अपने साढ़े 9 साल के कार्यकाल में पीएम मोदी ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में काफी काम किया है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से लेकर उज्ज्वला जैसी तमाम योजनाएं महिला सशक्तिकरण की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई हैं। अब लगभग तीन दशक से धूल फांक रहे महिला आरक्षण बिल को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के रूप में लोकसभा व राज्यसभा से पारित कराकर महिला सशक्तिकरण अभियान को और ऊंचाई प्रदान कर दी है। बिल पारित हो जाने के बाद लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित होने की राह खुल गई है। इस बिल का पारित होना भारतीय संस्कृति के मूल तत्व यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता की सुंदर अनुगूंज है।
नये संसद भवन का श्री गणेश देश की महिलाओं को सम्मान देने के साथ हुआ है। मनु स्मृति के अध्याय तीन के 56वें श्लोक यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवताः को चरितार्थ करते हुए मोदी सरकार ने लगभग ढाई दशक से लटके महिला आरक्षण को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के रूप में कानूनी जामा पहना दिया है। राज्यसभा में यह बिल जहां सर्वसम्मति से पास हुआ वहीं लोकसभा में ओवैसी व उनकी पार्टी के एक सदस्य ने इसके खिलाफ मतदान किया। आधी आबादी की संसद में धमक बढ़ाने वाला महिला आरक्षण विधेयक 27 साल से अधर में लटका था। आखिरकार वो संसद के पांच दिनों के खास सत्र में महज 3 दिनों में पास हो गया। इस नारी शक्ति वंदन अधिनियम पर लोकसभा में 454 सांसदों ने पक्ष में वोट किया जबकि विरोध में केवल दो वोट पड़े। वहीं राज्यसभा में मौजूद सभी 214 सांसदों ने इस बिल का समर्थन किया।
परिवार की धुरी और समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई नारी संतान की प्रथम गुरु है। यदि वह स्वयं शिक्षित है, गुणवान है, समर्थ है, सशक्त है, आत्मबल और आत्मसम्मान महसूस करती है तो वह अपनी संतान को संस्कारित कर पाने में सक्षम होती है। यानी सशक्त नारी समाज का आधार स्तंभ है। जिस देश, समाज व परिवार में नारी सशक्त होती है वह देश, समाज और परिवार मजबूत बनता है। इसी को आधार बनाकर पीएम मोदी अपने साढ़े 9 साल के कार्यकाल में लगातार महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करते रहे हैं। चाहे वह बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना हो या धुएं से मुक्ति दिलाने वाली उज्ज्वला योजना अथवा बेटियों को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने वाली हर घर शौचालय योजना आदि। अब महिला शक्ति वंदन अधिनियम के जरिए उन्होंने महिला सशक्तिकरण के अभियान में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
“हम ऐसी व्यवस्था बनाना चाहते हैं कि महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए किसी की जरूरत न पड़े। इसके लिए कानून के साथ साथ सांस्कृतिक मूल्यों को भी मजबूत करना जरूरी है। इसलिए इस कानून का नाम नारी शक्ति वंदन अधिनियम रखा गया है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम एक व्यापक दृष्टिकोण वाला कानून है जो हमारे लोकतंत्र को मजबूत करेगा और भारतीय विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाएगा।-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी”
संविधान के 128वें संवैधानिक संशोधन के तहत पेश नारी शक्ति वंदन विधेयक में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान है। इसके मुताबिक लोकसभा, विधानसभाओं सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। यही नहीं संसद में एससी/एसटी के लिए आरक्षित सीटों में भी महिलाओं के लिए एक-तिहाई कोटा होगा। हालांकि पुदुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित नहीं हैं।
कानून एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने बिल पेश करते हुए कहा था कि इससे लोकसभा के 543 सांसदों में महिलाओं की संख्या 82 से बढ़कर 181 हो जाएगी। इसमें 15 साल के लिए आरक्षण का प्रावधान है। संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा। वहीं उन्होंने राज्यसभा में बिल पेश करते हुए कहा था कि इसके तहत एससी-एसटी महिलाओं को भी आरक्षण मिलेगा। कौन-सी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी ये परिसीमन आयोग तय करेगा। अभी संसद में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण नहीं मिलता है। केवल अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए कोटा लागू है। इसके तहत 543 सीट पर 131 सांसद एससी/ एसटी से चुने जाते हैं। अब महिलाओं को इस एससी/ एसटी कोटे में भी एक तिहाई आरक्षण मिलेगा।
