उत्तराखंड में जोशीमठ अकेला कस्बा नहीं है जिस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यहां सैकड़ों जोशीमठ हैं। गांवों-कस्बों के घर दरक रहे हैं। इन घरों में रहने वाले लोग खतरे की जद में जीने को मजबूर हैं।
दरारों के कारण खतरनाक हो चुके इन गांवों का समय-समय पर विशेषज्ञों की टीम ने सर्वे किया। इन्होंने अपनी रिपोर्ट में ग्रामीणों को पुनर्वासित करने की जरूरत बताई। लेकिन प्रदेश सरकारों ने इनकी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। सरकारी आंकड़ों को ही माने तो लगभग 465 गांवों के अधिकांश घरों, जमीनों में दरारें हैं। नौ साल पहले केदारनाथ आपदा के बाद राज्य सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे में 395 गांव खतरे में पाए गए थे। इनमें से 73 गांव अत्यन्त संवेदनशील माने गए थे। इन गांवों से परिवारों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है। लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में केवल 44 गांवों के 1,101 परिवारों को ही स्थानांतरित किया जा सका है।
ढाई दशक पूर्व आपदा के लिहाज से संवेदनशील 225 गांव चिन्हित किए गए थे। यह गांव रिहायश के हिसाब से उपयुक्त नहीं हैं। आपदा प्रभावित गांवों की संख्या जिस तरह बढ़ रही है, उस लिहाज से इनके विस्थापन की मुहिम रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है। सरकार ने आपदा प्रभावितों के विस्थापन, पुनर्वास के लिए वर्ष 2011 में नीति बनाई। इस नीति को कितनी गंभीरता से लिया गया, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2012 से 2015 तक केवल दो गांवों के 11 परिवारों का ही विस्थापन हो पाया।
रैणी गांव
यह गांव चिपको आंदोलन की प्रणेता रहीं गौरा देवी का है। यह जोशीमठ से मात्र 8 किलोमीटर दूर है। रैणी गांव अब लोगों के रहने के लिहाज से असुरक्षित हो गया है। दो साल पूर्व ग्लेशियर टूटने व फिर बाढ़ से पूरी तरह असुरक्षित हो गया है। गांव के ठीक नीचे जमीन लगातार खिसक रही है। जून 2021 को भूगर्भ विभाग की एक टीम ने गांव का सर्वे किया था। इस सर्वे के दौरान ही भू-धंसाव वाली जगह में फिर से पत्थर गिरने लगे और सर्वे वाले उसकी चपेट में आने से बाल-बाल बचे थे। सर्वे की रिपोर्ट गांव का विस्थापन किए जाने के पक्ष में थी।
उस समय आनन-फानन में ही प्रशासन ने ऐलान कर दिया कि रेणी के बगल के गांव सुभाईं में जमीन देख ली गई है और वहां इस गांव के 50 परिवारों का विस्थापन किया जाएगा। लेकिन इसके दूसरे ही दिन गांव के लोगों ने इसका विरोध भी करना शुरू कर दिया। इसके बाद से प्रशासन ने रैणी के विस्थापन की तरफ से चुप्पी साध रखी है। इतना ही नहीं जोशीमठ विकासखंड में 2 दर्जन से अधिक गांवों का पुनर्वास होना है। ये सभी गांव आज भी पुनर्वास की बाट जोह रहे हैं।
कर्णप्रयाग
सीएमपी बैंड, सब्जी मंडी, साकेत नगर, पुजारी गांव के बांये तरफ आईटीआई रोड के ऊपरी और निचले भाग में रहने वाले 50 से भी अधिक परिवार दहशत में है। यहां मकानों की दीवारों और चौकों के आंगन आदि की दरारें आपदा का दर्द बयां कर रही हैं। इस भाग में बरसात के दौरान तेजी से भू-धंसाव हुआ था। लेकिन अभी तक ट्रीटमेंट ना होने से लोग खतरे के साए में रात बिता रहे हैं। यहां बद्नीनाथ और नैनीताल हाईवे रोड के किनारे भू-धंसाव हो रहा है। 30 से अधिक भरानों में दो-दो फिट तक दरारें आ चुकी हैं। जिस कारण कई लोग अपना मकान छोड़ चुके हैं। लोग टूटे मकानों में खौफ के साए में रहने के लिए मजबूर हैं।
अटाली
