रामचरित मानस पर बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखऱ यादव के एक बयान को आधार बनाकर बसपा से भाजपाई और फिर सपाई बने स्वामी प्रसाद मौर्य ने राजनीतिक मुनाफा कमाने के लिए समाज में विष का व्यापार करना शुरू कर दिया। अखिलेश यादव को भी संभवतः इसमें फायदा नजर आया, तभी तो उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें पारितोषिक दिया है। हालांकि लोगों में जिस तरह की नाराजगी है उससे कहीं उनका यह दांव पार्टी के लिए भष्मासुर न साबित हो जाय।
‘सिय राम मय सब जग जानी करहूं प्रणाम जोरी जुग पानी’ का उद्घोष करने वाले संत तुलसीदास रचित राम चरित मानस की एक चौपाई के अर्थ का अनर्थ कर सियासी रोटियां सेंकी जा रही है। संस्कृत के प्रकांड पंडित होते हुए भी गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी में रामचरित मानस लिखी। साधारण बोली में लिखी इसी लिए जन-जन में तुलसीदास की रामायण उपस्थित है। मेहनतकश मज़दूर से लेकर दार्शनिक और वैज्ञानिक तक रामचरित मानस का वाचन करते हैं।
दुनिया की सभी भाषाओं में रामचरित मानस का जितना अनुवाद हुआ है उतना किसी और रचना का नहीं हुआ। गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस आज भी दुनिया में न सिर्फ सब से ज़्यादा पढ़ा जाने वाला धर्मग्रंथ है बल्कि सब से ज़्यादा बिकने वाली पुस्तक भी है। अकेले भारत में रामचरित मानस की दस हजार प्रतियां गोरखपुर का गीता प्रेस ही रोज बेचता है। यह बाइबिल की तरह मुफ्त में नहीं बांटी जाती। तुलसीदास का रामचरित मानस सद्भाव सिखाता है। शालीनता और मर्यादा सिखाता है।
किसी खल पात्र का संवाद तुलसीदास का कथन कैसे माना जा सकता है भला? ये लोग मतिमंद या नासमझ नहीं बल्कि एजेंडाधारी सियासी घाघ हैं। ये सामाजिक अपराधी समाज में विष-वमन इस उम्मीद में कर रहे हैं ताकि वोटों की फसल उगा सकें। जातिवाद का ढपली बजाने वाले सियासी नराधम मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र पर विवाद उठाने वाले श्रीराम को नहीं समझते हैं। वे यह भूल क्यों जाते हैं कि श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे और केवट को गले लगाकर अपना परम मित्र बनाया था।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कोल, भील, किरात, आदिवासी, वनवासी, गिरीवासी, कपिश आदि जाति समुदायों के साथ जंगल में रहे और उन्हीं के दम पर उन्होंने शास्त्रों के ज्ञाता प्रकाण्ड विद्वान और ब्राह्मण कुल के रावण और उसके संपूर्ण कुल को नष्ट कर दिया था। उन्हें यह भी याद नहीं रहता कि प्राचीनकाल के गुरुकुलों में हर जाति और संप्रदाय का व्यक्ति पढ़कर उच्च बनता था। वेदों को लिखने वाले ब्राह्मण नहीं थे। वाल्मीकि रामायण किसी ब्राह्मण ने नहीं लिखी। महाभारत और पुराण लिखने वाले वेद व्यासजी निषाद कन्या सत्यवती के पुत्र थे। लेकिन उनकी राजनीति इससे नहीं चल सकती इसलिए चौपाई और श्लोकों के गलत अर्थ निकालकर सियासी रोटियां सेंकने में लगे हैं। वोटों के सौदागर उसके संदर्भ को काटकर अपनी व्याख्या करते हैं।
बहरहाल, जिस चौपाई को लेकर मौर्या ने सवाल उठाया है वह सुंदरकांड में समुद्र का कथन है। पूरी चौपाई है-प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥ ढोल गवांर शूद्र पशु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।। यहां ताड़ना शब्द को लेकर अर्थ का अनर्थ किया जा रहा है। सच तो यह है कि रामचरित मानस खड़ी बोली में नहीं बल्कि अवधी व अन्य स्थानीय भाषाओं में है। अवधी में ताड़ना का अर्थ समझाना, देखरेख करना व ध्यान देना आदि होता है। कई विद्वान यह भी मानते हैं कि यह चौपाई बाद में बदली गई है। असली चौपाई में शूद्र नहीं क्षुब्ध है और नारी नहीं रारी है। यानी ढोल, गवार, क्षुब्ध पशु, रारी है ।
रामचरित मानस की एक और चौपाई पर विवाद खड़ा किया जाता है। पूजहि विप्र सकल गुण हीना, पूजीय न शूद्र गुण ज्ञान प्रवीणा।। इस चौपाई का इस तरह गलत अर्थ निकाला जाता है- ब्राह्मण चाहे कितना भी ज्ञान गुण से रहित हो वह पूजनीय है और शूद्र चाहे कितना भी गुणी ज्ञानी हो लेकिन कभी पूजनीय नहीं हो सकता। तुलसीदासजी की इस चौपाई का अर्थ समझने के लिए पहले समझना होगा कि विप्र कौन है? तुलसीदासजी ने विप्र शब्द का प्रयोग किया है ब्राह्मण का नहीं।
मनु स्मृति में कहा गया है- जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत द्विजः। वेद पाठात् भवेत् विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।। अर्थात व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है। यानी यदि विप्र ने भले ही उस सारे वेद ज्ञान को आत्मसात नहीं किया है, गुणहीन हो लेकिन वह पढ़ा-लिखा है इसीलिए वह पूजनीय है। शुद्र वेद प्रवीणा का अर्थ हुआ ऐसा व्यक्ति जो सारी किताबें पढ़-पढ़ के प्रवचन बांचता रहता है उसका मर्म नहीं समझता है और वह उसका अर्थ नहीं जानता है। फिर भी पांडित्य दिखाता रहता है। ऐसे लोग पूजनीय नहीं है।