तमाम सरकारें आईं लेकिन कोई भी इस बिल को पास नहीं करा पाईं। अब मोदी सरकार ने दोनों सदनों से इसे पारित कराकर महिला सशक्तिकरण को सही मायनों में मजबूती प्रदान की है।
एससी/ एसटी के 131 के 33 फीसदी के हिसाब से एससी की 28 और एसटी की 16 सीट महिलाओं को मिलेंगी। यानी कुल 44 सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएगी और एससी/ एसटी के पुरुषों के लिए इस कोटे में 87 सीटें ही रहेंगी। 543 सदस्यीय लोकसभा में से 131 का एससी/ एसटी कोटा घटाने पर इसमें ओबीसी और सामान्य वर्ग के लिए 412 सीट बचती हैं। इस 412 में से भी 33 फीसदी यानी 137 सीट ओबीसी और सामान्य वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। इस तरह से एससी/एसटी की 44 और ओबीसी/सामान्य कोटे की 137 सीट मिलाकर लोकसभा में कुल 181 सीट महिलाओं के लिए होंगी। अगर परिसीमन के बाद लोकसभा में सीटों की संख्या बढ़ती है तो महिला आरक्षण कोटे की सीट भी उसी अनुपात में बढ़ जाएगी।
गौरतलब है कि पिछले 27 वर्षों से यह बिल पारित होने की बाट जोह रहा था। इस दौरान तमाम सरकारें आईं लेकिन कोई भी इस बिल को पारित नहीं करा पाईं। अब जाकर मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा में इसे पास करा लिया। बिल पारित हो जाने के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित होने की राह खुल गई है। लोकसभा व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का यह बिल पास तो हो गया है लेकिन तकनीकी समस्या के कारण यह कानून अगले साल 2024 में होने वाले चुनाव के बजाय 2029 के लोकसभा चुनावों में ही लागू हो पाएगा।
जिस देश, समाज व परिवार में नारी सशक्त होती है वह देश, समाज और परिवार मजबूत बनता है। इसी को सूत्र वाक्य मानकर पीएम मोदी लगातार महिला सशक्तिकरण के लिए काम करते रहे हैं।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम के मसौदे के मुताबिक जनगणना और परिसीमन के बाद ही यह कानून के तौर पर लागू हो पाएगा। हालांकि राज्यसभा में जब 2010 में महिला आरक्षण बिल पास हुआ था तो इसमें परिसीमन की शर्त नहीं थी। जबकि ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ में महिला सीटों के आरक्षण के लिए अनुच्छेद 334 ए जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है महिला आरक्षण के लिए परिसीमन जरूरी होगा। इससे ये बात भी तय है कि जनगणना के बाद ही परिसीमन संभव हो पाएगा।
चूंकि कोराना महामारी के चलते 2021 में होने वाली जनगणना अब तक नहीं हो सकी है। ऐसे में सरकार परिसीमन से पहले जनगणना कराएगी। परिसीमन का अर्थ आबादी का प्रतिनिधित्व करने हेतु विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है। मौजूदा कानून के तहत अगला परिसीमन 2026 से पहले नहीं हो सकता। ऐसे में 2027 में होने वाले 8 राज्यों के चुनावों और 2029 के लोकसभा चुनाव से ही महिलाओं का आरक्षण लागू हो पाएगा।
बहरहाल, महिला आरक्षण विधेयक पहली बार 12 सितंबर 1996 को पीएम एचडी देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा सरकार ने पेश किया था। संविधान के 81वें संशोधन के तहत पेश इस विधेयक में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण के प्रस्ताव के अंदर ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए उप-आरक्षण का प्रावधान था। लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
“इस बिल के जरिए महज ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार नारी शक्ति वंदन अधिनियम से जनगणना और परिसीमन की शर्त हटा ले तो महिला आरक्षण को आज ही लागू किया जा सकता है।- राहुल गांधी”
इस बिल में आरक्षित सीटें विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन से दिए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। वहीं इसमें ये भी प्रस्ताव दिया गया था कि इस अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा। हालांकि प्रस्ताव गिर गया था। इसके बाद 1997 में इस विधेयक को पेश करने की फिर से एक नाकाम कोशिश हुई थी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने 1998, 1999, 2002, 2003-04 में बिल को पास करवाने की कोशिश की। लेकिन इसमें वो कामयाब नहीं हो पाई। साल 2004 में कांग्रेस की अगुवाई में बनी यूपीए सरकार ने 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल को एक के मुकाबले 186 वोट के भारी बहुमत से पास करवा लिया।
