी को कितनी सीटें
पार्टी सीटें
भाजपा 32
टिपरा मोथा पार्टी 13
सीपीआईएम 11
कांग्रेस 3
आईपीएफटी 1
अन्य 1
मेघालय में किसे कितनी सीटें
पार्टी सीटें
नेशनल पीपुल्स पार्टी 26
भाजपा 2
यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी 11
कांग्रेस 5
टीएमसी 5
अन्य 10
नागालैंड में किसे कितनी सीटें
पार्टी सीटें
भाजपा 12
एनडीपीपी 25
जदयू 1
लोजपा 2
एनपीएफ 2
एनपीपी 5
एनसीपी 7
आरपीआई 2
अन्य 4
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय- के विधानसभा चुनावों के नतीजे कुल मिलाकर भाजपा के लिए संतुष्टि और विपक्ष के लिए निराशा का ही सबब बनते दिख रहे हैं। पूर्वोत्तर के इस जनादेश की अलग-अलग तरह से व्याख्या की जा सकती है, लेकिन एक तथ्य जिस पर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, वह यह है कि बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन राज्यों को जितनी तवज्जो दी, उतनी शायद ही किसी और पीएम ने दी हो। न सिर्फ डिवेलपमेंट प्रॉजेक्ट्स पर ध्यान दिया गया बल्कि नॉर्थ-ईस्ट केंद्र सरकार की प्राथमिकता में है, इसका हर संभव तरीके से एहसास कराया गया। बहरहाल, इन चुनाव परिणामों का राष्ट्रीय राजनीति पर वैसे तो कोई खास असर नहीं होना है, लेकिन त्रिपुरा पर जरूर सबकी नजरें लगी हुई थीं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने वहां ढाई दशक से लगातार सत्ता पर काबिज लेफ्ट फ्रंट को पराजित कर सरकार बनाई थी। इस बार जहां विपक्ष अपने इस खोए हुए दुर्ग पर वापस कब्जा करना चाहता था, वहीं भाजपा के लिए चुनौती थी कि वह अपनी जीत को टिकाऊ साबित करे।
देश कह रहा मत जा मोदीः पीएम
कुछ लोग बेइमानी भी कट्टरता से करते हैं। ये लोग अब मोदी की कब्र खोदने की साजिश में लगे हैं। ये लोग कह रहे हैं कि मर जा मोदी… देश कह रहा है मत जा मोदी। कब्र खोदने की बात के बाद भी कमल खिल रहा है। कुछ विशेष चिंतकों को सोच-सोचकर पेट में दर्द होता है कि भाजपा के जीतने का राज़ क्या है। भाजपा की विजय अभियान का रहस्य छुपा है त्रिवेणी में। पहली शक्ति- भाजपा सरकारों का कार्य, दूसरी शक्ति-भाजपा सरकारों की कार्य संस्कृति, तीसरी शक्ति- भाजपा कार्यकर्ताओ का सेवा भाव। चुनाव जीतने से ज्यादा मुझे इस बात का संतोष है कि मैंने वहां बार बार जाकर वहां की जनता के दिलों को जीता। पूर्वोत्तर के लोगों को एहसास है कि अब उनकी उपेक्षा नहीं होती। अब नॉर्थ ईस्ट ना दिल्ली से दूर है, ना दिल से दूर है।
कांग्रेस के किसी काम नहीं आया गठबंधन
हाल के वर्षों में कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हारकर अपना जनाधार खोती जा रही है। लेकिन इस चुनाव में उनके लिए चिंता करने वाला ट्रेंड जारी रहा कि बार-बार हार के बाद अब उनके सियासी स्पेस को लेने दूसरे दल सामने आ गए हैं। हालांकि, त्रिपुरा में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जिस बुरी स्थिति में पहुंच गई थी उससे वह थोड़ा संभली है। इस बार वहां कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन था तो कांग्रेस के खाते में भी कुछ सीटें आई हैं जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में वह जीरो पर आ गई थी। हालांकि, किसी दौर में कांग्रेस का माने जाना वाला जनजातीय वोट अब उसके साथ नहीं है। त्रिपुरा में जनजातीय पार्टी टिपरा मोथा ने कांग्रेस के इस वोट बैंक को अपनी तरफ कर लिया है तो मेघालय में टीएमसी ने कांग्रेस की मुसीबत बढ़ाई है। पहली बार मेघालय में चुनाव लड़ रही टीएमसी के आगे बढ़ने से कांग्रेस की मुसीबत यहां बढ़ी है। भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस अब तक कई गठबंधन कर चुकी है। ऐसा ही त्रिपुरा में लेफ्ट के साथ गठबंधन था । लेकिन चुनाव परिणाम ने साबित किया कि यह गठबंधन सफल नहीं रहा। पहले भी कांग्रेस का इस तरह गठबंधन का प्रयोग सफल नहीं हुआ है। पश्चिम बंगाल में भी टीएमसी और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले में लेफ्ट के साथ गठबंधन कर इसे त्रिकोणीय करने की कोशिश की लेकिन उसमें भी सफलता नहीं मिली थी। इस परिणाम के बाद कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि चुनाव समय में बिना तैयारी या होमवर्क के गठबंधन करने का आनन-फानन वाला फैसला सफल नहीं होता है।