जोशीमठ के बाद एक और धार्मिक नगरी ऋषिकेश के पास के इस गांव में भी घरों और जमीन पर दरारें पड़ रही हैं। अटाली गांव ऋषिकेश से करीब 25 किलोमीटर दूर है। यह गांव बद्रीनाथ नेशनल हाईवे पर व्यासी के पास है। ऋषिकेश के इस गांव से होते हुए कर्णप्रयाग तक रेल की पटरी बिछाई जानी है। जिसके लिए रेल विकास निगम ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट के तहत सुरंग की खुदाई करवा रहा है। यहां के लोगों का कहना है कि इस सुरंग की खुदाई से ही उनके घरों और जमीनों में दरारें आ गई हैं। गांव की जमीन धंसती जा रही है और खेतों तक में दरारें आ गई हैं। इसके मद्देनजर ग्रामीण विस्थापन और मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
मस्ताडी
यह गांव उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर है। बताया जा रहा है कि इस गांव में 1991 में आए भूकंप के बाद से भू-धंसाव शुरू हो गया था। भूकंप में गांव के लगभग सभी मकान ध्वस्त हो गए थे। 1997 में प्रशासन के द्वारा इस गांव का भूगर्भीय सर्वेक्षण भी कराया गया था। तब भूवैज्ञानिकों ने गांव में तत्काल सुरक्षात्मक कार्य कराए जाने का सुझाव दिया था। गांव धीरे-धीरे धंसता जा रहा है। गांव के रास्ते तक धस रहे हैं। गांव के ग्राम प्रधान सत्य नारायण सेमवाल बताते हैं, ‘प्रशासन ने वर्ष 1997 में गांव का भू सर्वेक्षण कराया था। तब भू वैज्ञानिक डीपी शर्मा ने गांव में सुरक्षात्मक कार्यों की सलाह दी थी। उन्होंने प्रशासन को जो रिपोर्ट सौंपी उसमें उन्होंने कहा था कि भू-धंसाव वाले क्षेत्र में भूमि संरक्षण विभाग से सर्वेक्षण कराकर चेकडैम, सुरक्षा दीवार का निर्माण और पौधा रोपण कराया जाए। रिपोर्ट में मकानों के चारों ओर पक्की नालियों का निर्माण कर पानी की निकासी की व्यवस्था किए जाने को भी कहा गया था। पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
पंच केदार के गांव
2013 की आपदा के बाद से ही पंच केदार के कल्पक्षेत्र, उरगम, वडगिणडा, देवग्राम, गिरा वाशा काफी संवेदनशील बताए जा रहे हैं। गांवों के निचले हिस्सों में लगातार जमीन का धंसना शुरू हो रहा है। स्थानीय लोगों की मानें तो कई नाली कृषि भूमि एवं वन भूमि लगातार टूटती जा रही है। जिससे आबादी वाले क्षेत्रों में नुकसान होना शुरू हो गया है। उरगम घाटी के तल्लावडगिडा देवग्राम गांव के निचले हिस्से में लगातार भूमि के कटाव से लोगों के घरों को खतरा हो गया है। देव ग्राम के प्रधान देवेंद्र सिंह रावत के अनुसार पूरे क्षेत्र में भूमि पर दरार पड़ गई है। लगभग 70 से अधिक मकान ऐसे हैं जो दरारों के चलते खतरे की जद में है। लोग अपने मकानों में रहने के लिए मजबूरी में विवश हैं।
बाडिया गांव
यमुनोत्री नेशनल हाइवे के ठीक ऊपर बसा बड़कोट के बाडिया गांव के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इस गांव में करीब 100 से अधिक परिवार रहते हैं। यहां के 35 से ज्यादा घरों में जोशीमठ की तरह दरारें आ चुकी है। ये दरारें यहां के कई किसानों के खेतों में भी देखी जा रही हैं। हालात ये है कि दरारों वाले खेतों में किसानों ने जाना तक बंद कर दिया है। यह गांव भूस्खलन की जद में 2010 के बाद से ही आना शुरू हो गया था। 2013 आते-आते यहां के करीब 35 मकानों में भू-धंसाव से दरारें आनी शुरू हो गई थी।
दर गांव
धारचूला की दारमा वैली का दर गांव एक दुर्गम गांव है। यहां दर्जनों लैंडस्लाइड जोन हैं। गांव के आस-पास की जमीन कई स्थानों पर भूस्खलन की चपेट में आ चुकी है। 50 से ज्यादा घर पूरी तरह धस चुके हैं। अधिकतर घरों के आस-पास की जमीन भी चारों ओर से धंस रही है। बावजूद इसके प्रशासन इन गांव वालों को लेकर अभी तक गंभीर नहीं है।