आधी आबादी की संसद में धमक बढ़ाने वाला महिला आरक्षण विधेयक 27 साल से अधर में लटका था। आखिरकार वो संसद के पांच दिनों के खास सत्र में महज तीन दिनों में पास हो गया।समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल के सात सांसदों ने बिल को लेकर खासा हंगामा काटा। राज्यसभा अध्यक्ष ने उन्हें निलंबित कर दिया। ये दोनों यूपीए सरकार के साथी थे। साथी दलों के हंगामे से मनमोहन सरकार डर गई और सरकार गिरने का खतरा मंडराने की वजह से इस बिल को लोकसभा में पेश ही नहीं किया। पिछड़े वर्ग को आरक्षण न दिये जाने को आधार बनाकर तब सपा व राजद जैसी पार्टियों ने इसका विरोध किया था। हालांकि नारी शक्ति वंदन विधेयक में भी पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए प्रावधान नहीं है फिर भी इस बार यह बिल पास हो गया।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को इतिहास के अनेक अध्यायों के निर्माण के लिए याद किया जाएगा। पिछले तीन दशक से सभी सरकारों में नए संसद भवन के निर्माण की चर्चा चली पर इसका साहस और संकल्प केवल प्रधानमंत्री मोदी ने दिखाया। राजनीतिक और कानूनी दोनों स्तरों पर चरम विरोध झेलते हुए भी समय सीमा में निर्माण पूरा हुआ। इसी तरह संसद और राज्य विधायिकाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने पर पिछले ढाई दशक में सिद्धांतत: सभी सरकारों ने सहमति व्यक्त की लेकिन कोई विधेयक पारित नहीं कर पाया। इस कार्य का श्रेय भी अंतत: नरेंद्र मोदी सरकार को ही मिल रहा है।
“हम अक्सर यह सुनते हैं कि मोदी है तो मुमकिन है। नारी शक्ति वंदन विधेयक को पारित कराकर प्रधानमंत्री ने फिर से इस बात को साबित कर दिया है कि ये खोखले शब्द नहीं हैं।-स्मृति ईरानी ”
बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री के उद्गार
नारी शक्ति वंदन विधेयक लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के बाद भाजपा के दिल्ली मुख्यालय में महिला कार्यकर्ताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी का अभिनंदन और धन्यवाद दिया। इस दौरान पीएम ने अपने संबोधन में जो कहा उसकी एक बानगी।
कभी-कभी किसी निर्णय में देश का भाग्य बदलने की क्षमता होती है। हम ऐसे ही निर्णय के साक्षी हैं। जिस बात को देश को पिछले कई दशकों से इंतजार था। वो सपना अब साकार हुआ है। यह देश के लिए खास समय है। यह भाजपा के हर कार्यकर्ता के लिए भी खास है।
लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी के लिए भाजपा तीन दशक से कोशिश कर रही थी। इसे हमने पूरा करके दिखाया है। जब पूर्ण बहुमत की सरकार होती है तो ऐसे ही मजबूत फैसले लिए जाते हैं।
आज हर नारी का आत्मविश्वास आसमान छू रहा है। पूरे देश की माताएं, बहनें बेटियां खुशी मना रही हैं। हमें आशीर्वाद दे रही हैं। करोड़ों माताओं बहनों के सपनों को साकार करने का आशीर्वाद हम भाजपा के कार्यकर्ताओं को मिला है। यह हमारे लिए गौरव करने का दिन है।
यह कोई सामान्य कानून नहीं है। यह नए भारत का उद्घोष है। यह बहुत बड़ा और मजबूत कदम है। महिलाओं का जीवन सुधारने के लिए जो गारंटी मोदी ने दी थी, उसका यह प्रत्यक्ष प्रमाण है। मेरे देश की हर माता,बहन और बेटी को मैं फिर से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
इस कानून के लिए भाजपा 3 दशक से प्रयास कर रही थी। यह हमारा कमिटमेंट था। आज हमने इसे पूरा कर दिया है। इसमें कई बाधाएं थीं। लेकिन जब नीयत पवित्र हो तो परेशानियों को पार करके भी परिणाम लाती है।
यह अपने आप में रिकॉर्ड है कि इस कानून को संसद के दोनों सदनों में व्यापक समर्थन मिला। पक्ष-विपक्ष ने भी राजनीति से ऊपर उठकर इसका समर्थन किया। मैं सबको धन्यवाद देता हूं।
आरक्षण की आवश्यकता व प्रासंगिकता
प्रधानमंत्री मोदी ने पुराने संसद भवन के लोकसभा के अपने अंतिम भाषण में बताया कि आजादी के बाद से संसद में 7500 सांसदों का प्रतिनिधित्व हुआ,जिनमें महिलाओं की संख्या लगभग 600 रही। यानी 8 प्रतिशत से भी कम। लोकसभा में अभी सबसे ज्यादा 15.21 प्रतिशत यानी 82 महिला सांसद है। राज्यसभा में 13.23 प्रतिशत यानी 31 महिला सांसद हैं। अगर इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के अध्ययन को स्वीकार करें तो वैश्विक स्तर पर महिला सांसदों की औसत भागीदारी 26 प्रतिशत है। किसी विधानसभा में 15 प्रतिशत महिला विधायक नहीं है। नागालैंड और मिजोरम में एक भी महिला विधायक नहीं है। अधिकतम 14.44 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में तथा उसके बाद 13.70 प्रतिशत पश्चिम बंगाल, 12.35 प्रतिशत झारखंड, 12 प्रतिशत राजस्थान,11.66 प्रतिशत उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली और उत्तराखंड विधानसभा में 11.4 प्रतिशत हैं। आठ प्रतिशत और उससे ज्यादा महिलाओं की भागीदारी 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 15 में इससे कम है। कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में महिला विधायक 3.4 प्रतिशत हैं। यह दर्दनाक स्थिति है। इन आंकड़ों से महिला आरक्षण की आवश्यकता और प्रासंगिकता साबित होती है।