बहरहाल, स्वामी प्रसाद की विवादित टिप्पणी के बाद राजनीति के गलियारों में यह बात बड़े जोरों शोरों से फैलाई जा रही थी कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव स्वामी के बयान से काफी नाराज हैं और उनके खिलाफ सख्त एक्शन ले सकते हैं। यह खबर बाकायदा मीडिया में भी खूब चली थी। यहां तक कि सपा की एक नेत्री ने तो स्वामी को बसपा का एजेंट बता दिया था। कुछ समय पूर्व समाजवादी पार्टी में लौट कर आए शिवपाल यादव ने रामचरितमानस पर स्वामी के बयान को उनकी निजी राय बताते हुए पार्टी की तरफ से पल्ला झाड़ लिया था। लेकिन दस दिन भी नहीं बीते होंगे कि अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठा कर यह साबित कर दिया है कि उनके लिए राजनीति से इतर कुछ भी नहीं है। अपनी राजनीति चमकाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसीलिए तो पहले अपने पिता-चाचा का अपमान करने वाले अखिलेश यादव को उनकी अपनी ही पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरितमानस पर की गई विवादित टिप्पणी में कुछ बुरा नहीं लगा होगा अन्यथा वह स्वामी प्रसाद मौर्य को इतनी जल्दी पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नहीं बना देते। हां, इसके विपरीत बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखऱ यादव को उनकी पार्टी ने और अधिक बयान देने से रोक दिया।
बहरहाल, स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस पर दिए गए बयान को अभी तक कई नेता निजी बताते रहे हैं, लेकिन अब पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता सुनील साजन ने भी उनका समर्थन करते हुए उन्हें हटाने की मांग की है। इससे पहले सपा नेता और पूर्व विधायक ब्रजेश प्रजापति ने भी मौर्य का समर्थन करते हुए कहा था कि रामचरितमानस में कुछ आपत्तिजनक पंक्तियां हैं, उन्हें सरकार हटा दे या फिर रामचरित मानस को ही बैन कर दिया जाए। जाहिर है मौर्य को पदोन्नति दिए जाने से यह साफ है कि जिन लोगों को लगता था कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव 'साफ-सुथरी' राजनीति करते हैं, उनको अपना यह भ्रम दूर कर लेना चाहिए। असल में वह अपने पिता मुलायम सिंह यादव के ही दिखाए रास्ते पर चल रहे हैं। समाजवादी पार्टी की नई कार्यकारिणी में स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय महासचिव का पद मिलने के बाद स्वामी सपा के उन शीर्ष 14 नेताओं में शामिल हो गए हैं, जिन्हें यह पद दिया गया है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अखिलेश यादव ने आजम खान और अपने चाचा शिवपाल यादव को भी जगह दी है।
रामचरितमानस पर उठे विवाद के बीच चारों तरफ स्वामी प्रसाद मौर्य का विरोध हो रहा है। यहां तक कि समाजवादी पार्टी में भी कई नेता उनके बयान से सहमत नहीं हैं। वहीं अखिलेश यादव कुल मिलाकर अगड़े पिछड़ों की राजनीति करने में लगे हैं जैसे कि उनके पिता ने सत्ता पाने के लिए हिंदुओं को बांटने के लिए मंडल कमंडल की राजनीति की थी। पिता मुलायम सिंह यादव राम भक्तों पर गोली चलाने के लिए अपनी पीठ थपथपाते थे तो बेटा अखिलेश यादव उन लोगों की पैरोकारी कर रहा है जो रामचरित मानस को लेकर अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी का असली चाल, चरित्र और चेहरा यही है।
इसी क्रम में अखिलेश लखनऊ के मां पीतांबरा महायज्ञ परिक्रमा में पहुंचे। वहां उन्हें हिंदूवादी संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा। इस दौरान अखिलेश यादव मुर्दाबाद के नारे लगे। स्वामी प्रसाद मौर्य पर कार्रवाई की मांग लोग कर रहे थे। लेकिन, इन मांगों से इतर अखिलेश यादव ने पूरे मुद्दे को भाजपा और आरएसएस से जोड़कर रुख पलटने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि भाजपा हमें शूद्र मानती है। सदन में वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उन चौपाइयों का अर्थ पूछेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि वह शूद्र हैं कि नहीं। इसका सीएम योगी ने यह कहकर उन्हें करारा जवाब दिया है कि वे जरूर अखिलेश को उन चौपाइयों का अर्थ बताएंगे और समझाएंगे। सीएम ने कहा कि जिस मंच पर मुझे इसकी व्याख्या करनी होगी वहां जरूर करूंगा। लेकिन मैं कह सकता हूं विकास और निवेश जैसे मुद्दों से प्रदेशवासियों का ध्यान भटकाने के लिए उस पार्टी की शरारत का हिस्सा है, जिसके एजेंडे में कभी विकास नहीं था।